चाणक्य की नीतियों की मदद से कोई भी मनुष्य अपने जीवन में खुशियां पा सकता है. नीति शास्त्र के महान ज्ञाता माने जाने वाले आचार्य चाणक्य ने अपने नीति ग्रंथ चाणक्य नीति में ऐसी अनेकों नीतियों का बखान किया है जो मनुष्य के जीवन के लिए मददगार साबित होती रही हैं. चाणक्य नीति के 10वें अध्याय के एक श्लोक में वो बताते हैं कि संसार में कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जिन पर किसी भी उपदेश का कोई असर नहीं होता. आइए जानते हैं इनके बारे में...
अन्तः सारविहीनानामुपदेशो न जायते।
मलयाऽचलस्सर्गात् न वेणुश्चन्दनायते॥
जिन व्यक्तियों में किसी प्रकार की भीतरी योग्यता नहीं होती है अर्थात जो अंदर से खोखले हैं, बुद्धिहीन हैं, ऐसे व्यक्तियों को किसी भी प्रकार का उपदेश देना उसी प्रकार व्यर्थ होता है जिस प्रकार मलयाचल पर्वत से आने वाले सुगंधित हवा के झोंकों का बांस से स्पर्श. ऐसे लोग जीवन भर खुद के द्वारा उत्पन्न की गई परिस्थितियों के कारण दुख भोगते हैं.
चाणक्य कहते हैं कि जिस व्यक्ति में किसी प्रकार की भीतरी योग्यता नहीं और जिसका हृदय भी साफ नहीं, उसमें बुरे विचार भरे हैं, उसे किसी भी प्रकार का उपदेश देना व्यर्थ है. उस पर उपदेश का कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा. ऐसा होना उसी प्रकार व्यर्थ है जैसे चंदन वन से आने वाली सुगंधित वायु के स्पर्श से बांस में न तो सुगंध ही आती है और न ही वह चंदन बन पाता है.
यस्य नास्ति स्वयं प्रज्ञा, शास्त्रं तस्य करोति किं।
लोचनाभ्याम विहीनस्य, दर्पण: किं करिष्यति।।
आचार्य कहते हैं कि जिस व्यक्ति के पास अपनी बुद्धि नहीं, शास्त्र उसका क्या कर सकेगा, आंखों से रहित व्यक्ति को दर्पण का कोई लाभ नहीं हो सकता है. आचार्य चाणक्य का यह कथन संकेत करता है कि केवल बाहरी साधनों से कोई ज्ञानवान नहीं हो सकता. मनुष्य के भीतर निहित संस्कारों को ही बाहरी साधनों से उभारा और निखारा जा सकता है.
खेत में बीज ही न हो तो खाद आदि देने से फसल नहीं उगती. कभी-कभी तो उलटा ही होता है. इच्छित फसल को पाने के लिए किए गए उर्वरकों के प्रयोग से ऐसी हानिकर फसल लहलहाने लगती है, जिसकी किसी ने कभी कल्पना ही नहीं की होती.