हर महीने की शुक्ल और कृष्ण पक्ष में प्रदोष का व्रत आता है. ये व्रत भगवान शिव को समर्पित है. पुराणों के अनुसार इस व्रत को करने से लम्बी आयु का वरदान प्राप्त होता है. प्रदोष व्रत जब शनिवार के दिन पड़ता है उसे शनि प्रदोष व्रत कहते हैं. शनि प्रदोष का व्रत (Shani Pradosh Vrat 2020) करने वालों को भगवान शिव के साथ-साथ शनि की भी कृपा भी प्राप्त होती है. इस साल का आखिरी शनि प्रदोष व्रत 12 दिसंबर को है.
शनि प्रदोष व्रत की पूजा विधि
शनि प्रदोष व्रत में शाम का समय शिव पूजन के लिए अच्छा माना जाता है. इस दिन सभी शिव मन्दिरों में शाम के समय प्रदोष मंत्र के जाप किए जाते हैं. शनि प्रदोष के दिन सूर्य उदय होने से पहले उठें और स्नान करके साफ कपड़े पहनें. गंगा जल से पूजा स्थल को शुद्ध कर लें. बेलपत्र, अक्षत, दीप, धूप, गंगाजल आदि से भगवान शिव की पूजा करें. ऊँ नम: शिवाय मंत्र का जाप करें और शिव को जल चढ़ाएं. शनि की आराधना के लिए सरसों के तेल का दीया पीपल के पेड़ के नीचे जलाएं. एक दीया शनिदेव के मंदिर में जलाएं. व्रत का उद्यापन त्रयोदशी तिथि पर ही करें.
शनि प्रदोष व्रत का महत्व
शनि प्रदोष व्रत को हिन्दू धर्म में बहुत शुभ माना जाता है. शनि प्रदोष का व्रत करने वालों को भोले शंकर के साथ शनि देव का भी आशीर्वाद मिलता है. मान्यता है कि ये व्रत रखने वाले जातकों के सारे कष्ट दूर हो जाते हैं और मृत्यु के बाद उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है. पुराणों के अनुसार प्रदोष के समय भगवान शिव कैलाश पर्वत पर नृत्य करते हैं. इसी वजह से लोग शिव जी को प्रसन्न करने के लिए इस दिन प्रदोष व्रत रखते हैं.