हर साल 12 जनवरी को स्वामी विवेकानंद का जन्मदिन मनाया जाता है. इस दिन को युवा दिवस के रूप में भी याद किया जाता है. हम सभी जानते हैं कि स्वामी विवेकानंद एक संन्यासी थे जिन्होंने लोगों को प्यार और शांति का पाठ पढ़ाया था लेकिन क्या आप जानते हैं कि उन्हें प्यार और लगाव की सही शिक्षा एक सेक्स वर्कर से मिली थी. भारत के दार्शनिक ओशो ने "The Heart of Yoga: How to Become More Beautiful and Happy" किताब में इसका जिक्र किया है.
ये तब की बात है जब विवेकानंद अमेरिका जाने और विश्व प्रसिद्ध व्यक्ति बनने से पहले कुछ दिनों के लिए जयपुर में ठहरे थे. जयपुर के राजा विवेकानंद के बहुत बड़े प्रशंसक थे. उनके स्वागत में शाही परंपरा के अनुसार राजा ने कई नर्तकियों को बुलाया, जिनमें से एक बहुत प्रसिद्ध सेक्स वर्कर भी थी.
हालांकि, राजा को जल्द ही अपनी गलती का एहसास हो गया कि उन्हें एक संन्यासी के स्वागत में सेक्स वर्कर को नहीं बुलाना चाहिए था लेकिन तब तक सारी व्यवस्था की जा चुकी थी और वो सेक्स वर्कर महल में आ चुकी थी. इस समय तक विवेकानंद अपूर्ण संन्यासी थे, इसलिए वो ये जानकर बहुत परेशान हो गए कि महल में सेक्स वर्कर आई है.
विवेकानंद उस समय संन्यासी बनने की राह पर थे इसलिए वो अपनी काम भावनाओं पर नियंत्रण कर रहे थे. उन्होंने खुद को एक कमरे में बंद कर लिया और बाहर आने से इनकार कर दिया. राजा ने विवेकानंद से इस बात के लिए क्षमा मांगते हुए कहा कि उन्होंने पहले कभी भी किसी संन्यासी की मेजबानी नहीं की है इसलिए उन्हें नहीं पता था कि ये नहीं करना चाहिए था.
राजा ने विवेकानंद से नाराज ना होने और कमरे से बाहर आने का अनुरोध किया लेकिन विवेकानंद बहुत गुस्से में थे और बाहर आने से इनकार कर दिया. विवेकानंद की बातें सेक्स वर्कर के कानों तक पहुंच गईं.
इसके बाद सेक्स वर्कर ने गाना शुरू किया जिसका अर्थ था, 'मुझे मालूम है कि मैं तुम्हारे योग्य नहीं, लेकिन तुम तो दयालु हो सकते थे. मुझे पता है कि मैं राह की धूल हूं लेकिन तुम्हें तो मेरे लिए प्रतिरोधी नहीं होना चाहिए था. मैं कुछ नहीं हूं. मैं अज्ञानी हूं, पापी हूं लेकिन तुम तो संत हो फिर तुम मुझसे क्यों भयभीत हो गए?'
यह सब सुनकर विवेकानंद को अचानक अपनी गलती का एहसास हुआ. उन्हें लगा कि वो आखिर सेक्स वर्कर का सामना करने से इतना क्यों डर रहे हैं? इसमें क्या गलत है? क्या वो अपरिपक्व व्यवहार कर रहे हैं? उन्होंने तब महसूस किया कि उनके मन में कोई डर है. अगर वो सेक्स वर्कर के लिए आकर्षण महसूस ना करें, तो वह शांति से रहेंगे. वो खुद को उस सेक्स वर्कर के सामने हारा हुआ महसूस कर रहे थे.
इसके बाद विवेकानंद ने दरवाजा खोला और सेक्स वर्कर का खुले मन से अभिवादन किया. उन्होंने कहा, 'परमात्मा ने मुझे नए ज्ञान का एहसास कराया है. मैं पहले डरा हुआ था. मेरे भीतर कुछ वासना बची थी शायद इसीलिए मैं डर रहा था. इस महिला ने मुझे पूरी तरह हरा दिया और मैंने ऐसी शुद्ध आत्मा पहले कभी नहीं देखी.'
उन्होंने आगे कहा, 'अब मैं उस महिला के साथ बिस्तर पर भी सो सकता हूं और मुझे कोई डर नहीं लगेगा.' एक सेक्स वर्कर के कारण विवेकानंद और महान बन चुके थे.