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Holi 2022: नवाब वाजिद अली शाह ने जब मुहर्रम पर भी खेली थी होली, ये है पूरा किस्सा

Holi 2022: नवाब वाजिद अली शाह होली खेलने के बेहद शौकीन थे. कहा जाता है कि उन्होंने मुहर्रम के मातम के दौरान भी होली खेली थी. आइए जानते हैं होली के लिए उनके प्यार की इस कहानी के बारे में. 

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होली का इतिहास काफी पुराना है (Representative Image- Getty Images)
होली का इतिहास काफी पुराना है (Representative Image- Getty Images)
स्टोरी हाइलाइट्स
  • नवाब वाजिद अली शाह थे होली खेलने के शौकीन
  • मुहर्रम के दिन नवाब ने खेली थी होली

गंगा-जमुनी तहजीब वाले उत्तर प्रदेश में होली का उत्सव आज से नहीं बल्कि नवाबों के समय से मनाया जाता रहा है. अवध में कुछ नवाब तो ऐसे भी हुए जिनके होली प्रेम की वजह से वो आज भी याद किए जाते हैं. ऐसे ही नवाबों की लिस्ट में शामिल है अवध के आखिरी नवाब वाजिद अली शाह का. नवाब वाजिद अली शाह होली खेलने के बेहद शौकीन थे. कहा जाता है कि उन्होंने मुहर्रम के मातम के दौरान भी होली खेली थी. आइए जानते हैं होली के लिए उनके प्यार की इस कहानी के बारे में. 

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नवाब वाजिद अली शाह न सिर्फ खुद बेहद उत्साह के साथ होली खेलते थे, बल्कि उन्होंने होली पर कई कविताएं भी रची थीं. उनके जीवन से जुड़ा एक दिलचस्प किस्सा होली के लिए उनके प्यार और अवध के लोगों के बीच भाईचारे को बताने के लिए काफी है.

नवाब वाजिद अली शाह के शासन के दौरान एक बार ऐसा हुआ कि संयोग से होली और मुहर्रम एक ही दिन पड़ गए. होली हर्षोल्लास का मौका होता है, जबकि मुहर्रम मातम का दिन माना जाता है. ऐसे में हिंदुओं ने मुसलमानों की भावनाओं की कद्र करते हुए उस साल होली न मनाने का फैसला कर लिया. लेकिन जल्द ही इस बात की सूचना नवाब वाजिद अली शाह को मिल गई.

नवाब वाजिद अली शाह ने जब होली न मनाने की वजह पूछी तो उन्हें इसकी वजह बताई गई.  इसके बाद वाजिद अली शाह ने कहा चूंकि हिंदुओं ने मुसलमानों की भावनाओं का सम्मान किया है इसलिए अब ये मुसलमानों का फर्ज है कि वो भी हिंदुओं की भावनाओं का सम्मान करें.

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नवाब वाजिद अली शाह ने इसके बाद घोषणा करवाकर सबको सूचित किया कि पूरे अवध में उसी दिन होली मनाई जाएगी. खास बात यह कि वो खुद इस होली में हिस्सा लेने के लिए पहुंचेंगे.

नवाब वाजिद अली शाह अपनी इस घोषणा के बाद पहले व्यक्ति थे जो होली खेलने वालों में सबसे पहले शामिल हुए. नवाब वाजिद अली शाह की प्रसिद्ध ठुमरी भी है- 'मोरे कन्हैया जो आए पलट के, अबके होली मैं खेलूंगी डटके उनके पीछे मैं चुपके से जाके, रंग दूंगी उन्हें भी लिपटके'.

नवाब वाजिद अली शाह 'ठुमरी' संगीत विधा के जन्मदाता के रूप में जाने जाते हैं. उनके दरबार में हर रोज संगीत का जलसा हुआ करता था. इनके समय में ठुमरी को कत्थक नृत्य के साथ गाया जाता था.

नवाब वाजिद अली शाह ने कई बेहतरीन ठुमरियां रचीं. माना जाता है कि अवध पर कब्जा करते समय अंग्रेजों ने जब नवाब वाजिद अली शाह को देश निकाला दे दिया था तो उन्होने 'बाबुल मोरा नैहर छूटो जाय्' इस प्रसिद्ध ठुमरी को गाते हुए सबको अलविदा कहा था.  वाजिद अली शाह अमजद अली शाह के पुत्र थे. ये लखनऊ और अवध के नवाब रहे. इनके बेटे बिरजिस कद्र अवध के अंतिम नवाब रहे. 

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