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इस मंदिर में शिवलिंग नहीं महादेव के अंगूठे की होती है पूजा, गर्भगृह में बनी है ब्रह्मखाई

Achleshwar mahadev mandir: अचलेश्वर महादेव मंदिर पश्चिमी राजस्थान के सिरोही जिले में ऋषि वशिष्ठ की तपस्थली माउंटआबू के अचलगढ़ में स्थापित है. इस प्राचीन मंदिर के इतिहास में कई बड़े रहस्य छिपे हुए हैं. आइए आज आपको भगवान शिव के इस चमत्कारी मंदिर के बारे में विस्तार से बताते हैं.

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Achleshwar Mahadev Mandir: आपने भगवान शिव के कई चमत्कारिक मंदिरों के बारे में सुना होगा. लेकिन राजस्थान के माउंटआबू में स्थित अचलेश्वर महादेव मंदिर बिल्कुल अनूठा है. यहां भगवान भोलेनाथ के दाहिने पैर के अंगूठे के स्वरूप की पूजा होती है. ऐसी मान्यता है कि इस पर्वत को स्वयं महादेव ने अपने दाहिने अंगूठे से थाम रखा है. स्कन्द पुराण के अर्बुद खंड में भी इस मंदिर का जिक्र मिलता है. आइए आज आपको भगवान शिव के इस चमत्कारी मंदिर के बारे में विस्तार से बताते हैं.

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अचलेश्वर महादेव मंदिर पश्चिमी राजस्थान के सिरोही जिले में ऋषि वशिष्ठ की तपस्थली माउंटआबू के अचलगढ़ में स्थापित है. इस प्राचीन मंदिर के इतिहास में कई बड़े रहस्य छिपे हुए हैं. कहते हैं कि पौराणिक काल में माउंटआबू के अचलगढ़ में एक गहरी और विशाल ब्रह्म खाई हुआ करती थी. इस गहरी खाई में ऋषि वशिष्ठ की गाय गिर जाती थी. इस समस्या को लेकर ऋषियों ने देवताओं से इस खाई को पाटने की गुहार लगाई, ताकि ऋषि आश्रमों में पल रहीं गाय का जीवन बचाया जा सके.

ऋषियों के आग्रह पर देवताओं ने नंदीवर्धन को उस ब्रह्म खाई को पाटने का आदेश दिया, जिसे अर्बुद नामक सांप ने अपनी पीठ पर रखकर खाई तक पहुंचाया था. लेकिन अर्बुद सांप को इस बात का अहंकार हो गया कि उसने पूरा पर्वत अपनी पीठ पर उठा रखा है और उसे अधिक महत्व भी नहीं दिया जा रहा है. इसलिए अर्बुद सर्प हिलने-डुलने लगा और इसकी वजह से पर्वत पर कंपन शुरू हो गया.

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जब महादेव के अंगूठे से स्थिर हुआ पर्वत
महादेव ने अपने भक्तों की पुकार सुन अंगूठे से पर्वत को स्थिर किया और अर्बुद सर्प का घमंड चकनाचूर कर दिया. कहते हैं कि पर्वत को अचल करने की वजह से इस स्थान का नाम अचलगढ़ पड़ा. मंदिर में अंगूठानुमा प्रतिमा शिव के दाहिने पैर का वही अंगूठा है, जिसे शिव ने काशी से बैठे हुए थामा था. इसलिए माउंटआबू को अर्धकाशी भी कहा जाता है.

अचलेश्वर महादेव मंदिर के पुजारी पन्नालाल रावल बताते हैं कि पौराणिक काल में यहां बहुत ही विशाल ब्रह्म खाई हुआ करती थी, जिसमें अक्सर ऋषियों की गाय गिर जाती थीं. तब देवताओं के आग्रह पर खाई को पाटने के लिए अर्बुद नाग ने पर्वत को अपनी पीठ पर उठाया था. लेकिन अर्बुद को इस बात का घमंड होने लगा. तब अर्बुद नाग का घमंड तोड़ने के लिए काशी विश्वनाथ ने अपने अंगूठे से इस अर्बुदंचल पर्वत को स्थिर किया था. तभी से यहां अचलेश्वर महादेव के रूप में शिव के अंगूठे की पूजा-अर्चना की जाती है.

मंदिर के ब्रह्मकुंड का रहस्य
अचलेश्वर महादेव मंदिर में भोलेनाथ के शिवलिंग की नहीं, बल्कि बाबा के अंगूठे की पूजा की जाती है. कहते हैं कि ये विश्व का इकलौता मंदिर है, जहां महाकाल के अंगूठेनुमा गोल भूरे पत्थर की पूजा की जाती है. ये गोल पत्थर गर्भग्रह के एक कुंड से निकला है. कहते हैं कि गर्भग्रह की जिस गोल खाई से ये पत्थर निकला है. उसका कोई अंत नहीं है. दावा किया जाता है कि इस ब्रह्मकुंड में कितना भी जल डालो, वो कहां जाता है, इसका रहस्य किसी को नहीं पता.

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