चैत्र नवरात्रि की शुरुआत 22 मार्च यानी कल से हो रही है. मध्य प्रदेश के सतना जिले के मैहर में स्थित मां शारदा शक्तिपीठ मंदिर में भी चैत्र नवरात्रि के लिए सभी तैयारियां पूरी कर ली गई हैं. यहां प्रति दिन करीब दो लाख श्रद्धालुओं के आने का अनुमान है इसलिए वहां सुरक्षा के चाक चौबंद इंतजाम कर लिए गए हैं. रेलवे स्टेशन से लेकर मां के गर्भगृह तक करीब एक हजार पुलिस जवान तैनात किए जाएंगे.
जिला प्रशासन से लेकर पुलिस महकमा तक जोरशोर से दर्शनार्थियों के स्वागत, सत्कार और सुरक्षा के इंतजाम में जुटा है. 9 दिवसीय मेले के लिए पुलिस मुख्यालय से पर्याप्त बल उपलब्ध कराया गया है जिनमें दो अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक, 13 डीएसपी और इंस्पेक्टर और सब इंस्पेक्टर शामिल हैं.
विंध्य की पर्वत श्रृंखलाओं में है मंदिर
त्रिकूट पर्वत पर स्थित माता के इस मंदिर को मैहर देवी का मंदिर कहा जाता है. मैहर का मतलब मां का हार है. मां शारदा देवी का मंदिर विंध्य की पर्वत श्रंखलाओं में से एक शिखर के मध्य में स्थित है. ऐसी मान्यता है कि माता शारदा मां सरस्वती का साक्षात स्वरूप हैं. देश भर में माता शारदा का अकेला मंदिर सतना के मैहर में ही है. ऐसी मान्यता है कि यहां मां शारदा की सबसे पहले पूजा आदि गुरू शंकराचार्य ने की थी. विध्य के त्रिकुट पर्वक का उलल्लेख पुराणों में भी मिलता है. नवरात्रि के समय में हर दिन यहां लाखों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं.
ऐसे प्रकट हुई थीं मैहर शारदा माता
जनश्रुति के अनुसार दक्ष प्रजापति की पुत्री सती शिव से विवाह करना चाहती थीं. उनकी यह इच्छा राजा दक्ष को मंजूर नहीं थी. फिर भी सती ने अपनी जि़द पर भगवान शिव से विवाह कर लिया. एक बार राजा दक्ष ने यज्ञ करवाया. उस यज्ञ में ब्रह्मा, विष्णु, इंद्र और अन्य देवी-देवताओं को आमंत्रित किया, लेकिन जान-बूझकर अपने जमाता भगवान शंकर को नहीं बुलाया. शंकरजी की पत्नी और दक्ष की पुत्री सती इससे बहुत आहत हुईं. यज्ञ-स्थल पर सती ने अपने पिता दक्ष से शंकर जी को आमंत्रित न करने का कारण पूछा. इस पर दक्ष प्रजापति ने भगवान शंकर को अपशब्द कहे. इस अपमान से दुखी होकर सती ने यज्ञ-अग्नि कुंड में कूदकर अपनी प्राणाहुति दे दी.
भगवान शंकर को जब इस घटना का पता चला तो क्रोध से उनका तीसरा नेत्र खुल गया. उन्होंने यज्ञ कुंड से सती के पार्थिव शरीर को निकालकर कंधे पर उठा लिया और गुस्से में तांडव करने लगे. ब्रह्मांड की भलाई के लिए भगवान विष्णु ने ही सती के शरीर को 52 भागों में विभाजित कर दिया. जहां भी सती के अंग गिरे, वहां शक्तिपीठों का निर्माण हुआ. कहते हैं कि यहां सती का हार और कंठ गिरा था. हार गिरने की वजह से इस देवस्थान का नाम मैहर पड़ा और कंठ गिरने से शारदा माता विराजीं जो भक्तों को विद्या और सुरीला कंठ प्रदान करती हैं. आगे चलकर इस मंदिर को मैहर माता मंदिर कहा जाने लगा.
आल्हा, उदल ने की थी मंदिर की खोज
मां शारदा का यह मंदिर त्रिकूट की पहाड़ियों पर स्थित है. ऐसा कहा जाता है कि मां शारदा के इस मंदिर की खोज आल्हा, उदल नाम के दो सगे भाईयों ने की थी जो योद्धा थे. कहा जाता है कि आल्हा और उदल मां शारदा के परम भक्त थे. उन्होंने पर्वत की चोटी पर मौजूद इस मंदिर को ढूंढ़ निकाला था.
इसके बाद उन दोनों ने 12 सालों तक कठोर तपस्या कर देवी मां को प्रसन्न किया. इनकी तपस्या से प्रसन्न होकर माता ने उन्हें अमरता का वरदान दिया था. ऐसी मान्यता है कि यहां आज भी हर दिन ब्रम्ह मुहुर्त में यहां आल्हा और उदल मां की पूजा करते हैं. यह मंदिर लोगों के बीच बेहद मशहूर है. यहां देश-विदेश के कोने-कोने से भक्त आते हैं.
मंदिर तक कैसे पहुंचें?
मैहर मुम्बई-हावड़ा रेलखंड पर स्थित है. यूं तो इस रूट से 163 ट्रेनें गुजरती हैं मगर सब ट्रेनों का स्टापेज मैहर नहीं है. ऐसे में अगर आप मैहर आने का मन बना रहे हैं तो यह पक्का कर लें कि जिस ट्रेन से आप आना चाह रहे हैं वह मैहर में रुकती हो. या फिर नजदीकी रेलवे स्टेशन सतना जंक्शन भी उतर सकते हैं.
मंदिर में ठहरने की व्यवस्था
मैहर में ठहरने के लिए हर तरह के होटल, लॉज और धर्मशाला उपलब्ध हैं. बजट होटलों की कोई कमी नहीं है. मां शारदा प्रबंध समिति द्वारा संचालित यात्री निवास भी है. मां के गर्भगृह तक 3 तरह से पहुंचा जा सकता है. 1063 सीढ़ियां चढ़कर, समिति की वैन सुविधा या फिर आप रोपवे से जाकर मां के दर्शन कर सकते हैं.