आज चंद्र ग्रहण लगने वाला है. ये ग्रहण अपराह्न 4 बजकर 39 मिनट से 4 बजकर 58 तक पूर्ण चंद्र ग्रहण रहेगा. इससे पूर्व 3 बजकर 15 मिनट से इसका आरंभ होगा जो शाम 6 बजकर 23 मिनट तक रहेगा. यह भारत में पश्चिम बंगाल के कुछ हिस्सों, ओडिशा के तटीय भागों और अंडमान निकोबार में आंशिक रूप से नजर आएगा. ज्योतिषी अरुणेश कुमार शर्मा आज के चंद्र ग्रहण के बारे में बता रहे हैं अहम बातें-
चंद्रगहण का मूल क्षेत्र ऑस्ट्रेलिया, एशिया, अंटाकर्टिका, उत्तर-दक्षिण अमेरिका, प्रशांत और हिन्द महसागर में होगा. चंद्रग्रहण का सूतक सामान्यतः 9 घंटे पहले आरंभ होता है. भारत में इस बार सूतक अमान्य है. इसलिए धार्मिक और सांस्कृतिक मान्यताएं ग्रहण पर लागू नहीं होंगी.
चंद्रग्रहण एक अतिमहत्वपूर्ण खगोलीय घटना है. इसके प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष प्रभाव पृथ्वी पर देखे जाते हैं. इस कारण ग्रहणकाल में कुछ सावधानियां अपनाना बेहतर होगा. सनातन महर्षियों के अनुसार, ग्रहणकाल को शेषनाग की हलचल माना जाता है. इससे पृथ्वी प्रभावित होती है. पृथ्वी वासियों के लिए यह समय सतर्कता और संक्रमण का होता है.
ज्योतिषानुसार चंद्रग्रहण का प्रभाव प्रत्येक जीव और जड़ वस्तु पर पड़ता है. इस दौरान अत्यधिक शारीरिक मेहनत से बचने की सलाह दी जाती है. गहन मानसिक कार्यों से भी दूरी रखें. ग्रहण के दौरान अग्निकर्म व मशीनरी के प्रयोग को त्याज्य माना जाता है. सनातनी परम्परा में यज्ञादि कर्म निषेध रखे जाते हैं. भजन-कीर्तन और जप के माध्यम से ईश्वर को याद किया जाता है. ग्रहण अमान्य होने पर भी इन बातों का पालन करना चाहिए.
इसके साथ ही ग्रहणकाल के दौरान जल राशियों से दूर रहना चाहिए. कुआं, तालाब, बावड़ी, नदी और समुद्र से दूर रहना चाहिए. घर में भी जल का अनावश्यक संग्रह करने से बचें.
चंद्रग्रहण जल तत्व की राशि वृश्चिक में घटित होगा. यह चंद्रमा की नीच राशि है. मंगल ग्रह राशि के स्वामी है. मंगल वर्तमान संवत्सर 2078 के राजा और मंत्री दोनों हैं. मंगल पृथ्वी तत्व के कारक ग्रह हैं. ऐसे में नीचस्थ चंद्रमा को ग्रहण लगना जल और पृथ्वी तत्वों में बड़ी हलचलों का संकेतक है. इसका तात्कालिक उदाहरण ताउते और यास चक्रवात हैं.
चंद्रग्रहण के प्रभाव से पृथ्वी के पूर्वी गोलार्ध में मकर और भूमध्य रेखा के आसपास भौगोलिक घटनाक्रम बढ़ा सकता है. इसके प्रभाव से सुनामी, चक्रवात और भूकंप आ सकते हैं. इन आपदाओं से बचने के लिए संबंधित क्षेत्र के लोगों को सावधानी और तैयारी रखना चाहिए.
वृश्चिक राशि में ग्रहण होने से ग्रहण संबंधित महाद्वीपों के कुछ देश-प्रदेश में सत्ता परिवर्तन भी करा सकता है. ग्रहण का प्रभाव कम से कम एक चंद्र माह तक रहता है. यानि पूर्णिमा से पूर्णिमा तक रहता है. ग्रहण के दौरात वायु तत्व की तुला राशि की लगन रहेगी. इस प्रकार जल वायु और पृथ्वी तीनों तत्व पर चन्द्रग्रहण का प्रभाव होगा. यह इन तीनों तत्वों में अस्थिरता बढ़ाएगा.
ग्रहण के प्रभाव से सत्ता से जुड़े लोगों तनाव बढ़ सकता है. सलाहकारों के लिए यह समय खासा उथलपुथल भरा रह सकता है. चंद्रमा को ग्रहण केतु से लगता है. केतु जनमानस में भ्रम की स्थिति निर्मित करता है. अदृश्य अवरोधों, व्याधियों और संक्रामक रोगों का कारक होता है. ऐसे में सभी लोगों को मनोबल ऊंचा रखना चाहिए. अफवाह फैलाने वालों से सतर्क रहना चाहिए.
चंद्रग्रहण में सूतक अमान्य होने से भोजन निर्माण में अतिरिक्त सतर्कता की आवश्यक नहीं है. गर्भवती महिलाएं, वृद्ध, बच्चे और रोगी सहज रह सकते हैं. इन्हें केवल साफ सफाई का ध्यान रखना है. सहजता से रहना है. नमी और सीलन वाली जगहों से बचाव रखना है. ग्रहण के दौरान तपस्वी और साधुजन गहन ध्यान करते हैं. सामान्य जन सहज ही करें.
चंद्रग्रहण के अतिरिक्त प्रभावों में पृथ्वी की कक्षा में मौजूद विभिन्न देशों के हजारों सैटेलाइट्स के असंतुलन का खतरा है. ये बिगड़ सकते हैं. नियंत्रण खो सकते हैं. ऐसे में विश्वभर में सैटेलाइट्स सेवाएं प्रभावित हो सकती हैं.
ग्रहण साधारण खगोलीय घटना नहीं है. इस दौरान पृथ्वी और चंद्रमा स्वयं की गति सुधार की प्रक्रिया में होते हैं. इसे सहज भाषा में ऑटोकरेक्शन और व्हील बैलेंसिंग कह सकते हैं. ज्ञातव्य है कि सूर्य के साथ संपूर्ण सौरमंडल 70 हजार किलोमीटर की गति से आगे बढ़ रहा है. ग्रहों-उपग्रहों को इस गति तालमेल बनाए रखना होता है. ग्रहण काल में यह स्वयं को व्यवस्थित करते हैं. इसका कारण ये है कि ग्रहण में सूर्य, चंद्रमा और पृथ्वी एक सीध में आते हैं.
ज्योतिष में पृथ्वी के लिए राहु-केतु वे छायाग्रह हैं. इनके जुड़ाव में सूर्य और चंद्रग्रहण बनते हैं. विज्ञान की भाषा में ये सौरमंडल के वे नोडल पाइंट हैं जहां पृथ्वी और चंद्रमा सूर्य की एक सीध में आकर ऑटो-करेक्शन लेते हैं. इसमें चंद्र व पृथ्वी की कक्षाएं सुव्यवस्थित होती है. इनमें अन्य सौरमंडलीय ग्रहों का भी ज्योतिषीय योगायोग प्रभाव भी असर डालता है.