महाभारत के एक प्रमुख पात्र रहे बर्बरीक की आज संसार में देव तुल्य मान्यता है. खाटू वाले श्याम बाबा यानी कि महाभारत के वीर बर्बरीक अपनी वीरता और वचन पालन के कारण भक्तों-श्रद्धालुओं के बीच खासे लोकप्रिय हैं. राजस्थान के सीकर जिले में बाबा खाटू वाले श्याम का भव्य दरबार बना हुआ है, जहां के प्रसिद्ध फाल्गुन महोत्सव की शुरुआत हो चुकी है.
श्रद्धालु शीशदानी वीर बर्बरीक को श्रीकृष्ण के नाम से और उन्हीं के बराबर सम्मान देते हुए पूजते हैं. वैसे तो सीकर (राजस्थान) के खाटू गांव में साल भर बाबा के भक्त आते हैं, लेकिन फाल्गुन महीने में यहां पहुंचना उनके लिए खास होता है. इसी महीने की द्वादशी तिथि को वीर बर्बरीक ने श्रीकृष्ण को शीश दान किया था और 'हारे का सहारा' की पदवी पाई थी.
आखिर श्रीकृष्ण ने क्यों करा लिया था शीशदान?
बता दें कि महाभारत युद्ध से पहले श्रीकृष्ण ब्राह्मण वेश में वीर बर्बरीक से मिले थे और उन्होंने इस महान योद्धा की वीरता और दानवीरता की भी परीक्षा ली थी. बर्बरीक ने अपने तीन बाणों के चमत्कार से कृष्ण को लाजवाब कर दिया था और जब श्रीकृष्ण ने उनसे पूछा कि तुम किस पक्ष से युद्ध करोगे, तो बर्बरीक ने कहा कि अपनी मां को दिए वचन के अनुसार मैं 'हारे का सहारा' बनूंगा. वीर बर्बरीक के इस वचन के बाद ही श्रीकृष्ण ने उनके शीशदान की लीला रची.
बर्बरीक शीशदान के लिए तो सहर्ष तैयार हो गए, लेकिन उन्हें दुख हुआ कि वह अपने पिता, दादा व अन्य पूर्वजों के किसी काम नहीं आ सके. उन्होंने श्रीकृष्ण से अपने उद्धार का तरीका पूछा साथ ही बताया कि वह भी इस युद्ध में हिस्सा लेना चाहते थे, और इसे देखना चाहते थे.
बर्बरीक ने कृष्ण से विनीत स्वर में कहा, मैं भी इस युद्ध में भाग लेना चाहता था, लेकिन शीश दान के कारण ऐसा नहीं कर पाऊंगा इसका शोक है, मैं अपने पूर्वजों को मृत्यु के बाद क्या मुंह दिखाउंगा?
कृष्ण ने बताई शीश दान की वजह
श्रीकृष्ण बोले, दुख न करो बर्बरीक. अगर तुम शीश दान न करते तो अपने पूर्वजों के बिल्कुल काम नहीं आते. इसका कारण है तुम्हारा वचन. शुरुआत में तो तुम पांडव सेना से ही युद्ध करोगे, लेकिन वचन के कारण कौरव पक्ष को हारता देख उधर जा मिलोगे. इसके कारण फिर पांडव सेना हारने लगेगी. ऐसा देखकर तुम वापस इधर आ जाओगे. यह क्रम चलता रहेगा और युद्ध का कोई निर्णय न निकल पाने के कारण धर्म स्थापना का कार्य नहीं हो सकेगा. इसलिए मुझे यह करना पड़ा.
...और इस तरह बने बाबा खाटू श्याम
श्रीकृष्ण ने शीशदान लेकर उसे अमृत से सींचा और अमरबूटियों पर स्थिर कर कुरुक्षेत्र के पास सबसे ऊंची पहाड़ी पर रख दिया. वहां से वीर बर्बरीक ने पूरा युद्ध देखा और अंत समय में जब पांडवों को विजय का अहंकार भी हो गया तब बर्बरीक ने ही निष्पक्ष और न्यायप्रिय होकर उनका अहंकार भी तोड़ा. फागुन मास की शुक्ल पक्ष की द्वादशी को बर्बरीक के शीश दान करने के कारण ही इस समय बाबा श्याम के भक्तों का जत्था सीकर के पास खाटू गांव पहुंचता है और बाबा के दरबार में हाजिरी लगाता है.
ऐसे बना बाबा का मंदिर
बाबा की मान्यता तो पहले से थी. किवदंती है कि सदियों पहले मंदिर वाले स्थान पर एक गाय स्वतः आकर खड़ी हो जाती थी और उसके स्तनों से दुग्ध धारा बहने लगती थी. यह देख लोग आश्चर्य करने लगे थे. एक दिन इस स्थान पर खुदाई की गई तो भूगर्भ से बाबा का शीश प्रकट हुआ. उसी रात स्वप्न में खाटू नगर के राजा को मंदिर निर्माण की प्रेरणा मिली. इसके बाद उस स्थान पर मंदिर बनवाया गया और कार्तिक एकादशी को शीश मंदिर में विराजित कराया गया. यह तिथि वीर बर्बरीक के जन्म की थी. तबसे आज तक बाबा के इस दरबार में श्रद्धालु पहुंच रहे हैं.
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कहते हैं, आकार बदलते हैं बाबा
मूल मंदिर 1027 ई. में रूपसिंह चौहान और उनकी पत्नी नर्मदा कंवर ने बनवाया था. मारवाड़ के शासक ठाकुर के दीवान अभय सिंह ने ठाकुर के निर्देश पर 1720 ई. में मंदिर का जीर्णोद्धार कराया. मंदिर ने इस समय अपना वर्तमान आकार ले लिया और मूर्ति गर्भगृह में स्थापित की गयी थी. मूर्ति दुर्लभ पत्थर से बनी है. कहा जाता है कि जो भी इस मंदिर में जाता है उन्हें बाबा का नित नया रूप देखने को मिलता है. कई लोगों को तो इनके आकार में भी बदलाव नजर आता है.
बाबा की धड़ की पूजा का अलग स्थल
वीर बर्बरीक ने खाटू रूप में जहां दर्शन दिए, वहां सीकर में आज खाटू धाम मंदिर बना हुआ है. इसके अलावा जिस स्थान पर उन्होंने शीश का दान किया था और श्रीकृष्ण के विराट स्वरूप का दर्शन किया था, वहां आज चुलकाना धाम स्थित है. हरियाणा राज्य के पानीपत के समालखा कस्बे से 5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित चुलकाना धाम प्रसिद्ध है. श्री श्याम खाटू वाले का प्राचीन ऐतिहासिक मंदिर चुलकाना गांव में है. जैसे ही गांव में मंदिर की स्थापना हुई और खाटू नरेश चुलकाना नरेश भी बन गए. चुलकाना धाम को कलयुग का सर्वोत्तम तीर्थ माना गया है.
इसके अलावा बाबा के धड़ स्थल का भी मंदिर बना हुआ है और उसकी भी पूजा होती है. बाबा के शरीर की पूजा हरियाणा के हिसार जिले के एक छोटे से गांव स्याहड़वा में होती है.