Ekdant Sankashti Chaturthi 2022: आज एकदंत संकष्टी चतुर्थी मनाई जा रही है. ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को एकदंत संकष्टी चतुर्थी (Ekdant Sankashti Chaturthi) कहते हैं. भगवान गणेश बुद्धि, बल और विवेक के देवता हैं. वो अपने भक्तों की सभी परेशानियों और विघ्नों को हर लेते हैं इसीलिए इन्हें विघ्नहर्ता और संकटमोचन भी कहा जाता है. संकष्टी चतुर्थी के दिन गणपति की विशेष पूजा-अर्चना करने और व्रत कथा का पाठ करने से सभी दुख, कष्ट और पाप मिट जाते हैं.
एकदंत संकष्टी चतुर्थी शुभ मुहूर्त (Ekdant Sankashti Chaturthi Shubh Muhurat)
ज्येष्ठ कृष्ण चतुर्थी तिथि प्रारंभ: 18 मई, रात 11:36 बजे से
ज्येष्ठ कृष्ण चतुर्थी तिथि समापन: 19 मई, रात 08:23 मिनट पर
गणेश पूजा का समय: 19 मई को प्रात:काल से ही
शुभ योग: दोपहर 02:58 बजे के बाद
दिन का शुभ समय: 11 बजकर 50 मिनट से दोपहर 12:45 बजे तक
चंद्रोदय समय: रात 10 बजकर 56 मिनट पर
संकष्टी चतुर्थी व्रत की पूजन विधि (Sankashti Chaturthi Puna Vidhi)
आज के दिन सुबह उठकर स्नान करने के बाद व्रत का संकल्प लेना चाहिए. गणेश भगवान की पूरी विधि-विधान से पूजा-अर्चना करें. उन्हें तिल, गुड़, लड्डू, दुर्वा, चंदन और मोदक अर्पित करें. आज ॐ गं गणपतये नम: मंत्र का जाप, गणेश स्तुति, गणेश चालीसा और संकट चौथ व्रत कथा पढ़नी चाहिए. पूजा खत्म होने के बाद गणेश जी की आरती जरूर पढ़ें. रात में चांद निकलने से पहले गणेश भगवान की फिर से पूजा करें. चंद्रोदय के बाद दुग्ध से चंद्रदेव को अर्घ्य देकर पूजन करें और फलाहार ग्रहण करें. संकष्टी चतुर्थी के दिन भगवान गणेश का व्रत करने से व्यक्ति की हर मनोकामना पूरी होती है.
संकष्टी चतुर्थी की व्रत कथा (Sankashti Chaturthi Vrat Katha)
हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार, एक बार भगवान शिव और माता पार्वती नदी किनारे बैठे थे. तभी अचानक माता पार्वती को चौपड़ खेलने की इच्छा हुई, लेकिन वहां उन दोनों के अलावा तीसरा कोई नहीं था जो इस खेल में निर्णायक भूमिका निभा सकता. शिवजी और पार्वती ने मिलकर एक मिट्टी की मूर्ति बनाई और उसमें जान डाली और उसे खेल में सही फैसला लेने का आदेश दिया. खेल में माता पार्वती बार-बार भगवान शिव को मात दे रही थीं.
चलते खेल में एक बार गलती से बालक ने माता पार्वती को हारा हुआ घोषित कर दिया. माता लपार्वती ने गुस्से में आकर बालक को श्राप दे दिया और वह लंगड़ा हो गया. बालक ने अपनी भूल के लिए माता से बार-बार क्षमा मांग रहा था. बालक के निवेदन को देखते हुए माता ने कहा कि अब श्राप वापस नहीं हो सकती, लेकिन एक उपाय से श्राप से मुक्ति पाई जा सकती है. माता ने कहा कि संकष्टी वाले दिन पूजा करने इस जगह पर कुछ कन्याएं आती हैं, तुम उनसे व्रत की विधि पूछना और सच्चे मन से व्रत का करना.
बालक ने व्रत की विधि जानकर श्रद्धापूर्वक संकष्टी का व्रत किया. उसकी सच्ची आराधना से भगवान गणेश प्रसन्न हुए और उसे वरदान मांगने को कहा. बालक ने माता पार्वती और भगवान शिव के पास जाने की इच्छा बताई. भगवान गणेश ने उस बालक को शिवलोक पंहुचा दिया, लेकिन जब वह पहुंचा तो वहां उसे केवल भगवान शिव ही मिले. माता पार्वती भगवान शिव से नाराज होकर कैलाश छोड़कर चली गई थीं. जब शिवजी ने बच्चे से पूछा की तुम यहां कैसे आए तो उसने बताया कि गणेश की पूजा से उसे यह वरदान प्राप्त हुआ है. यह जानने के बाद भगवान शिव ने भी पार्वती को मनाने के लिए संकष्टी का व्रत को किया और इसके बाद माता पार्वती भगवान शिव से प्रसन्न होकर कैलाश वापस लौट आती हैं.