झारखंड में हर ओर आदिवासियों के पर्व करमा की धूम देखी जा रही है. इस मौके पर आदिवासी प्रकृति की पूजा कर अच्छे फसल की कामना करते हैं. साथ ही बहनें अपने भाइयों की सलामती के लिए प्रार्थना करती हैं.
करमा पर झारखंड के आदिवासी ढोल और मांदर की थाप पर झूमते-गाते हैं. यह दिन इनके लिए प्रकृति की पूजा का है. ऐसे में ये सभी उल्लास से भरे होते हैं. परम्परा के मुताबिक, खेतों में बोई गई फसलें बर्बाद न हों, इसलिए प्रकृति की पूजा की जाती है.
इस मौके पर एक बर्तन में बालू भरकर उसे बहुत ही कलात्मक तरीके से सजाया जाता है. पर्व शुरू होने के कुछ दिनों पहले उसमें जौ डाल दिए जाते हैं. इसे 'जावा' कहा जाता है. यही जावा आदिवासी बहनें अपने बालों में गूंथकर झूमती-नाचती हैं.
इस मौके पर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा, 'अभी हमें समय कम मिला है, इसके वाबजूद हमने क्षेत्रीय भाषा के उत्थान के लिए काम किया है.'
आदिवासी बहनें अपने भाइयों की सलामती के लिए इस दिन व्रत रखती हैं. इनके भाई 'करम' वृक्ष की डाल लेकर घर के आंगन या खेतों में गाड़ते हैं. इसे वे प्रकृति के आराध्य देव मानकर पूजा करते हैं. पूजा समाप्त होने के बाद वे इस डाल को पूरे धार्मिक रीति से तालाब, पोखर, नदी आदि में विसर्जित कर देते हैं.
पर्व के दिन युवा दिनभर नाचते -गाते हैं. दो दिनों तक चलने वाला करमा पर्व झारखंड में सादगी और सौहार्द का प्रतीक भी है.