टाटा संस के पूर्व चेयरमैन साइरस मिस्त्री की महाराष्ट्र के पालघर में रोड एक्सीडेंट के दौरान मौत हो गई. उस समय में गुजरात से मुंबई जा रहे थे. हादसे के समय गाड़ी में चार लोग सवार थे, जिनमें दो की मौत हो गई और दो लोगों का अस्पताल में भर्ती कराया गया है. साइरस मिस्त्री भारत में पारसी समुदाय का एक बड़ा चेहरा थे. बेशक देश में पारसियों की संख्या ज्यादा नहीं है, लेकिन अपने योगदान की वजह से उन्हें समाज में एक अलग रुतबा मिला है.
हजारों साल पहले पर्शिया (ईरान) से पलायन के बाद पारसी भारत में आकर तो बस गए, लेकिन उन्होंने अलग-अलग धर्मों के बीच रहकर भी अपने धर्म के रीति रिवाजों का पूरा ख्याल रखा. पारसी एकेश्वरवादी हैं यानी सिर्फ एक ही ईश्वर पर भरोसा करते हैं. पारसियों के प्रमुख देवता अहुरमजदा हैं.
पारसी लोगों का इतिहास
10वीं सदी में ईरान से कुछ संख्या में लोग भागकर भारत आ गए थे. पारसी एक ऐसी जगह की तलाश में थे जहां वे आजादी से अपने धार्मिक रीति-रिवाजों का पालन कर सकें. ईरान से भागकर पारसी भारत के गुजरात पहुंचे और बस गए, जिसके बाद भारत में पारसी समुदाय भी एक हिस्सा बन गया.
पारसी लोगों की शादी
पारसी समुदाय में शादी के दो चरण होते हैं. पहले चरण में दूल्हा और दुल्हन अपने परिवार और रिश्तेदारों के सामने एक मैरिज कॉन्ट्रैक्ट साइन करते हैं. वहीं दूसरे चरण में दावतों का दौर शुरू होता है जो हैसियत के अनुसार, तीन से 7 दिन तक चलता है.
पसंद की शादी के सख्त नियम
पारसी लोग अपने धर्म को सबसे ऊपर लेकर चलते हैं, इसी वजह से अगर कोई लड़की अन्य किसी भी धर्म के लड़के से विवाह कर लेती है, तो उसके लिए नियम काफी ज्यादा सख्त हो जाते हैं. दूसरे धर्म में शादी करने वाली लड़की को तुरंत धर्म से निकाल दिया जाता है.
गैर पारसी से शादी करने वाली लड़की को सिर्फ धर्म से ही नहीं, और भी कई चीजों पर उस पर रोक लगा दी जाती है. सबसे बड़ी रोक है कि वह लड़की अपने पिता की मौत पर दखमा जाकर प्रार्थना में भी शामिल नहीं हो सकती है.
धर्मांतरण की नहीं इजाजत
यूं तो हर धर्म में धर्मांतरण के अलग नियम हैं, लेकिन पारसी में ये इतने सख्त हैं कि कोई अन्य धर्म का शख्स चाहकर भी पारसी नहीं बन सकता है. पारसी होने के लिए धार्मिक शुद्धता को पहले रखा जाता है, इसलिए ही किसी अन्य को धर्म अपनाने की इजाजत नहीं दी जाती है.
पारसी लोगों की मौत
पारसी लोगों की मौत होने के बाद उनके अंतिम संस्कार का भी दूसरे धर्मों से एकदम अलग रिवाज है. पारसी समुदाय में जब किसी की मौत हो जाती है तो उसके शव को टावर ऑफ साइलेंस (दखमा) ले जाया जाता है.
टावर ऑफ साइलेंस में शव को ऊपर खुले में रख दिया जाता है और प्रार्थना शुरू की जाती है. प्रार्थना के बाद शव को गिद्ध और चील के खाने के लिए छोड़ दिया जाता है.
पारसियों का कर्म में यकीन
पारसी धर्म में व्यक्तिगत इच्छाशक्ति पर भरोसा रखा जाता है, जिससे हर कोई अपने अनुसार सही चीजों का चुनाव कर सके और फैसला ले सके. साथ ही पारसी धर्म में महिला और पुरुष दोनों को बराबरी का हक दिया गया है.
आग का पारसी धर्म में खास महत्व
पारसी लोगों में आग का काफी खास महत्व है, इसलिए ही पारसी लोग प्रार्थना के लिए फायर टैंपल जाते हैं. जहां हर समय एक ज्योति जलती रहती है, जिसे कभी नहीं बुझाया जाता है.
अच्छाई और बुराई का फर्क
पारसी धर्म में अच्छाई और बुराई के बीच फर्क को दो शक्तियों में बांटकर बताया गया है. पारसी धर्म में स्पेंटा मेनयु को दैवीय शक्ति और अंगरा मेन्यू को असुर शक्ति बताया गया है. इसी के अनुसार, पारसी लोगों को अपने जीवन में राह चुनते हैं और आगे बढ़ते हैं.