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इस खास वजह से 51 इंच की बनाई गई रामलला की मूर्ति, योगिराज की पत्नी ने बताईं दिलचस्प बातें

अयोध्या के राम मंदिर का उद्घाटन हो गया है. उद्धाटन के बाद लोग रामलला की एक झलक पाने को बेताब हैं और लाखों की संख्या में मंदिर दर्शन के लिए पहुंच रहे हैं. मंदिर में स्थापित रामलला की मूर्ति बेहद खास है जो लोगों का मन मोह रही है.

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रामलला की मूर्ति की चमक हजारों सालों बाद भी ज्यों की त्यों बनी रहेगी (Photo- PTI)
रामलला की मूर्ति की चमक हजारों सालों बाद भी ज्यों की त्यों बनी रहेगी (Photo- PTI)

सोमवार के दिन अयोध्या में नवनिर्मित राम मंदिर का उद्घाटन किया गया जहां रामलला की मूर्ति देख भक्तगण भाव-विह्वल हो उठे. कृष्णशिला यानी ब्लैक स्टोन से बनी मूर्ति में वो सभी भाव मौजूद हैं जो किसी पांच वर्षीय बालक में होते हैं. मंदिर को बनाने वाले मैसूर के प्रसिद्ध मूर्तिकार अरुण योगिराज की पत्नी विजेता ने बताया है कि कैसे रामलला की जीवंत मूर्ति को आकार दिया गया.

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आजतक से बातचीत में अरुण योगिराज की पत्नी ने रामलला की मूर्ति के तकनीकी पहलुओं पर बात की है. उन्होंने कहा है कि योगिराज के हाथों में जादू है और इसी वजह से राम की इतनी मनमोहक मूर्ति बनकर सामने आई है. 

वो कहती हैं, 'ये उनके (अरुण योगिराज) के हाथों का कमाल है. हमें बताया गया था कि मूर्ति कैसी दिखनी चाहिए. बाकी सब उनकी कल्पना की वजह से संभव हुआ है.'

राम मंदिर ट्रस्ट ने रामलला की मूर्ति बनाने के लिए कुछ मानक तय किए थे जैसे- 

मुस्कुराता चेहरा
दैवीय छवि
पांच साल के बच्चे का स्वरूप
युवा राजकुमार जैसा लुक

भगवान राम के चेहरे को जीवंत रूप देने में कैसे सफल हुए योगिराज?

मूर्ति बनाने से पहले योगिराज ने कागज पर स्केचिंग की थी. रामलला का चेहरा जिसमें उनकी आंखें, नाक, गाल, होंठ ठुड्डी शिल्पशास्र के मुताबिक बनाया गया. योगिराज ने मानव रचना विज्ञान की कई किताबें पढ़ीं ताकि वो मनुष्य के हावभाव और शारीरिक रचना को अच्छे से समझ सकें. किताबों की मदद से ही योगिराज ऐसी मूर्ति बनाने में सफल रहे जो जीवंत दिखती है.

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अरुण योगिराज ने कई स्कूलों का भी दौरा किया ताकि वो छोटे बच्चों को गौर से देख सकें. उन्होंने बच्चों की मुस्कान और उनके हाव-भाव पर खूब रिसर्च किया.

अरुण योगिराज की पत्नी विजेता ने बताया कि इन बातों को फॉलो कर योगिराज ने एक मास्टरपीस तैयार कर दिया.

विजेता कहती हैं, 'पत्थर पर मूर्ति उकेरने का उनके पास एक ही चांस था और उन्होंने कर दिखाया. ट्रस्ट (राम मंदिर ट्रस्ट) ने कृष्णशिला का चुनाव कर हमें दिया था. कृष्णशिला पर किसी चीज का प्रभाव नहीं पड़ता- एसिड, बारिश, मौसम...किसी चीज का नहीं.'

मूर्ति के लिए कृष्णशिला पत्थर ही क्यों चुना गया?

योगिराज की पत्नी कहती हैं कि अगर रामलला पर दूध चढ़ाया जाएगा तो बिल्कुल शुद्ध दूध ही नीचे आएगा, कृष्णशिला से किसी तरह दूध की शुद्धता या फिर दूध से कृष्णशिला की शुद्धता पर कोई असर नहीं पड़ेगा. दूध को रामभक्त प्रसाद के रूप में सेवन कर सकते हैं और इससे उनके सेहत पर कोई प्रतिकूल असर नहीं पड़ेगा.

विजेती बताती हैं कि कृष्णशिला की मूर्ति बनाते वक्त उससे उड़ने वाले धूल से भी सेहत को कोई नुकसान नहीं होता.

कृष्णशिला पत्थर बिना खरोंच के भी 1000 साल से भी अधिक समय तक ज्यों का त्यों रह सकता है. इस तरह का पत्थर दुनिया के केवल कुछ ही हिस्सों में मिलता है. मैसूर के पास एचडी कोटे और उत्तर कन्नड़ जिले में करकला में ही यह पत्थर मिलता है इसलिए मैसूर को मूर्तिकला जगत का केंद्र माना जाता है. पत्थर काले रंग का होता है जिस कारण इसे कृष्णशिला कहा जाता है.

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कौशल के साथ-साथ तकनीक का भी इस्तेमाल

योगिराज ने रामलला की मूर्ति बनाने के लिए आधुनिक सॉफ्टवेयर का भी सहारा लिया. मूर्ति को हाथों की मदद से तराशा गया. योगिराज ने अपने हाथों, हथौड़ी और छेनी से एक जीवंत मूर्ति बना दी.

रामलला की मूर्ति 51 इंच लंबी ही क्यों?

रामलला की मूर्ति 5 साल के राम के रूप की है जिसकी ऊंचाई 51 इंच है. मूर्ति की लंबाई 51 इंच इसलिए रखी गई ताकि हर रामनवमी के दिन दोपहर के वक्त सूर्य की किरणें रामलला के माथे पर पड़े. यानी हर रामनवमी के दिन रामलला के माथे पर सूरज का तेज होगा.

गर्भगृह में स्थापित की गई मूर्ति कमल के फूल के ऊपर स्थापित की गई है. कमल के फूल के साथ मूर्ति की लंबाई 8 फीट है. प्रतिमा का वजन 200 किलोग्राम है.

(इनपुट- अनघा)

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