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Mahashivratri: सृजन, संहार और पंचभूत के प्राण... जानिए महादेव के 19 अवतारों की महालीला

जिस तरह भगवान विष्णु के दशावतार सबसे अधिक चर्चा में रहते हैं, उसी तरह संसार के कल्याण के लिए खुद महादेव ने भी अलग-अलग समय पर कई अवतार लिए हैं. शिवपुराण में उनके 19 अवतारों का वर्णन है. शिवजी के कई अवतार ऐसे हैं, जो उन्होंने विष्णु के दशावतार के दौरान उनके कार्यों में सहयोग के लिए लिया था.

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महाशिवरात्रि पर जानिए शिवजी से जुड़ी अद्भुत जानकारियां
महाशिवरात्रि पर जानिए शिवजी से जुड़ी अद्भुत जानकारियां

जो सत्य है, वही शिव है और शिव ही सुंदर है. यह पौराणिक बात ही जीवन का मर्म है. अपने आस-पास हम जो भी अपनी आंखों से देख पाते हैं और जो इस दिखावे से परे है वह सब कुछ शिव ही है. शिव ही पंचतत्व और पंचभूत के प्राण हैं और जल, अग्नि, वायु, धरती व आकाश का सृजन वही करते हैं. समय आने पर वह इन्हीं पंच भूतों को अलग-अलग करके संहार भी करते हैं.

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इसलिए कहा जाता है कि संसार में पदार्थ का चाहे ठोस स्वरूप हो या तरल या फिर भाप ही क्यों न हो, शिव हर रूप में साकार होते हैं. गंगाजल शिव की जटाओं से होकर बहता है, अमरनाथ में शिव खुद बर्फ से आकार पाते हैं और कालिदास ने तो मेघों को ही शिव स्वरूप बताया है. इन संदर्भों को देखें तो प्राचीन काल से चली आ रही यह बात कि 'हर कंकर ही शंकर है' अपने आप में सही साबित होती दिखती है. 

शिव क्या हैं, उनका स्वरूप क्या है और उनसे जुड़े हर शब्द का भाव क्या है? महाशिवरात्रि के इस मौके पर देवाधिदेव महादेव से जुड़े ये तथ्य अपने आप में उनकी भजनमाला हैं. इन पर डालते हैं एक नजर-

शिव क्या हैं?
हम अपनी आंखों को बंद करें तो क्या दिखाई देता है? अंधकार... थोड़ी देर तक आंखें बंद रखे रहें तो यह अंधकार ही कुछ-कुछ नीली सी आभा लेने लगता है. सृष्टि में जब, जिस समय कुछ भी नहीं था, तब भी यह अंधकार मौजूद था. लिंग पुराण इसी बात को इस तरह से कहता है कि संसार के होने से पहले सारा ब्रह्मांड एक अंड रूप में था और इसी अंड स्वरूप में विस्फोट से ब्रह्मांड बना. यही अंड स्वरूप पूरा ब्रह्मांड है, और शिवलिंग इसी का प्रतीक है. बंद आंखों से दिखाई देने वाला अंधकार, असल में यही शिवलिंग स्वरूप है.

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शिव पुराण में शिवलिंग
शिव पुराण में शिवलिंग की उत्पत्ति का वर्णन अग्नि स्तंभ के रूप में किया गया है, जिसकी न तो कई शुरुआत है और न ही कोई अंत. इसी लिंग के ओर-छोर को खोजने के लिए ब्रह्मा और विष्णु कई हजार साल तक घूमते रहे, लेकिन वह इसे खोज नहीं सके. तब इसी प्रकाश स्तंभ से नाद उत्पन्न हुआ, और इसी नाद (भयंकर आवाज) से अकार, उकार और मकार (अ, उ, म) की ध्वनि निकली. तीनों ध्वनि एक साथ मिलकर ओम कहलाई और ओंकार ही में ब्रह्मा, विष्णु और महेश यानी आरंभ, विकास और विनाश समा गए. 

