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Dussehra 2024: कुंडली में इस ग्रह के कारण हुई थी दशानन की हार, वरना लोक-परलोक में ऐसा कोई शक्तिशाली नहीं!

Dussehra 2024: भगवान राम की कुंडली कर्क लग्न की थी और रावण सिंह लग्न के जातक थे. दोनों के लग्न में विद्यमान बृहस्पति उन्हें शक्तिशाली बनाता है. लेकिन राम का बृहस्पति लग्न में सर्वोच्च का है, जो उन्हें विशिष्ट बना देता है.

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राम की कुंडली में कुछ खास विशेषताओं के चलते वो अहंकारी रावण पर विजय प्राप्त करने में सफल हुए थे
राम की कुंडली में कुछ खास विशेषताओं के चलते वो अहंकारी रावण पर विजय प्राप्त करने में सफल हुए थे

Dussehra 2024: सनानत धर्म में विजयादशमी यानी दशहरे के पर्व को बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है. यह त्योहार विशेष रूप से भगवान राम द्वारा रावण के वध की कथा से जुड़ा हुआ है. इस दिन मंच की रामलीलाओं में भगवान राम के जीवन की घटनाओं को नाटकीय रूप से प्रस्तुत किया जाता है और अंत में रावण, मेघनाद और कुंभकर्ण के पुतलों का दहन किया जाता है.

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भारतीय पौराणिक कथाओं और ज्योतिष शास्त्र में राम और रावण की कुंडलियों को बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है. ऐसा कहा जाता है कि इन दोनों की कुंडलियों में अद्वितीय विशेषताएं थीं, जो उनके जीवन और व्यक्तित्व को प्रभावित करती थीं. ज्योतिष गणना के अनुसार, राम की कुंडली में कुछ खास विशेषताओं के चलते ही वो अहंकारी रावण पर विजय प्राप्त करने में सफल हुए थे.

राम और रावण की कुंडली
भगवान राम की कुंडली कर्क लग्न की थी और रावण सिंह लग्न के जातक थे. दोनों के लग्न में विद्यमान बृहस्पति उन्हें शक्तिशाली बनाता है. लेकिन राम का बृहस्पति लग्न में सर्वोच्च का है, जो उन्हें विशिष्ट बना देता है. वहीं, उच्च के शनि और बुध के कारण रावण एक ज्ञानी, विद्वान और अत्यंत पराक्रमी बन गया. लेकिन राहु के कारण रावण की मति भ्रष्ट हुई और उसे राक्षस की श्रेणी में रख दिया गया. कुल मिलाकर भगवान राम का बृहस्पति ही रावण पर भारी पड़ा और रावण परास्त हुआ.

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हालांकि इसमें कोई संदेह नहीं कि रावण एक अत्यंत ज्ञानी और महा बलशाली राजा था. लेकिन उसने अपनी शक्तियों का दुरुपयोग किया, जो अंततः उसके पतन का कारण बना. अन्यथा लोक-परलोक में उसके जैसे शक्तिशाली योद्धा मिलना असंभव था.

दशानन की अद्भुत शक्तियां और वरदान
रावण को अद्वितीय शक्ति और बल प्राप्त था. उसे लोक-परलोक में अजेय माना जाता था. रावण के 10 सिर और 20 भुजाएं थीं, जो उसकी शक्ति और व्यापकता का प्रतीक थीं. कई दिशाओं में ध्यान देने और हर प्रकार के युद्ध में कुशल क्षमताओं ने उसे बेहद शक्तिशाली बना दिया था.

रावण को पाशुपतास्त्र और अन्य कई दिव्य अस्त्रों का ज्ञान और स्वामित्व प्राप्त था. रावण मायावी शक्तियों का भी धनी था, जिससे वह अपना रूप बदल सकता था, अदृश्य हो सकता था और छल-कपट से शत्रुओं को पराजित कर सकता था.

रावण शिवजी का बहुत बड़ा भक्त भी था. और उसने कठोर तपस्या कर शिवजी से अनेक वरदान प्राप्त किए थे. रावण ने अमरता का वरदान पाने का प्रयास किया था, लेकिन उसे यह वरदान नहीं मिल सका. रावण ने ब्रह्मा जी से वरदान प्राप्त किया था कि उसे देवता, दैत्य, राक्षस या अन्य किसी भी प्राणी द्वारा मारा नहीं जा सकेगा. इस कारण केवल मनुष्य और वानर ही उसे मार सकते थे, जो राम और हनुमान द्वारा पूरा हुआ.

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छल से पाया था पुष्पक विमान
भगवान राम ने अश्विन शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को रावण का संहार किया था. श्रीराम ने रावण के साथ उसकी लंका का विध्वंश किया था. लंका के बारे में मान्यता है कि पहले धन-दौलत के देवता कुबेर यहां वास करते थे. रावण ने अपने छल बल से कुबेर को यहां से हटा दिया, उनका पुष्पक विमान भी हथिया लिया. पुष्पक विमान इच्छानुसार, छोटा या बड़ा हो जाता था. रावण इस विमान में बैठकर मन की गति से उड़ान भरता था. लेकिन इतनी ताकत मिलते ही रावण अपने पथ से और भी भ्रष्ट होता गया.

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