scorecardresearch
 

आखिर क्या है नागा साधु की रहस्यमयी दुनिया का सच? जानें कब से शुरू हुई इनकी परंपरा

नागा साधुओं का जीवन अन्य साधुओं की तुलना में सबसे कठिन माना जाता है और उनका संबंध शैव परंपरा की स्थापना से जुड़ा हुआ है. 8वीं शताब्दी में आदि शंकराचार्य ने अखाड़ा प्रणाली की स्थापना की. इस प्रणाली के तहत सनातन धर्म की रक्षा के उद्देश्य से शस्त्र और शास्त्र दोनों में निपुण साधुओं का एक संगठन बनाया गया. इन साधुओं को 'धर्म रक्षक' या 'नागा साधु' कहा जाता था.

Advertisement
X
महाकुंभ 2025 नागा साधु
महाकुंभ 2025 नागा साधु

हिंदू धर्म के सबसे पवित्र और महत्वपूर्ण पर्व में से एक महाकुंभ. महाकुंभ बहुत दुर्लभ आयोजन है, जो 12 पूर्ण कुंभ यानी 144 वर्षों के बाद एक बार आता है. यह सिर्फ प्रयागराज में संगम तट पर आयोजित होता है. 2025 के महाकुंभ मेले का आगाज 13 जनवरी यानी आज से हो चुका है और इसका समापन 26 फरवरी 2025 को महाशिवरात्रि के दिन होगा. परंतु, महाकुंभ में सबसे खास होता है शाही स्नान, जिस पर दुनियाभर के लोगों की आंखें टिकी होती हैं. शाही स्नान के साथ-साथ इस मेले का मुख्य आकर्षण नागा साधु होते हैं. नागा साधुओं का जीवन अन्य साधुओं की तुलना में सबसे कठिन माना जाता है और उनका संबंध शैव परंपरा की स्थापना से जुड़ा हुआ है.

Advertisement

8वीं शताब्दी में आदि शंकराचार्य ने अखाड़ा प्रणाली की स्थापना की. इस प्रणाली के तहत सनातन धर्म की रक्षा के उद्देश्य से शस्त्र और शास्त्र दोनों में निपुण साधुओं का एक संगठन बनाया गया. इन साधुओं को "धर्म रक्षक" या "नागा साधु" कहा जाता था. 'तो चलिए जानते हैं कि कौन होते हैं नागा साधु और कैसा होता है इनका जीवन? साथ ही ये भी जानते हैं कि गुरु आदि शंकराचार्य कौन हैं?

कौन होते हैं नागा साधु?

लेखक अक्षत गुप्ता की द नागा वॉरियर्स किताब के मुताबिक, 'नागा साधु भगवान शिव के अनुयायी होते हैं जिनके पास तलवार, त्रिशूल, गदा, तीर धनुष जैसे हथियार होते थे. नागा साधुओं को अक्सर महाकुंभ, अर्धकुंभ, या सिंहस्थ कुंभ में देखा जाता है. आदि गुरु शंकराचार्य ने सनातन धर्म की रक्षा के लिए केवल साधारण सैनिक नहीं, बल्कि वैदिक सैनिक तैयार किए. ऐसे सैनिकों का एक संगठन बनाया गया, जिनके पास धर्म के अलावा कोई और विरासत नहीं थी. उनके एक हाथ में वेद, गीता, उपनिषद और पुराण थे, तो दूसरे हाथ में भाला, तलवार और कृपाण. आदि गुरु शंकराचार्य ने ऐसे साधु-सैनिकों का एक संगठन बनाया, जो साधु भी थे और सैनिक भी. इन्हें ज्ञान देना और प्राण लेना, दोनों का अभ्यास था. इन्हीं योद्धा साधुओं को उन्होंने 'नागा' नाम दिया. 

Advertisement
नागा साधु

द नागा वॉरियर्स के मुताबिक, 'उस समय बाहरी आक्रमणकारियों ने भारत की संस्कृति पर आक्रमण कर उसे मिटाना शुरू कर दिया था. बाहरी आक्रांताओं के इस दमनकारी अभियान के सामने हिंदू जनमानस असहाय महसूस करने लगा, जिसके परिणामस्वरूप मंदिर तोड़े जाने लगे और धार्मिक ग्रंथों को नष्ट किया जाने लगा ताकि आने वाली पीढ़ियों के लिए ज्ञान के मार्ग को अवरुद्ध किया जा सके, परंतु इसी दुर्गति काल के लिए आदिगुरु शंकराचार्य ने नागा साधुओं के रूप में वैदिक योद्धाओं की सेना तैयार की, जो धर्म की रक्षा कर सके.'