लिङ्ग पुराण में शिवलिंग
लिङ्ग पुराण के अनुसार शिवलिंग निराकार ब्रह्मांड वाहक है, अंडाकार पत्थर ब्रह्मांड का प्रतीक है और पीठम् ब्रह्मांड को पोषण व सहारा देने वाली सर्वोच्च शक्ति है. इसी तरह की व्याख्या स्कन्द पुराण में भी है, इसमें यह कहा गया है "अनंत आकाश (वह महान शून्य जिसमें समस्त ब्रह्मांड बसा है) शिवलिंग है और पृथ्वी उसका आधार है. समय के अंत में, समस्त ब्रह्मांड और समस्त देवता व इश्वर शिवलिंग में विलीन हो जाएंगें." महाभारत में द्वापर युग के अंत में भगवान शिव ने अपने भक्तों से कहा कि आने वाले कलियुग में वह किसी विशेष रूप में प्रकट नहीं होगें, वह निराकार और सर्वव्यापी रहेंगे. उनका यही निराकार स्वरूप शिवलिंग है. 

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एकादश रुद्र

वेदों में शिव
ऋग्वेद में शिव के बजाय रुद्र का वर्णन है. इसमें रुद्र की गिनती सबसे बलशाली देवों में की गई है. यह भी कहा गया है कि एको रुद्रो न द्वितीयाय तस्यु: (श्वेताश्वतर उपनिषद) 'एक ही रुद्र है, दूसरा रुद्र नहीं है. वह रुद्र अपनी शक्तियों से सब लोगों पर शासन करता है, लेकिन आगे चलकर पुराणों में एकादश रुद्र की व्याख्या और वर्णन किया गया है. हालांकि वैदिक रुद्र की मान्यता शिव से अलग और परे हैं, लेकिन उनकी शक्तियों और बलों का वर्णन जिस तरीके से किया गया है वह उन्हें पौराणिक शिव के निकट ही ले आता है.

एकादश रुद्र कौन-कौन से हैं?
इस प्रश्न का उत्तर देना थोड़ा जटिल है. जटिल इसलिए, क्योंकि इनका वर्णन और व्याख्या हर जगह अलग-अलग मिलती है. सनातन परंपरा के 33 प्रकार के देवताओं में 11 रुद्र देवताओं का स्थान पहला है. हालांकि कहीं-कहीं इन्हें मरुतों से अलग माना जाता है तो कहीं यह उनके ही अलग-अलग स्वरूप में बताए जाते हैं. वामन पुराण में रुद्रों को कश्यप और सुरभि का पुत्र बताया गया है. पुराणों में आकर रुद्र भगवान शंकर के ही अलग-अलग अवतार बन जाते हैं.

एक समस्या यह भी है कि एकादश रुद्रों के नाम सभी जगहों पर एक जैसे नहीं मिलते हैं. इनके नामों अंतर मिलते हैं. महाभारत के आदिपर्व में एकादश रुद्रों का वर्णन स्पष्ट तौर पर नाम सहित मिलता है. 

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1. हर-रुद्र्, 2. बहुरूप, 3. त्र्यम्बक, 4. अपराजित-रुद्र्, 5. वृषाकपि, 6. शम्भु, 7. कपर्दी, 8. रैवत, 9. मृगव्याध, 10. शर्व, 11. कपाली

मत्स्यपुराण, पद्मपुराण, स्कन्दपुराण में एकादश रुद्रों के नाम कुछ इस तरह हैं.

1.अजैकपाद, 2. अहिर्बुध्न्य, 3. विरूपाक्ष, 4. रैवत, 5. हर, 6. बहुरूप, 7. त्र्यम्बक, 8. सावित्र, 9. जयन्त, 10. पिनाकी, 11. अपराजित

शिवपुराण में शतरुद्रीय संहिता में एकादश रुद्रों का शिव के एक अवतार के रूप में वर्णन है. ऋषि कश्यप की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उनकी पत्नी सुरभि के गर्भ से ग्यारह रुद्रों के रूप में जन्म लिया. शिवपुराण में जिन एकादश रुद्रों का वर्णन है, वह अन्य सभी नामों से बिल्कुल अलग है.

