Karwa Chauth 2021: सुहागिन महिलाओं ने आज करवा चौथ का व्रत रखा है. इस व्रत का पारण चांद को अर्घ्य देने के बाद होता है. ऐसे में यदि खराब मौसम की वजह से या फिर किसी अन्य कारणवश चांद नहीं दिख पाता है, तो ऐसे में सवाल उठता है कि व्रत कैसे खोलें. ज्योतिषाचार्य डॉ. अरविंद मिश्र ने बताया कि ऐसी परिस्थिति के समय क्या करना चाहिए ?
चंद्रमा न दिखने पर ऐसे खोलें व्रत
1. अगर चंद्रमा बादलों में छिप गया है, तो भी आप शुभ मुहूर्त में पूजन कर सकती हैं.
2. अगर चांद ना दिखाई दे, तो भगवान शिव के मस्तक पर विराजमान चंद्रमा के दर्शन करें. फिर चंद्रमा की पूजा करके क्षमा याचना करें. इसके बाद पति की पूजा करके व्रत पूर्ण करें.
3. चंद्रोदय का सही समय जानकर करीबियों से पूछे की चांद किस तरफ निकलता है. उस दिशा में मुंह करके पूजा कर व्रत का पारण करें.
4. चंद्रमा की आकृति के दर्शन करके भी व्रत का पारण कर सकते हैं, इसके लिए एक चौकी लाल कपड़ा बिछाएं. अब उस पर चावल से चांद की आकृति बनाएं.
5. ओम चतुर्थ चंद्राय नम: मंत्र का जाप कर चंद्रमा का आह्वान करें और पूजा करने के बाद व्रत का पारण कर लें.
पढ़ें ये कथा
करवा चौथ व्रत कथा (Karwa Chauth 2021 Vrat Katha)
प्राचीन कथा के अुनसार एक गांव में करवा देवी अपने पति के साथ रहती थीं. एक दिन उनके पित नदी में स्नान करने के लिए गए. स्नान करने के दौरान मगरमच्छ ने करवा के पति का पैर पकड़ लिया और खींचकर नदी में अंदर की ओर ले जाने लगा. इस दौरान पति ने अपनी रक्षा के लिए पत्नी को पुकारा. पति की आवाज सुनकर करवा नदी के किनारे पहुंच गईं और मगरमच्छ को एक कच्चे धागे से पेड़ से बांध दिया. करवा के सतीत्व की वजह से मगरमच्छ हिल तक नहीं पाया. इसके बाद करवा ने यमराज को पुकारा और अपने पति का जीवन दान मांगा और मगरमच्छ को मृत्युदंड देने के लिए कहा. यमराज ने कहा कि मगरमच्छ की आयु अभी पूरी नहीं हुई है, लेकिन तुम्हारे पति की आयु पूरी हो गई है. यमराज की ये बात सुनकर करवा क्रोधित हो गईं और उन्होंने कहा कि यदि उनके पति के प्राणों को कुछ हुआ, तो वे शाप दे देंगी. सती के शाप से डरकर यमराज ने मगरमच्छ को यमलोक भेज दिया और करवा के पति को जीवन दान दे दिया. साथ ही करवा को सुख-समृद्धि का वर दिया और कहा 'जो स्त्री इस दिन व्रत करके करवा को याद करेगी, उनके सौभाग्य की मैं रक्षा करूंगा. कहा जाता है कि इस घटना के दिन कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि थी. तभी से करवा चौथ का व्रत रखने की परंपरा चली आ रही है.
दूसरी पौराणिक व्रत कथा
वहीं दूसरी पौराणिक कथा के अनुसार, इंद्रप्रस्थपुर के एक शहर में एक ब्राह्मण रहता था. उसके 7 पुत्र और वीरावती नाम की एक पुत्री थी. इकलौती बेटी होने के कारण वो सभी की लाडली थी. जब वीरावती शादी के लायक हो गई, तो उसके पिता ने उसकी शादी एक ब्राह्मण युवक से कर दी. शादी के बाद वीरावती अपने मायके आयी हुई थी, तभी करवा चौथ का व्रत पड़ा. वीरावती अपने माता-पिता और भाइयों के घर पर ही थी. उसने पहली बार पति की लंबी आयु के लिए व्रत रखा, लेकिन वो भूख प्यास बर्दाश्त नहीं कर पाई और मूर्छित होकर जमीन पर गिर पड़ी. बहन का मूर्छित देख उसके भाइयों ने छलनी में एक दीपक रखकर उसे पेड़ की आड़ से दिखाया और बेहोश हुई वीरावती जब जागी तो उसे बताया कि चंद्रोदय हो गया है. छत पर जाकर चांद के दर्शन कर ले. वीरावती ने चंद्र दर्शन कर पूजा पाठ किया और भोजन करने के लिए बैठ गई. पहले कौर में बाल आया, दूसरे में छींक आई और तीसरे कौर में उसकी सुसराल से बुलावा आ गया. जब वीरवती ससुराल पहुंची, तो वहां देखा कि उसके पति की मौत हो गई है. यह देख वह व्याकुल होकर रोने लगी. उसकी हालत देखकर इंद्र देवता की पत्नी देवी इंद्राणी उसे सांत्वना देने पहुंची और उसे उसकी भूल का अहसास दिलाया. साथ ही करवा चौथ के व्रत के साथ-साथ पूरे साल आने वाली चौथ के व्रत करने की सलाह दी. वीरावती ने ऐसा ही किया और व्रत के पुण्य से उसके पति को पुन: जीवनदान मिल गया.