आदि शंकराचार्य ने तैयार किए थे नागा योद्धा 

द नागा वॉरियर्स किताब के मुताबिक, 'नागा योद्धाओं की सेना तैयार करने के पीछे आदिगुरु शंकराचार्य का लक्ष्य एकदम साफ था. भारतवर्ष की आत्मा, अध्यात्म और उसके मन दर्शन की रक्षा करना, इस देश की सांस्कृतिक विरासत और इसकी पुरातन धरोहरों की रक्षा करना. उन्होंने नागाओं को बाहरी आक्रमण से उनके पवित्र धार्मिक स्थलों, धार्मिक ग्रंथों और आध्यात्मिक ज्ञान की रक्षा की जिम्मेदारी सौंपी थी. आदिगुरु शंकराचार्य भारत के लोगों को यह संदेश देना चाहते थे कि जब तक एक हाथ में शास्त्र के साथ-साथ दूसरे हाथ में शस्त्र ना हो, तब तक धर्म की रक्षा नहीं की जा सकती. अंततः बाद में आदिगुरु शंकराचार्य ने अपने इस संदेश को भारतवर्ष के कोने-कोने में फैलाने और लोगों को अपनी संस्कृति, सभ्यता और धर्म की रक्षा की खातिर युद्धभूमि में उतरने के लिए प्रेरित करने के उद्देश्य से नागा साधुओं को भेजा था.'

Advertisement

कैसे बनते हैं नागा साधु?

दिल्ली विश्वविद्यालय की प्रोफेसर युथिका मिश्रा के मुताबिक, 'भारत में नागा साधुओं का इतिहास बहुत पुराना है लेकिन आज भी इनका जीवन आम लोगों के लिए एक रहस्य की तरह होता है. भारत में लगने वाले सबसे बड़े धार्मिक मेले महाकुंभ, के कई अलग-अलग रंगों में से सबसे रहस्यमयी रंग होते हैं- नागा साधु जिनका संबंध शैव परंपरा से है, सनातन परंपरा की रक्षा करने और इस परंपरा को आगे बढ़ाने के लिए अलग-अलग संन्यासी अखाड़ों में हर महाकुंभ के दौरान नागा साधु बनने की प्रक्रिया अपनाई जाती है.

आगे प्रोफेसर बताती हैं कि,'संतों के 13 अखाड़ों (निरंजनी अखाड़ा, जूना, महानिर्वाणी, अटल, आह्वान, आनंद, अग्नि, नागपंथी गोरखनाथ, वैष्णव, उदासीन पंचायती बड़ा अखाड़ा, उदासीन नया अखाड़ा, निर्मल पंचायती अखाड़ा और निर्मोही अखाड़ा) में से सात अखाड़े ही नागा साधु बनाते हैं. ये हैं- जूना, महानिर्वाणी, निरंजनी, अटल, अग्नि, आनंद और आवाहन अखाड़ा. नागा साधु बनने की प्रक्रिया कठिन और 12 साल लंबी होती है. नागा साधुओं के पंथ में शामिल होने की प्रक्रिया में लगभग छह साल लगते हैं. इस दौरान नए सदस्य एक लंगोट के अलावा कुछ नहीं पहनते. कुंभ मेले में अंतिम प्रण लेने के बाद वे लंगोट भी त्याग देते हैं और जीवन भर यूं ही नग्न यानी दिगंबर रहते हैं. 

