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आस्था का महापर्व

महाकुंभ 2025 का ऐतिहासिक और दिव्य आयोजन उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में संपन्न हुआ, जिसमें करोड़ों श्रद्धालुओं ने संगम में स्नान कर पुण्य अर्जित किया. हर 12 वर्षों में आयोजित होने वाले इस आयोजन का धार्मिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक महत्व अतुलनीय है.

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महाकुंभ: आस्था और
संस्कृति का संगम

महाकुंभ भारत का सबसे बड़ा धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजन है, जो हर 12 साल में चार पवित्र स्थानों—प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक—में आयोजित होता है. करोड़ों श्रद्धालु गंगा, यमुना, सरस्वती, गोदावरी और क्षिप्रा नदियों के पवित्र जल में स्नान करके अपने पापों से मुक्ति पाने और मोक्ष प्राप्ति की कामना करते हैं. महाकुंभ का आयोजन धार्मिक मान्यताओं, ज्योतिषीय गणनाओं, और ऐतिहासिक परंपराओं पर आधारित है. यह केवल धार्मिक उत्सव नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति, आध्यात्मिकता और एकता का प्रतीक भी है, जो देश-विदेश के श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है.

कुंभ कथाएं
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महाकुंभ की महिमा

पुराणों में मिलता है वर्णन

कुंभ आयोजन का आधार एक पौराणिक कथा है. इसके मुताबिक, सागर से अमृत खोजने के लिए मंथन हुआ. इस मंथन से मिले अमृत की बूंदें जिन चार जगहों पर नदियों में गिरीं, वहां कुंभ आयोजन होते हैं. इस कथा का पूरा वर्णन विष्णु पुराण, कूर्म पुराण, स्कंद पुराण, भागवत पुराण और ब्रह्मवैवर्त पुराण में मिलता है. इसके अलावा कुंभ से जुड़ी कई दंतकथाएं भी लोगों के बीच काफी मशहूर हैं.

2500 साल पहले कुंभ!

कुंभ आयोजन का सबसे प्राचीन वर्णन करीब 2500 साल पहले का मिलता है. चंद्रगुप्त मौर्य के समय (321-297 ईसा पूर्व) में यूनानी राजदूत और यात्री मेगस्थनीज उनके दरबार में आया था. यात्रा पर आधारित अपनी पुस्तक इंडिका में मेगस्थनीज ने गंगा नदी को लेकर भारतीय जनमानस की मान्यताओं का जिक्र किया है. उन्होंने सीधे तौर पर ‘कुंभ’ शब्द का इस्तेमाल तो नहीं किया है, लेकिन उन्होंने नदियों में लोगों के बड़े हुजूम के स्नान करने और उनके किनारे बड़े धार्मिक समारोह के आयोजन का जिक्र जरूर किया है.

कुंभ में कपड़े तक दान करने वाला राजा

वैसे तो कुंभ मेले का संबंध समुद्र मंथन से जुड़े पौराणिक कथाओं से बताया जाता है, लेकिन इसका व्यवस्थित और व्यापक रूप से आयोजित होना सम्राट हर्षवर्धन के समय (606-647 ईस्वी) में प्रमुखता से उभरता है. हर्षवर्धन के बारे में ये आम है कि वह हर कुंभ आयोजन के दौरान अपनी सारी संपत्ति दान कर देते थे. हर्ष ने एक बार अपने कपड़े तक दान कर दिए और अपनी बहन की पोशाक पहन कर महल लौटे थे.

चीनी ह्वेनसांग ने भी किया प्रयाग कुंभ का जिक्र

सम्राट हर्षवर्धन के समय भारत आए चीनी यात्री ह्वेनसांग भी प्रयाग में कुंभ के साक्षी बने. अपनी किताब ‘सी-यू-की’ में वह लिखते हैं कि देशभर के शासक धार्मिक पर्व में दान देने प्रयाग आते थे. उनके मुताबिक, संगम किनारे स्थित पातालपुरी मंदिर में एक सिक्का दान करना हजार सिक्कों के दान के बराबर पुण्य वाला माना जाता था. स्पष्ट है कि प्रयाग में मौजूद पातालपुरी मंदिर का इतिहास भी हजारों साल पुराना है.

जब बादशाह अकबर पहुंचा प्रयागराज

मुगल बादशाह अकबर के शासनकाल और उसकी जिंदगी को पन्नों में समेटती किताब है अकबरनामा. अबुल फ़ज़ल ने इसे 1589 से 1596 के बीच लिखा था, जिसमें वह प्रयाग का जिक्र 'पयाग' नाम से करता है. किताब के मुताबिक, 1567 में अकबर पयाग पहुंचा था. वह हिंदू लोगों के बीच मशहूर बड़े आयोजनों के प्रति आकर्षित था और उसे देखने गया था. बादशाह चाहता था कि गंगा-जमुना के मिलने वाली इस पाक जमीन पर दुर्ग बनाया जाए.

महत्वपूर्ण तिथियां

पौष पूर्णिमा

पौष पूर्णिमा
13 January 2025
हिंदू पंचांग के अनुसार पौष माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को पौष पूर्णिमा पड़ती है. यह पौष मास की शुक्ल पक्ष की अंतिम तिथि का नाम है. इस दिन पूर्ण चंद्र दिखाई देता है इसलिए पूर्णिमा की पवित्र तिथि होती है. इस दिन सूर्य एवं चंद्र की पूजा एवं आराधना तथा गंगा में स्नान करना बहुत शुभ माना जाता है. धार्मिक मान्यता के अनुसार ऐसा करने से जीवन के सभी कष्ट दूर होते हैं और सभी मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं. पौष पूर्णिमा से ही कल्पवास का प्रारम्भ होता है. इस दिन कल्पवास का संकल्प लिया जाता है, जो माघी पूर्णिमा तक एक महीने की कठिन आध्यात्मिक तप तथा श्रद्धा को प्रदर्शित करता है.
पौष पूर्णिमा
13
January
2025
मकर संक्रांति
14
January
2025
मौनी अमावस्या
29
January
2025
वसन्त पञ्चमी
03
February
2025
माघी पूर्णिमा
12
February
2025
महाशिवरात्रि
26
February
2025
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महत्वपूर्ण घाट
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रसूलाबाद घाट: यह घाट शहर के उत्तरी क्षेत्र में स्थित रसूलाबाद मुहल्ले में गंगा तट पर है. हमेशा आजाद रहने वाले अमर शहीद चंद्रशेखर आजाद का अंतिम संस्कार इसी घाट पर किया गया था, इसलिए इसका महत्व भारतीय इतिहास के कारण भी बढ़ जाता है. यहां पर पक्का घाट बनाया गया है. जहां पर वर्ष भर लोग आकर स्नान-दान और ध्यान करते हैं.

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