Karwa Chauth 2022 Date: करवा चौथ का त्योहार हर साल कार्तिक माह की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को रखा जाता है. करवा चौथ का दिन और संकष्टी चतुर्थी, जो कि भगवान गणेश के लिए उपवास करने का दिन होता है, एक ही दिन आता है. करवा चौथ के दिन पत्नियां अपने पति की लंबी आयु के लिए व्रत रखती हैं. करवा चौथ के व्रत को काफी मुश्किल माना जाता है क्योंकि महिलाएं इस दिन निर्जल व्रत रखती हैं और चांद को देखने के बाद ही अपना व्रत खोलती हैं. विवाहित महिलाएं इस दिन भगवान शिव, माता पार्वती और गणेश जी की पूजा करती हैं और रात में चांद के दर्शन और उनको अर्घ्य देने के बाद ही व्रत को तोड़ती हैं.
करवा चौथ के दिन को करक चतुर्थी (Karak Chaturthi) के नाम से भी जाना जाता है. करक मिट्टी के पात्र को कहा जाता है जिससे महिलाएं इस दिन चंद्रमा को अर्घ्य देती हैं. करवा चौथ की पूजा में करवा का काफी महत्व होता है. पूजा के बाद आप करवा को ब्राह्मण या किसी योग्य महिला को दान दे सकते हैं. आइए जानते हैं करवा चौथ का मुहूर्त और शुभ योग
करवा चौथ के दिन चन्द्रोदय और पूजा मुहूर्त (Karwa Chauth 2022 Puja Shubh Muhurat)
करवा चौथ बृहस्पतिवार, अक्टूबर 13, 2022 को
करवा चौथ पूजा मुहूर्त - शाम 06 बजकर 17 मिनट से शाम 07 बजकर 31 मिनट तक
अवधि - 01 घण्टा 13 मिनट्स
करवा चौथ व्रत समय - सुबह 06 बजकर 32 मिनट से रात 08 बजकर 48 मिनट तक
करवा चौथ के दिन चन्द्रोदय - 08:48 पी एम
चतुर्थी तिथि प्रारम्भ - अक्टूबर 13, 2022 को सुबह 01 बजकर 59 मिनट से शुरू
चतुर्थी तिथि समाप्त - अक्टूबर 14, 2022 को सुबह 03 बजकर 08 मिनट पर खत्म
करवा चौथ शुभ योग (Karwa Chauth 2022 Shubh Yog)
करवा चौथ के दिन ब्रह्म मुहूर्त सुबह 04 बजकर 54 मिनट से सुबह 05 बजकर 43 मिनट तक रहेगा. अभिजीत मुहूर्त दोपहर 12 बजकर 1 मिनट से लेकर 12 बजकर 48 मिनट तक रहेगा. अमृत काल शाम 4 बजकर 8 मिनट से 5 बजकर 50 मिनट कर रहेगा.
करवा चौथ पूजन सामग्री (Karwa Chauth Pujan Samagri)
छलनी, करवा माता की तस्वीर, दीपक, अगरबत्ती, कपूर, गेहूं, बाती (रूई)लकड़ी का आसन, दक्षिणा के पैसे, हलुआ, आठ पूरियों की अठावरी, श्रृंगार का सामान, मेहंदी, महावर, सिंदूर, कंघा, बिंदी, चुनरी, चूड़ी, छलनी, बिछुआ, फूल, हल्दी, चावल, मिठाई, कच्चा दूध, दही, देसी घी, शहद, शक्कर का बूरा, रोली, कुमकुम, मौली, अक्षत, पान, व्रत कथा की पुस्तक, मिट्टी या तांबे का टोटवाला करवा और ढक्कन, कलश, चंदन.
करवा चौथ की पूजन विधि (Karwa Chauth 2022 Pujan Vidhi)
करवा चौथ के दिन सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करें. फिर सास द्वारा दिया हुआ भोजन करें और निर्जला व्रत का संकल्प लें. यह व्रत सूर्य अस्त होने के बाद चन्द्रमा के दर्शन करके ही खोलना चाहिए और बीच में जल भी नहीं पीना चाहिए. संध्या के समय एक मिट्टी की वेदी पर सभी देवताओं की स्थापना करें. इसमें 10 से 13 करवे (करवा चौथ के लिए ख़ास मिट्टी के कलश) रखें. चन्द्रमा निकलने से लगभग एक घंटे पहले पूजा शुरू की जानी चाहिए. अच्छा हो कि परिवार की सभी महिलाएं साथ पूजा करें. पूजा के दौरान करवा चौथ कथा सुनें या सुनाएं. चन्द्र दर्शन छलनी के द्वारा किया जाना चाहिए और साथ ही दर्शन के समय अर्घ्य के साथ चन्द्रमा की पूजा करनी चाहिए. चन्द्र-दर्शन के बाद बहू अपनी सास को थाली में सजाकर मिष्ठान, फल, मेवे, रूपये आदि देकर उनका आशीर्वाद लें .