1. कपाली, 2. पिंगल, 3. भीम, 4. विरुपाक्ष, 5. विलोहित, 6. शास्ता, 7. अजपाद, 8. अहिर्बुध्न्य, 9. शम्भु, 10. चण्ड, 11. भव

भगवान शिव के अनुष्ठान और उनके व्रत की मान्यता के अनुसार चलने वाली शैव शाखा के सबसे पवित्र और महान ग्रंथ शैव अगम में 64 शिव (अष्टाअष्ट शिव) का वर्णन है. इसकी शैव अगम ग्रंथ में सबसे मान्य एकादश रुद्रों के नाम और भी अलग हैं. 

1. शम्भु, 2. पिनाकी, 3. गिरीश, 4. स्थाणु, 5. भर्ग, 6. सदाशिव, 7. शिव, 8. हर, 9. शर्व, 10. कपाली, 11. भव

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भगवान शिव के अवतार
जिस तरह भगवान विष्णु के दशावतार सबसे अधिक चर्चा में रहते हैं, उसी तरह संसार के कल्याण के लिए खुद महादेव ने भी अलग-अलग समय पर कई अवतार लिए हैं. शिवपुराण में उनके 19 अवतारों का वर्णन है. शिवजी के कई अवतार ऐसे हैं, जो उन्होंने विष्णु के दशावतार के दौरान उनके कार्यों में सहयोग के लिए लिया था.

शिव

इनका जिक्र सिर्फ स्वरूप वर्णन के लिए होता है और उनकी अवधि कम रहने के कारण उनकी कम चर्चा होती है. जैसे त्रेतायुग में राम अवतार के समय हनुमान शिव के रुद्रावतार ही थे. इसके अलावा द्वापर युग में शिव, अर्जुन को दर्शन देने किरात रूप में आते हैं. 

भगवान शिव के 19 अवतार: वीरभद्र, पिप्पलाद, नंदी, भैरव, अश्वत्थामा, शरभ, गृहपति, ऋषि दुर्वासा, हनुमान, वृषभ, यतिनाथ, कृष्णदर्शन, अवधूत, भिक्षुवर्य, सुरेश्वर, किरात, ब्रह्मचारी, सुनटनतर्क, यक्ष.

तंत्र विद्या में शिव के दशावतारः भगवान विष्णु के दशावतारों की ही तरह शिवजी के भी दश अवतारों का वर्णन होता है. हालांकि यह दशावतार, दस महाविद्या से संबंधित हैं और तंत्र विद्या में शामिल हैं. इसमें महाकाल सबसे प्रमुख देवता हैं.  इनके नाम हैं. 

1.महाकाल, 2.तारा, 3.भुवनेश, 4.षोडश, 5.भैरव, 6.छिन्नमस्तक गिरिजा, 7.धूम्रवान, 8.बगलामुख, 9.मातंग और 10.कमल.

 

शिव

भगवान शिव के विवाह
पौराणिक कथाओं के अनुसार शिवजी का दो बार विवाह हुआ, जिनमें विवाह की रीतियां अपनाई गई थीं. इस तरह से उनकी पहली पत्नी दक्ष प्रजापति की पुत्री सती थीं. दक्ष ने आदिशक्ति से पुत्री रूप में आने का वरदान मांगा था. इसलिए सती उन्हीं शक्ति का रूप थीं. शिवजी से उनका पहला विवाह हुआ. बाद में सती ने दक्ष यज्ञ में खुद को भस्म कर लिया था और फिर पर्वतराज हिमालय के घर पार्वती रूप में जन्मीं. शिव-पार्वती विवाह की कथा सबसे प्रचलित कथा है. इस तरह शिवजी की दो पत्नियों के नाम स्पष्ट हुए, हालांकि दोनों एक ही स्वरूप हैं. 

