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Ahoi Ashtami 2021: अहोई अष्टमी आज, इस तरह करें व्रत की शुरुआत, यहां देखें पूजा का शुभ मुहूर्त और पूजा विधि

Ahoi Ashtami vrat 2021: कृष्ण पक्ष की अष्टमी को सांतन की उन्नति, सुख-समृद्धि और लंबी उम्र के लिए माताओं द्वारा अहोई अष्टमी का व्रत रखा जाता है. ये व्रत भी करवा चौथ की तरह ही होता है. संतान के लिए व्रत करने वाली माताएं सुबह से निर्जल रहकर शाम को तारों को अर्घ्य देकर पूजन करती हैं. इस बार अहोई अष्टमी की पूजा पर गुरु-पुष्य योग बन रहा है. ये योग पूजा के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है. आइये बताते हैं किस तरह व्रत की शुरुआत करनी है.

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अहोई अष्टमी कल, इस तरह करें व्रत की शुरुआत
अहोई अष्टमी कल, इस तरह करें व्रत की शुरुआत
स्टोरी हाइलाइट्स
  • पूजा के लिए बन रहा गुरु-पुष्य योग
  • शुभ मुहूर्त में करें अहोई अष्टमी पूजन

Ahoi Ashtami vrat 2021:  आज अहोई अष्टमी है. इस व्रत की शुरुआत सूर्योदय से पहले ही होती है. इस​ दिन माताएं संतान की उन्नति, सुख-समृद्धि और लंबी उम्र के लिए निर्जला उपवास करती हैं. शाम को तारों को अर्घ्य देकर इस व्रत का समापन होता है. इस बार अहोई अष्टमी की पूजा पर गुरु-पुष्य योग बन रहा है. ये योग पूजा के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है. आइए बताते हैं कि किस तरह व्रत की शुरुआत करनी है. 

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इस तरह करें व्रत की शुरुआत
ज्योतिषाचार्य डॉ. अरविंद मिश्र ने बताया कि अहोई अष्टमी का व्रत करवा चौथ के व्रत की तरह ही होता है. इसमें माताएं अपनी संतान की लंबी आयु के लिए निर्जल और निराहार व्रत करती हैं. अहोई अष्‍टमी के दिन सबसे पहले स्‍नान कर साफ कपड़ें पहनें और व्रत का संकल्प लें. इसके बाद व्रत की शुरुआत करें. आकाश में तारों को देखने के बाद ही उपवास खोला जाता है. 

पूजा शुभ मुहूर्त (Ahoi Ashtami Vrat 2021 Puja Shubh Muhurat)
28 अक्टूबर को अष्टमी तिथि  12 बजकर 51 मिनट पर लगेगी. इस दिन गुरु-पुष्य योग बन रहा है, जो पूजा और शुभ कार्यों के लिए शुभ फलदायी होता है. अहोई अष्टमी पूजन का शुभ मुहूर्त शाम 6 बजकर 40 मिनट से रात 8 बजकर 50 मिनट तक है. वहीं शाम 5 बजकर 03 मिनट से 6 बजकर 39 मिनट तक मेष लग्न रहेगी जिसे चर लग्न कहते हैं, इसमें पूजा करना शुभ नहीं माना जाता है. 

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इस तरह करें पूजा (Ahoi Ashtami Vrat 2021 Puja Vidhi)
अहोई अष्टमी के दिन अहोई देवी के साथ सेई और सेई के बच्चों की पूजा का विधान है. इस दिन सूर्यास्त के बाद जब तारे निकल जाते हैं तो अहोई माता की पूजा प्रारंभ होती है. सबसे पहले जमीन को साफ करके पूजा की चौकी बनाई जाती है. फिर एक लोटे में जलकर उसे कलश की भांति चौकी के एक कोने पर रखें और भक्ति भाव से पूजा करें. इसके बाद बाल-बच्चों के कल्याण की कामना करें. साथ ही अहोई अष्टमी के व्रत कथा का श्रद्धा भाव से सुनें. पूजा के लिए माताएं चांदी की एक अहोई भी बना सकती हैं, जिसे बोलचाल की भाषा में स्याऊ भी कहते हैं. उसमें चांदी के दो मोती डालकर विशेष पूजन किया जाता है. जिस प्रकार गले के हार में पैंडिल लगा होता है उसी प्रकार चांदी की अहोई डलवानी चाहिए और डोरे में चांदी के दाने पिरोने चाहिए. फिर अहोई की रोली, चावल, दूध व भात से पूजा करें. जल से भरे लोटे पर सातिया बना लें. एक कटोरी में हलवा और रुपए निकालकर रख दें और गेहूं के सात दाने लेकर अहोई माता की कथा सुनने के बाद अहोई की माला गले में पहन लें. अब पूजा के स्थान पर रखे पैसों को सास के चरण छूकर उन्हें दे दें. इसके बाद चंद्रमा को जल चढ़ाकर व्रत खोल लें. इस व्रत पर धारण की गई माला को दिवाली के बाद किसी शुभ अहोई को गले से उतारकर उसका गुड़ से भोग लगाएं और जल से छीटें देकर रख दें. सास को रोली तिलक लगाकर चरण स्पर्श करते हुए व्रत का उद्यापन करें.

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