Holi 2025: 14 मार्च को होली का त्योहार है और इस दिन देशभर में रंग-गुलाल उड़ेंगे. हालांकि मथुरा, वृंदावन और बरसाना की होली का अंदाज ही निराला है. यहां रंग, अबीर-गुलाल के अलावा फूल, लड्डू, लट्ठ और छड़ी से भी होली खेली जाती है. शायद ही दुनिया में कोई ऐसी जगह होगी, जहां लट्ठ और छड़ी से मार खाकर लोग खुद को भाग्यशाली समझते हैं. आइए आपको ऐसी ही मजेदार होली के बारे में बताते हैं.
छड़ीमार होली
छड़ीमार होली खेलने की शुरुआत नंदकिले के नंदभवन में ठाकुरजी के सामने राजभोग का भोग लगाकर होती है. भगवान श्री कृष्ण का जन्म मथुरा में हुआ, लेकिन उनका बचपन गोकुल में बीता. आज भी गोकुलवासी इसी रूपी में भगवान श्री कृष्ण को पूजते हैं. यही वजह है कि यहां की होली पूरे बृज से अलग होती है. इसीलिए इसे लट्ठमार नहीं, बल्कि छड़ी मार होली कहा जाता है.
छड़ीमार होली के पीछे एक दिलचस्प कथा भी है. कहते हैं कि कान्हा अपनी अठखेलियों से गोपियों को तंग करते थे, इसलिए गोपियां कान्हा को सबक सिखाने के लिए उनके पीछे छड़ी लेकर भागा करती थीं. ऐसा कान्हा को डराने के लिए किया जाता था. इसी परंपरा की वजह से आज गोकुल में छड़ीमार होली खेली जाती है, जिसमें लट्ठ की जगह छड़ी का इस्तेमाल अपने आराध्य कृष्ण के प्रति प्रेम और भाव का प्रतीक माना गया है.
लट्ठमार होली
होली की बात हो तो नंदगांव बरसाना से पीछे कैसे रह सकता है. होली के मौके पर यहां महिलाएं लठ्ठ मारती हैं और गांव के सारे कन्हैया खुद को बचाते हुए उन्हें रंग लगाने की फिराक में रहते हैं. इस वक्त यहां की फिजाओं में खूब रंग-गुलाल उड़ता है.
कहते हैं कि पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक बार नंद गांव में जब कृष्ण राधा से मिलने बरसाना गांव पहुंचे तो वे राधा और उनकी सहेलियों को चिढ़ाने लगे, जिसके चलते राधा और उनकी सहेलियां कृष्ण और उनके ग्वालों को लाठी से पीटकर अपने आप से दूर करने लगीं. तब से ही इन दोनों गांव में लट्ठमार होली का चलन शुरू हो गया.
लड्डू होली
इसी तरह बरसाने और नंद गांव के लोग लड्डू होली खेलते हैं. एक कथा के अनुसार, द्वापर युग में बरसाने से होली खेलने का निमंत्रण लेकर सखियों को नंद गांव भेजा गया था. राधारानी के पिता वृषभानुजी के न्यौते को कान्हा के पिता नंद बाबा ने स्वीकार कर लिया. नंद बाबा ने एक पुरोहित के हाथों एक स्वीकृति का पत्र भी भेजा. बरसाने में वृषभानुजी ने नंदगांव से आए पुरोहित का काफी आदर सत्कार किया और थाल में रखे लड्डू खाने को दिए थे.
साथ ही, बरसाने की गोपियों ने परोहित को गुलाल भी लगा दिया. फिर क्या था पुरोहित के पास गुलाल तो था नहीं तो उन्होंने थाल में रखे लड्डुओं को ही गोपियों को मारना शुरू कर दिया. तभी से यह लड्डू होली खेले जाने की परंपरा शुरू हई.