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इसके अलावा शिव के जो भी अवतार रहे हैं, उनमें उनकी पत्नियां उसी अनुसार नाम वाली हो गईं हैं. जैसे जब शिव महेश कहलाए तो पार्वती उमा हो गईं. इस तरह उमा-महेश्वर नाम प्रचलित हुआ. महाकाल की पत्नी महाकाली हैं. चंड की पत्नी चंडिका हैं. वीरभद्र की शक्ति (पत्नी) भद्रकाली हैं. भैरव की पत्नी भैरवी, मातंग की पत्नी मातंगी, षोडश की पत्नी षोडशी हैं. ये सभी अलग-अलग नहीं हैं, स्वरूप वर्णन हैं. पर्यायवाची हैं.

शिवरात्रि

भगवान शिव के पुत्र
भगवान शिव के आठ पुत्र माने जाते हैं. पहले हैं कार्तिकेय, जिन्हें मुरुगन, सुब्रह्मण्यम और स्कंद भी कहा जाता है. दूसरे हैं गणेश. शिवजी का तीसरा पुत्र सुकेश था. यह शिव-पार्वती का दत्तक पुत्र था. इसी पुत्र से राक्षस जाति का विस्तार हुआ. सुकेश शिव-पार्वती के संरक्षण में धर्मात्मा हुआ, लेकिन इसके तीन पुत्र हुए माल्यवान, माली और सुमाली. सुमाली ही रावण का नाना था. 

शिवजी का चौथा पुत्र जलंधर था. जलंधर का जन्म उनकी तीसरी आंख से निकले तेज से हुआ था, जिसे सागर में एक मछली ने निगल लिया था. बाद में उसे असुरों का संरक्षण मिला और वह इंद्र समेत देवताओं का शत्रु बन गया. एक दिन जलंधर ने विष्णु पत्नी लक्ष्मी पर बुरी नजर डाली, इसके बाद शिवजी ने भीषण युद्ध में जलंधर का वध कर दिया. मानते हैं कि आज के जालंधर में ही जलंधर की राजधानी थी. 

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शिव के पांचवें पुत्र के रूप में मंगल का नाम आता है. एक बार शिव के पसीने की बूंद से भूमि गर्भवती हो गई. भूमि का यही पुत्र भौम कहलाया. भौम उग्र स्वभाव का था, लेकिन नारद मुनि के समझाने पर और शिव पंचाक्षरी नाम जपने के कारण वह अपनी उग्रता को नियंत्रित करने में सक्षम रहा. भौम ने मंगलकारी स्त्रोतों की रचना की और वरदान स्वरूप भौम को ग्रहमंडल में जगह दी गई, जहां उसका नाम मंगल पड़ गया. 

शिवजी के छठे पुत्र का नाम अयप्पा है. केरल के सबरीमला में ऊंची पहाड़ी पर भगवन अयप्पा का स्थान है. वह भगवान शिव और मोहिनी के पुत्र हैं, इसलिए उन्हें हरिहर पुत्र कहा जाता है. मकर संक्रांति के मौके पर दक्षिण भारत में अयप्पा के प्रसिद्ध मंदिर में दर्शन के लिए लोगों की भीड़ पहुंचती है.

 

इसके अलावा असुर अंधक को भी शिवपुत्र माना जाता है. एक बार खेल-खेल में पार्वती ने शिव की आंखें ढंक दी और उस अंधकार से अंधकासुर का जन्म हुआ. अंधकासुर का पालन-पोषण हिरण्याक्ष के घर हुआ, लेकिन अपने पछतावे के कारण पार्वती भी अंधक का ध्यान रखती थीं. युवा होता अंधक पार्वती में माता का स्वरूप नहीं देख पाया और उन्हें पाने की लालसा में कैलाश पर हमला कर दिया. तब शिव ने अंधक का वध कर दिया. 

शिव के आठवें पुत्र को तड़ित नाम से जाना जाता है. इन्हें खुजा भी कहते हैं. वह शिव के तेज से बिजली जैसी आभा के रूप में उत्पन्न हुए थे और सीधे आकाश में चले गए थे. बादलों की टक्कर में यही तड़ित मौजूद होते हैं. 