करवा चौथ व्रत कथा (Karwa Chauth Vrat Katha)
बहुत समय पहले इन्द्रप्रस्थपुर के एक शहर में वेदशर्मा नाम का एक ब्राह्मण रहता था. वेदशर्मा का विवाह लीलावती से हुआ था जिससे उसके सात महान पुत्र और वीरावती नाम की एक गुणवान पुत्री थी. क्योंकि सात भाईयों की वह केवल एक अकेली बहन थी जिसके कारण वह अपने माता-पिता के साथ-साथ अपने भाईयों की भी लाड़ली थी.
जब वह विवाह के लायक हो गयी तब उसकी शादी एक उचित ब्राह्मण युवक से हुई. शादी के बाद वीरावती जब अपने माता-पिता के यहाँ थी तब उसने अपनी भाभियों के साथ पति की लम्बी आयु के लिए करवा चौथ का व्रत रखा. करवा चौथ के व्रत के दौरान वीरावती को भूख सहन नहीं हुई और कमजोरी के कारण वह मूर्छित होकर जमीन पर गिर गई.
सभी भाईयों से उनकी प्यारी बहन की दयनीय स्थिति सहन नहीं हो पा रही थी. वे जानते थे वीरावती जो कि एक पतिव्रता नारी है चन्द्रमा के दर्शन किये बिना भोजन ग्रहण नहीं करेगी चाहे उसके प्राण ही क्यों ना निकल जायें. सभी भाईयों ने मिलकर एक योजना बनाई जिससे उनकी बहन भोजन ग्रहण कर ले. उनमें से एक भाई कुछ दूर वट के वृक्ष पर हाथ में छलनी और दीपक लेकर चढ़ गया. जब वीरावती बेहोशी से जागी तो उसके बाकी सभी भाईयों ने उससे कहा कि चन्द्रोदय हो गया है और उसे छत पर चन्द्रमा के दर्शन कराने ले आये.
वीरावती ने कुछ दूर वट के वृक्ष पर छलनी के पीछे दीपक को देख विश्वास कर लिया कि चन्द्रमा वृक्ष के पीछे निकल आया है. अपनी भूख से व्याकुल वीरावती ने शीघ्र ही दीपक को चन्द्रमा समझ अर्घ अर्पण कर अपने व्रत को तोड़ा. वीरावती ने जब भोजन करना प्रारम्भ किया तो उसे अशुभ संकेत मिलने लगे. पहले कौर में उसे बाल मिला, दुसरें में उसे छींक आई और तीसरे कौर में उसे अपने ससुराल वालों से निमंत्रण मिला. पहली बार अपने ससुराल पहुंचने के बाद उसने अपने पति के मृत शरीर को पाया.
अपने पति के मृत शरीर को देखकर वीरावती रोने लगी और करवा चौथ के व्रत के दौरान अपनी किसी भूल के लिए खुद को दोषी ठहराने लगी. वह विलाप करने लगी. उसका विलाप सुनकर देवी इन्द्राणी जो कि इन्द्र देवता की पत्नी है, वीरावती को सान्त्वना देने के लिए पहुँची.
वीरावती ने देवी इन्द्राणी से पूछा कि करवा चौथ के दिन ही उसके पति की मृत्यु क्यों हुई और अपने पति को जीवित करने की वह देवी इन्द्राणी से विनती करने लगी. वीरावती का दुःख देखकर देवी इन्द्राणी ने उससे कहा कि उसने चन्द्रमा को अर्घ अर्पण किये बिना ही व्रत को तोड़ा था जिसके कारण उसके पति की असामयिक मृत्यु हो गई. देवी इन्द्राणी ने वीरावती को करवा चौथ के व्रत के साथ-साथ पूरे साल में हर माह की चौथ को व्रत करने की सलाह दी और उसे आश्वासित किया कि ऐसा करने से उसका पति जीवित लौट आएगा.
इसके बाद वीरावती सभी धार्मिक कृत्यों और मासिक उपवास को पूरे विश्वास के साथ करती. अन्त में उन सभी व्रतों से मिले पुण्य के कारण वीरावती को उसका पति पुनः प्राप्त हो गया.