होली का त्योहार मान्यताओं और परंपराओं का समागम है. इस त्योहार को देशभर के लोग हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं. इस दिन कहीं फूलों की होली होती है तो कहीं लोग एक दूसरे पर लट्ठ बरसाते हैं. लेकिन क्या कभी आपने सुना है कि आग के जलते अंगारों से भी होली खेली जाती हो. इस पर यकीन कर पाना थोड़ा मुश्किल जरूर हो सकता है. लेकिन देश में कई जगहों पर ऐसे ही कुछ अनोखे अंदाज में होली मनाई जाती है. आइए जानते हैं आखिर देश के किस हिस्से में मनाई जाती है ऐसी अजीबोगरीब होली.
सबसे पहले बात करते हैं मध्यप्रदेश के मालवा और कर्नाटक के कई इलाकों में खेले जाने वाली होली के बारे में. यहां होली के दिन एक-दूसरे पर जलते अंगारे फेंकने का चलन है. मान्यता है कि ऐसा करने से होलिका राक्षसी मर जाती है.
मध्यप्रदेश के भील आदिवासियों में होली के दिन जीवनसाथी से मिलने की परंपरा है. हालांकि यह प्रथा आजाद ख्यालों से जुड़ी होने के साथ काफी मजेदार भी है. इस दिन यहां एक हाट में बाजार लगाया जाता है. इस बाजार में लड़के-लड़कियां अपने लिए लाइफ पार्टनर तलाशने के लिए आते हैं. इसके बाद ये आदिवासी लड़के एक खास तरह का वाद्ययंत्र बजाते हुए डांस करते-करते अपनी मनपसंद लड़की को गुलाल लगा देते हैं. अगर उस लड़की को भी वो लड़का पसंद होता है तो लड़की भी बदले में उस लड़के को गुलाल लगाती है. दोनों की रजामंदी के बाद दोनों की शादी हो जाती है.
राजस्थान के बांसवाड़ा में रहने वाली जनजातियों के बीच खेली जाने वाली होली में गुलाल के साथ होलिका दहन की राख पर चलने की परंपरा है. यहां के लोग राख के अंदर दबी आग पर चलते हैं. इसके अलावा यहां एक-दूसरे पर पत्थरबाजी भी करने का रिवाज होता है. इस प्रथा के पीछे एक मान्यता प्रचलित है कि इस होली को खेलने से जो खून निकलता है, उससे व्यक्ति का आने वाला समय बेहतर बनता है.
राजस्थान के पुष्करणा ब्राह्मण के चोवटिया जोशी जाति के लोग होली पर खुशियों की जगह शोक मनाते हैं. इस दिन घरों में चूल्हे नहीं जलते हैं. ये शोक ठीक वैसा ही होता है जैसे घर में किसी की मौत हो गई हो. ऐसा करने के पीछे एक पुरानी कहानी बताई जाती है. कहते हैं कि सालों पहले इस जनजाति की एक महिला होलिका दहन के दिन होलिका की परिक्रमा कर रही थी. उसके हाथ में उसका बच्चा भी था. लेकिन वो बच्चा आग में फिसलकर गिर गया. बच्चे को बचाने के लिए महिला भी आग में कूद गई. इस तरह दोनों की मौत हो गई. मरते वक्त महिला ने वहां मौजूद लोगों से कहा कि अब होली पर कभी कोई खुशी मत मनाना. तब से ये प्रथा आज भी निभाई जा रही है.
हरियाणा के कैथल जिले के दूसरपुर गांव में होली का त्योहार नहीं मनाया जाता है. कहते हैं कि इस गांव को एक बाबा ने श्राप दिया था. दरअसल संत गांव के एक व्यक्ति से नाराज हो गए थे. इसके बाद उन्होंने होलिका की आग में कूदकर जान दे दी. जलते हुए बाबा ने गांव को श्राप दिया कि अब यहां कभी भी होली मनाई गई तो अपशगुन होगा. इस डर से भयभीत गांव के लोगों ने सालों बीत जाने के बाद भी कभी होली नहीं मनाई.