भगवान शिव की पुत्रियां
भगवान शिव की छह पुत्रियां भी हैं. उनकी पहली और बड़ी पुत्री का नाम अशोक सुंदरी हैं. अशोक सुंदरी का जन्म पार्वती की कल्पना से हुआ था. वह कल्पवृक्ष के नीचे बैठकर अपने शैलपुत्री स्वरूप का ध्यान कर रही थीं और वैसी ही पुत्री की कामना कर रही थीं. इसी कामना और कल्पना के मिश्रित भाव से एक हंसमुख कन्या प्रकट हुई. उसने पार्वती के शोक का निवारण किया था, इसलिए वह अशोक सुंदरी कहलाईं. अशोक सुंदरी का विवाह चंद्रवंशी राजा नहुष से हुआ था, जिसे आगे जाकर इंद्र पद भी मिला था.

शिवरात्रि

इसके अलावा शिवजी की अन्य पांच नाग पुत्रियां भी हैं. कैलाश में स्नान करते हुए शिव की जटा से गिरते जल में मिले स्वेद (पसीने) को वहां मौजूद नाग पत्नियों ने उन्हें पी लिया. इससे पांच नाग कन्याओं का जन्म हुआ. इनमें एक हैं मनसा देवी, जिन्हें विषहरी कहा जाता है. इसके अलावा उनकी चार पुत्रियां जया, शामिलबारी, देव और दोतलि हैं. बिहार और बंगाल में सावन की पंचमी में इनकी बड़े पैमाने पर पूजा की जाती है. इन पंच कन्याओं के स्मरण से सर्पदंश का भय नहीं रहता है. 

शिवरात्रि

शिव पंचायत क्या है?
पौराणिक कथाओं के अनुसार, शिव पंचायत देवताओं-दैत्यों, सुरों-असुरों, यक्षों-राक्षसों, मानवों-दानवों के बीच किसी भी तरह के होने वाले विवाद का फैसला करने के लिए स्थापित पंच है. इसमें पांच देव शामिल हैं. जिनमें सूर्य, गणपति, शिव, शक्ति और विष्णु शामिल हैं. इन्हीं की एक साथ स्थापना को शिव पंचायत कहते हैं. किसी भी विवाद में शिव पंचायत का फैसला सर्वमान्य होता था. घरों में और किसी भी अनुष्ठान में शिव पंचायत का पूजा का विधान है. भारत में शिव पंचायत के कई प्राचीन मंदिर मिलते हैं.

शिव परिवार क्या है
शिव जी के परिवार में खुद महादेव, देवी पार्वती, उनके पुत्र कार्तिकेय, श्रीगणेश और नंदी शामिल हैं. इन्हीं पांचों का समूह शिव परिवार कहलाता है. शिव परिवार इसलिए भी महत्वपूर्ण और पूजनीय है क्योंकि यह अपने आप में विरोधाभास का प्रतीक भी है. फिर भी एक साथ और सम्मिलित है. यही संतुलन की व्याख्या है. गणेशजी के चूहे को शिवजी के नाग से डर है. नाग को कार्तिकेय के वाहन मोर से डर है. मोर खुद बैल के सींगों से डरता है और बैल को देवी पार्वती के वाहन सिंह का डर है. इसके बावजूद शिव परिवार में एकता और संतुलन है.

शिवजी के गण कौन-कौन हैं?
भैरव, वीरभद्र, मणिभद्र, चंडीश, नंदी, श्रृंगी, भृंगी, भृगिरिटी, गोकर्ण, घंटाकर्ण, शैल, जय और विजय उनके प्रमुख गण हैं.

शिव पार्षदः बाण, रावण, चंड, नंदी, भृंगी

द्वारपाल- स्कंद, रिटी, वृषभ, उमेश्वर, महेश्वर, गणाध्यक्ष और महाकाल

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