भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा इस साल सोमवार, 12 जुलाई की सुबह निकाली जाएगी. हिन्दू धर्म में जगन्नाथ रथ यात्रा का एक बहुत बड़ा महत्व है. मान्यताओं के अनुसार रथयात्रा निकालकर भगवान जगन्नाथ को प्रसिद्ध गुंडिचा माता मंदिर पहुंचाया जाता है, जहां भगवान 7 दिनों तक आराम करते हैं. इस दौरान गुंडिचा माता मंदिर में खास तैयारी होती है और मंदिर की सफाई के लिए इंद्रद्युमन सरोवर से जल लाया जाता है.
इसके बाद भगवान जगन्नाथ की वापसी की यात्रा शुरु होती है. इस यात्रा का सबसे बड़ा महत्व यही है कि यह पूरे भारत में एक पर्व की तरह निकाली जाती है. आइए जानते हैं जगन्नाथ रथयात्रा की महिमा के बारे में.
जगन्नाथ रथयात्रा की महिमा
भगवान जगन्नाथ की मुख्य लीला भूमि ओडिशा की पुरी है. पुरी को पुरुषोत्तम पुरी भी कहा जाता है. राधा और श्रीकृष्ण की युगल मूर्ति के प्रतीक स्वयं श्री जगन्नाथ जी हैं. यानी राधा-कृष्ण को मिलाकर उनका स्वरूप बना है और कृष्ण भी उनके एक अंश हैं. ओडिशा में भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की काष्ठ यानी कि लकड़ियों की अर्धनिर्मित मूर्तियां स्थापित हैं. इन मूर्तियों का निर्माण महाराजा इंद्रद्युम्न ने करवाया था.
भगवान की जगन्नाथ रथयात्रा आषाढ़ शुक्ल पक्ष की दि्तीया को जगन्नाथपुरी में आरंभ होती है. रथयात्रा में भगवान जगन्नाथ साल में एक बार मंदिर से निकल कर जनसामान्य के बीच जाते हैं. इसलिए ही इस रथयात्रा का इतना ज्यादा महत्व है. रथयात्रा में सबसे आगे ताल ध्वज होता जिस पर श्री बलराम होते हैं, उसके पीछे पद्म ध्वज होता है जिस पर सुभद्रा और सुदर्शन चक्र होते हैं और सबसे अंत में गरूण ध्वज पर श्री जगन्नाथ जी होते हैं जो सबसे पीछे चलते हैं.
कैसे करें भगवान जगन्नाथ की पूजा
भगवान जगन्नाथ आषाढ़ शुक्ल पक्ष की दि्तीया से दशमी तक जनसामान्य के बीच रहते हैं. इसी समय उनकी पूजा करना विशेष फलदायी होता है. जगन्नाथ यात्रा आज से शुरू हो चुकी है. कोरोना वायरस महामारी की वजह से इस बार की जगन्नाथ यात्रा को कई शर्तों के साथ मंजूरी मिली है.
रथयात्रा के दौरान भीड़ को रोकने के लिए भक्तों की आवाजाही पर रोक लगाई गई है. अगर आप मुख्य रथयात्रा में भाग नहीं ले सकते हैं तो कोई बात नहीं. आप घर पर ही भगवान जगन्नाथ की उपासना करें, उन्हें भोग लगाएं और उनके मंत्रों का जाप करें.
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