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Pradosh Vrat May 2022 Date: इस दिन रखा जाएगा ज्येष्ठ माह का पहला प्रदोष व्रत, जानें डेट, पूजा विधि और कथा

Pradosh Vrat 2022 Date & Shubh Muhurat : प्रदोष व्रत हर महीने में दो बार आता है. कृष्ण और शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि में शाम के समय को प्रदोष कहा गया है. आज शुक्र प्रदोष (Pradosh Vrat 2022) व्रत है. जो प्रदोष शुक्रवार के दिन आता है उसे शुक्र प्रदोष कहते हैं.

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Pradosh Vrat Date & Shubh Muhurat
Pradosh Vrat Date & Shubh Muhurat
स्टोरी हाइलाइट्स
  • हर महीने में आते हैं दो प्रदोष व्रत
  • प्रदोष व्रत को त्रयोदशी व्रत के नाम से भी जाना जाता है

प्रदोष व्रत को त्रयोदशी व्रत के नाम से भी जाना जाता है. प्रदोष व्रत हर महीने में दो बार आता है एक शुक्ल पक्ष में और एक कृष्ण पक्ष में. सूरज ढलने के बाद के समय और रात होने से पहले के समय को प्रदोष काल कहा जाता है. इस व्रत के दौरान भगवान शिव की पूजा की जाती है. माना जाता है इस दिन सच्चे मन से और पूरे विधि-विधान से भगवान शिव की पूजा करने से मनचाही वस्तु की प्राप्ति होती है. हिंदू धर्म में वैसे तो हर दिन का महत्व होता है लेकिन प्रदोष व्रत के दिन को काफी खास माना जाता है. ज्येष्ठ मास का पहला प्रदोष व्रत 27 मई 2022 को शुक्रवार के दिन रखा जाएगा. जानते हैं प्रदोष व्रत का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और महत्व.

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प्रदोष व्रत शुभ मुहूर्त (Pradosh Vrat 2022 Shubh Muhurat)

प्रदोष व्रत 27 मई, 2022, शुक्रवार को,

प्रारम्भ - 27 मई, सुबह 11 बजकर 47 मिनट पर

समाप्त - 28 मई, शाम 1 बजकर 9 मिनट पर 

प्रदोष व्रत का महत्व

हिंदू धर्म में प्रदोष व्रत को काफी शुभ और खास माना जाता है. इस दिन भगवान शिव की पूजा-अर्चना करने से व्यक्ति के सभी दुख दूर होते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है. पुराणों के अनुसार, प्रदोष व्रत करने का फल दो गायों के दान जितना होता है. माना जाता है कि जो व्यक्ति प्रदोष व्रत रखता है उसके पुराने सभी पाप दूर हो जाते हैं और मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है. 

प्रदोष व्रत पूजा विधि (Pradosh Vrat Puja Vidhi)

- इस दिन सुबह जल्दी उठें और स्नान करने के बाद साफ कपड़े पहनें.

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- उसके बाद बेलपत्र, अक्षत, दीप, धूप, गंगाजल से भगवान शिव की पूजा करें. 

- प्रदोष व्रत के दिन भोजन ग्रहण नहीं किया जाता है. 

- पूरा दिन व्रत रखने के बाद सूर्यास्त से कुछ देर पहले दोबारा से स्नान करें और सफेद रंग के कपड़े पहनें. 

- इसके बाद गंगाजल से पूजा स्थल को साफ कर लें.

- फिर गाय के गोबर से मंडप बनाएं. 

- पूजा की तैयारी करने के बाद उत्तर-पूर्व दिशा में मुंह करके कुश के आसन पर बैठें. 

- इसके बाद भगवान शिव के मंत्रों को जाप करें और जल चढ़ाएं. 

प्रदोष व्रत कथा (Pradosh Vrat Katha)

स्कंद पुराण में वर्णित एक कथा के अनुसार, प्राचीन काल में एक विधवा ब्राह्मणी अपने पुत्र को लेकर भिक्षा लेने जाती थी और संध्या को लौटती थी. एक दिन जब वह भिक्षा लेकर लौट रही थी तो उसे नदी किनारे एक सुन्दर बालक दिखाई दिया जो विदर्भ देश का राजकुमार धर्मगुप्त था. शत्रुओं ने उसके पिता को मारकर उसका राज्य हड़प लिया था. उसकी माता की मृत्यु भी अकाल हुई थी. ब्राह्मणी ने उस बालक को अपना लिया और उसका पालन-पोषण किया.

कुछ समय पश्चात ब्राह्मणी दोनों बालकों के साथ देवयोग से देव मंदिर गई. वहां उनकी भेंट ऋषि शाण्डिल्य से हुई. ऋषि शाण्डिल्य ने ब्राह्मणी को बताया कि जो बालक उन्हें मिला है वह विदर्भ देश के राजा का पुत्र है जो युद्ध में मारे गए थे और उनकी माता को ग्राह ने अपना भोजन बना लिया था. ऋषि शाण्डिल्य ने ब्राह्मणी को प्रदोष व्रत करने की सलाह दी. ऋषि आज्ञा से दोनों बालकों ने भी प्रदोष व्रत करना शुरू किया. एक दिन दोनों बालक वन में घूम रहे थे तभी उन्हें कुछ गंधर्व कन्याएं नजर आई. ब्राह्मण बालक तो घर लौट आया किंतु राजकुमार धर्मगुप्त 'अंशुमती' नाम की गंधर्व कन्या से बात करने लगे. गंधर्व कन्या और राजकुमार एक दूसरे पर मोहित हो गए. कन्या ने विवाह हेतु राजकुमार को अपने पिता से मिलवाने के लिए बुलाया.

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दूसरे दिन जब वह पुन: गंधर्व कन्या से मिलने आया तो गंधर्व कन्या के पिता ने बताया कि वह विदर्भ देश का राजकुमार है. भगवान शिव की आज्ञा से गंधर्वराज ने अपनी पुत्री का विवाह राजकुमार धर्मगुप्त से कराया. इसके बाद राजकुमार धर्मगुप्त ने गंधर्व सेना की सहायता से विदर्भ देश पर पुनः आधिपत्य प्राप्त किया. यह सब ब्राह्मणी और राजकुमार धर्मगुप्त के प्रदोष व्रत करने का फल था. स्कंदपुराण के अनुसार, जो भक्त प्रदोष व्रत के दिन शिवपूजा के बाद एकाग्र होकर प्रदोष व्रत कथा सुनता या पढ़ता है उसे सौ जन्मों तक कभी दरिद्रता नहीं होती.


 

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