महान शिक्षाविद, अर्थशास्त्री और नीतिशास्त्री रहे आचार्य चाणक्य ने नीति शास्त्र में धन और सफलता से जुड़ी कई नीतियां बताई हैं. अगर आप जीवन में सुख व शांति की कामना करते हैं तो चाणक्य की नीतियां आपके लिए काफी मददगार साबित हो सकती हैं. चाणक्य ने एक श्लोक के माध्यम से संसार के सबसे बड़े मंत्र, श्रेष्ठ दान, श्रेष्ठ तिथि और सबसे बड़े देवता के बारे में बताया है. आइए जानते हैं इनके बारे में....
नान्नोदकसमं दानं न तिथिर्द्वादशी समा ।
न गायत्र्याः परो मन्त्रो न मातुः पर दैवतम् ।।
चाणक्य कहते हैं कि अन्न और जल के समान कोई श्रेष्ठ दान नहीं, द्वादशी के समान कोई श्रेष्ठ तिथि नहीं, गायत्री से बढ़कर कोई मंत्र नहीं और माता से बढ़कर कोई देवता नहीं है.
इस श्लोक में चाणक्य का कहना है कि भूखे व्यक्ति को भोजन और प्यासे को जल पिलाने के समान श्रेष्ठ दान कोई नहीं. उनका विचार है कि द्वादशी को किया हुआ पुण्य कर्म अधिक फल देने वाला होता है.
गायत्री को सर्वश्रेष्ठ मंत्र माना गया है. गायत्री को सिद्ध कर लेने पर व्यक्ति के सभी मनोरथ पूर्ण हो जाते हैं. इसी प्रकार सबसे बढ़कर माता सम्मान की पात्र हैं. उनका स्थान देवताओं से भी ऊंचा होता है, क्योंकि वह मनुष्य को जन्म देने वाली हैं.
माता ही संतान को प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से संस्कारित करती है. संस्कार ही मनुष्य के जीवन का आधार है.