सावन में मां मंगला गौरी के व्रत का महत्व भी भगवान शिव की उपासना जितना है. मंगला गौरी का व्रत करने से विवाह और वैवाहिक जीवन की हर समस्या दूर की जा सकती है. अगर कुंडली में मंगल दोष बाधा उत्पन्न कर रहा है तो इस दिन की पूजा अत्यधिक लाभदायी होती है. यह व्रत पति की लंबी आयु के लिए भी रखा जाता है. इस बार सावन का पहला मंगला गौरी का व्रत मंगलवार, 27 जुलाई को पड़ रहा है.
मंगल गोरी व्रत करने की विधि
इस व्रत के दौरान ब्रह्म मुहूर्त में जल्दी उठें. नित्य कर्मों से निवृत्त होकर साफ-सुथरे धुले हुए अथवा नए वस्त्र धारण कर व्रत करना चाहिए. इस व्रत में एक ही समय अन्न ग्रहण करके पूरे दिन मां पार्वती की आराधना की जाती है. मां मंगला गौरी (पार्वतीजी) का एक चित्र अथवा प्रतिमा लें. फिर 'मम पुत्रापौत्रासौभाग्यवृद्धये श्रीमंगलागौरीप्रीत्यर्थं पंचवर्षपर्यन्तं मंगलागौरीव्रतमहं करिष्ये’ इस मंत्र के साथ व्रत करने का संकल्प लेना चाहिए.
मंगला गौरी की व्रत कथा
पौराणिक ग्रंथों के अनुसार, धर्मपाल नाम का एक सेठ था. सेठ धर्मपाल के पास धन की कोई कमी नहीं थी, लेकिन उनकी कोई संतान नहीं थी. वह हमेशा सोच में डूबा रहता कि अगर उसकी कोई संतान नहीं हुई तो उसका वारिस कौन होगा? कौन उसके व्यापार की देख-रेख करेगा?
इसके बाद गुरु के परामर्श के अनुसार, सेठ धर्मपाल ने माता पार्वती की श्रद्धा पूर्वक पूजा उपासना की. खुश होकर माता पार्वती ने उसे संतान प्राप्ति का वरदान दिया, लेकिन संतान अल्पायु होगी. कालांतर में धर्मपाल की पत्नी ने एक पुत्र को जन्म दिया.
इसके बाद धर्मपाल ने ज्योतिषी को बुलाकर पुत्र का नामांकरण करवाया और उन्हें माता पार्वती की भविष्यवाणी के बारे में बताया. ज्योतिषी ने धर्मपाल को राय दी कि वह अपने पुत्र की शादी उस कन्या से कराए जो मंगला गौरी व्रत करती हो. मंगला गौरी व्रत के पुण्य प्रताप से आपका पुत्र दीर्घायु होगा.
यह व्रत महिलाएं अपने सुहाग की लंबी उम्र और पुत्र प्राप्ति के लिए करती हैं. सेठ धर्मपाल ने अपने इकलौते पुत्र का विवाह मंगला गौरी व्रत रखने वाली एक कन्या से करवा दिया. कन्या के पुण्य प्रताप से धर्मपाल का पुत्र मृत्यु पाश से मुक्त हो गया. तभी से मां मंगला गौरी के व्रत करने की प्रथा चली आ रही है.
ये भी पढ़ें: