Jaya Ekadashi 2025: आज जया एकादशी है. हिंदू पंचांग के अनुसार, माघ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को जया एकादशी का व्रत रखा जाता है. हिंदू धर्म में जया एकादशी का व्रत बहुत ही खास और महत्वपूर्ण कहलाता है. इस शुभ दिन पर भगवान विष्णु की उपासना की जाती है. इस दिन भक्त श्रीहरि के लिए व्रत भी रखते हैं और उनसे अपनी इच्छाओं के लिए प्रार्थना करते हैं. पूरे साल में 24 एकादशी आती हैं और हर महीने में शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष की एकादशी आती हैं. इस व्रत को रखने से सभी पापों का प्रायश्चित हो जाता है.
जया एकादशी शुभ मुहूर्त (Jaya Ekadashi 2025 Shubh Muhurat)
जया एकादशी तिथि की शुरुआत आरंभ 7 फरवरी यानी कल रात 09 बजकर 26 मिनट पर शुरू हो चुकी है और तिथि का समापन 8 फरवरी यानी आज रात 08 बजकर 14 मिनट पर होगा. जया एकादशी व्रत का पारण 9 फरवरी कल सुबह होगा.
जया एकादशी पूजन विधि (Jaya Ekadashi Pujan Vidhi)
जया एकादशी व्रत करने वाले जातक को सबसे पहले प्रातः काल ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करना चाहिए. फिर, पूजास्थल की अच्छे से साफ-सफाई करके गंगाजल का छिड़काव करें. अब चौकी पर विष्णु जी की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें और इसके पश्चात, भगवान को तिल, फल, चंदन का लेप, धूप और दीपक अर्पित करें.
पूजा का आरंभ करते समय सर्वप्रथम श्रीकृष्ण के भजन और विष्णु सहस्त्रनाम का जाप करें. फिर, भगवान विष्णु को नारियल, अगरबत्ती, फूल और प्रसाद चढ़ाएं. जया एकादशी की पूजा के दौरान मंत्रों का निरंतर जाप करते रहें. एकादशी के अगले दिन द्वादशी पर व्रत का पारण करें.
जया एकादशी उपाय (Jaya Ekadashi Upay)
- जिन जातकों के वैवाहिक जीवन में समस्याएं चल रही हैं, उन्हें जया एकादशी पर तुलसी की पूजा करनी चाहिए. साथ ही, देवी लक्ष्मी और तुलसी माता को श्रृंगार की सामग्री चढ़ाएं.
- जया एकादशी के दिन श्रीमद्भागवत कथा का पाठ करना बेहद शुभ रहता है और इससे आपके जीवन के कष्ट दूर होते हैं.
- जया एकादशी पर पीपल के वृक्ष के नीचे घी का दीपक जलायें और पेड़ की परिक्रमा करें. ऐसा करने से विष्णु जी और मां लक्ष्मी दोनों का आशीर्वाद भी मिलता है. साथ ही, घर से दरिद्रता भी दूर होती है.
जया एकादशी कथा
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने जया एकादशी की यह कथा धर्मराज युधिष्ठिर को सुनाई थी जो कि इस प्रकार है: एक बार की बात है नंदन वन में उत्सव मनाया जा रहा था और इस उत्सव में सभी देवी-देवता और ऋषि-मुनि शामिल हुए थे. संगीत व नृत्य का भी आयोजन उत्सव में किया गया था और इसी सभा में माल्यवान नाम का एक गंधर्व गायक और पुष्यवती नाम की एक नृत्यांगना नृत्य कर रही थी. उत्सव में नृत्य करते हुए दोनों एक-दूसरे पर मोहित हो गए और दोनों ही अपनी मर्यादा खो बैठे और अपनी लय भूल गए. उन दोनों के इस व्यवहार को देखकर देवराज इंद्र क्रोधित हो गए और उन्होंने दोनों को स्वर्ग लोक से निष्कासित करते हुए मृत्युलोक यानी पृथ्वी पर जीवनयापन करने का श्राप दे दिया. इस वजह से गन्धर्व और पुष्यवती धरती पर पिशाचों की जीवन जीने लगे.
मृत्यु लोक में रहते हुए उन दोनों को अपनी गलती पर पछतावा होने लगा और अब वह अपनी इस पिशाची जीवन से मुक्ति प्राप्त करना चाहते थे. ऐसे में, एक बार माघ शुक्ल की जया एकादशी तिथि पर दोनों ने भोजन का सेवन नहीं किया और पीपल के पेड़ के नीचे अपनी पूरी रात गुजारी. अपनी भूल का पश्चाताप करते हुए भविष्य में ऐसी गलती न दोहराने का संकल्प लिया. इसके पश्चात, अगली सुबह होते ही उन दोनों को पिशाची जीवन से मुक्ति मिल गई. उन दोनों को यह बात पता नहीं थी कि उस दिन जया एकादशी थी और दोनों ने जाने-अनजाने में जया एकादशी का व्रत पूरा कर लिया था. इस वजह से भगवान विष्णु ने प्रसन्न होकर उन दोनों को पिशाच योनि से मुक्त दे दी. जया एकादशी व्रत के प्रभाव से दोनों पहले की तुलना में और भी अधिक रूपवान बन गए और फिर से उन्हें स्वर्ग लोक की प्राप्ति हुई.