नवरात्रि वर्ष में चार बार होती है- माघ, चैत्र, आषाढ़ और आश्विन. नवरात्रि से वातावरण के तमस का अंत होता है और सात्विकता की शुरुआत होती है. मन में उल्लास, उमंग और उत्साह की वृद्धि होती है. दुनिया में सारी शक्ति, नारी या स्त्री स्वरूप के पास ही है, इसलिए नवरात्रि में देवी की उपासना ही की जाती है. नवरात्रि के प्रथम दिन देवी के शैलपुत्री स्वरूप की उपासना का विधान है. इनकी पूजा से देवी की कृपा तो मिलती ही है, साथ ही सूर्य भी मजबूत होता है. इस बार चैत्र नवरात्रि की शुरुआत 2 अप्रैल से हो रही है.
नवरात्रि में कलश स्थापना के नियम
नवरात्रि में जीवन के समस्त भागों और समस्याओं पर नियंत्रण किया जा सकता है. नवरात्रि के दौरान हल्का और सात्विक भोजन करना चाहिए. नियमित खान-पान में जौ और जल का प्रयोग जरूर करें. इन दिनों तेल, मसाला और अनाज कम से कम खाना चाहिए. कलश की स्थापना करते समय जल में सिक्का डालें. कलश पर नारियल रखें और कलश पर मिट्टी लगाकर जौ बोएं. कलश के निकट अखंड दीपक जरूर प्रज्ज्वलित करें .
कलश स्थापना का मुहूर्त क्या है?
कलश की स्थापना चैत्र शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को की जाती है. इस बार प्रतिपदा तिथि 02 अप्रैल को है, लेकिन प्रतिपदा प्रातः 11 बजकर 21 मिनट तक ही है. इसलिए कलश की स्थापना सुबह 11.21 के पहले ही की जाएगी. सबसे अच्छा समय सुबह 07 बजकर 30 मिनट से 09 बजे तक का होगा.
मां शैलपुत्री की उपासना कैसे करें?
पूजा के समय लाल वस्त्र धारण करें. घी का एकमुखी दीपक माता के समक्ष जलाएं. देवी को लाल फूल और लाल फल अर्पित करें. इसके बाद देवी के मंत्र "ॐ दुं दुर्गाय नमः "का जाप करें या चाहें तो "दुर्गा सप्तशती" का नियमपूर्वक पाठ करें. नवरात्रि में रात्रि की पूजा ज्यादा फलदायी होती है.