Advertisement

नागा साधु स्वयं का करते हैं पिंडदान

प्रोफेसर युथिका मिश्रा के मुताबिक, 'अखाड़े में प्रवेश के लिए व्यक्ति का चयन गहन जांच-पड़ताल के बाद ही किया जाता है. सबसे पहले उसे लंबे समय तक ब्रह्मचारी के रूप में जीवन बिताना होता है. इसके बाद उसे  'महापुरुष' और फिर 'अवधूत' का दर्जा दिया जाता है. अंतिम प्रक्रिया महाकुंभ के दौरान पूरी होती है, जहां उसका स्वयं का पिंडदान और दंडी संस्कार संपन्न कराया जाता है, जिसे 'बिजवान' कहा जाता है. इसके बाद उसे अंतिम परीक्षा से गुजरना होता है, जिसमें वह दिगंबर और फिर श्रीदिगंबर बनाया जाता है. दिगंबर नागा एक लंगोट पहन सकता है, जबकि श्रीदिगंबर को पूरी तरह नग्न रहकर जीवन यापन करना होता है. इसके बाद इन्हें पांच गुरु भगवान शिव, भगवान विष्णु, शक्ति, सूर्य और श्री गणेश स्वीकारने होते हैं. इसके बाद नागा साधुओं के बाल मुंडवाए जाते हैं, और कुंभ के दौरान उन्हें गंगा नदी में 108 डुबकियां लगानी पड़ती हैं.'

क्यों कहा जाता है नागा साधुओं को 'धर्म का रक्षक'

नागाओं का पराक्रम इतिहास के पन्नों में पहली बार 1757 में गोकुल के युद्ध के रूप में दर्ज किया गया था, द नागा वॉरियर्स के मुताबिक, '111 नागा साधुओं ने अहमद शाह अब्दाली के नेतृत्व वाली अफगान सेना को हराया था.  वहीं, नागा साधुओं के दो योद्धा अजा और शंभू 4000 अफगान सिपाहियों, 200 घुड़सवारों, 100 ऊंट सवारों और 20 तोपों के सामने एक मजबूत दीवार की तरह डट गए थे. इस बर्बर अफगान सेना का नेतृत्व सरदार खान कर रहा था, जो मंदिरों को ध्वस्त करने और भारत में नरसंहार करने वाले अफगान शासक अहमद शाह अब्दाली का सबसे निर्दयी सिपाही था.

Advertisement
नागा साधु और अफ्गानी शासक अहमद शाह अब्दाली के बीच युद्ध (AI Generated)

अहमद शाह अब्दाली ने गोकुल पर किया था हमला

दरअसल, अहमद शाह अब्दाली एकदम क्रूर, निर्दयी रक्तपिशाच शासक था. 1757 में अहमद शाह अब्दाली भारतीय मंदिरों और संस्कृति को ध्वस्त कर आगे बढ़ रहा था. उसी बीच उसने वृंदावन, मथुरा और गोकुल पर भी हमला किया था. लेकिन, उसे इस बात का ज्ञान नहीं था कि गोकुल नगरी में उस समय देश के ज्यादातर नागा साधु पहुंचे हुए थे. 

उस समय गोकुल को जीतने की जिम्मेदारी अहमद शाह अब्दाली ने अपने सेनापति सरदार खान को दी थी, जो अपने 4000 सैनिक लेकर गोकुल की ओर बढ़ रहा था. सरदार खान अपने सैनिकों के साथ गोकुल पहुंचा तो उसने देखा कि लगभग 111 नग्न और राख से सने नागा साधु उसका तलवारों और भालों के साथ इंतजार कर रहे थे. सरदार खान ने उन पर हंसते हुए अपने सैनिकों से कहा कि वे दोपहर के भोजन से पहले उन्हें मार डालें क्योंकि उसे लगा कि ये नग्न लोग उसकी परिष्कृत और प्रशिक्षित सेना के साथ क्या करेंगे. नागाओं और अफगानों के बीच युद्ध शुरू हो गया और अफगानों की उम्मीदें कुछ ही घंटों में गलत साबित हुईं क्योंकि उनकी सेना ताश के पत्तों की तरह बिखर गई. सरदार खान इससे घबरा गया और उसने तुरंत ओर सैनिकों की मदद मांगी, लेकिन ये भी नागा साधुओं की सेना के लिए पर्याप्त नहीं थे. 

Advertisement

सरदान खान ने मान ली थी हार

राख से सने चेहरे अफगान सैनिकों के लिए एक भयानक दृश्य थे. भारी क्षति के साथ, अफगान सेना की ताकत कम हो गई. इससे वृंदावन में मौजूद शासक अहमद शाह अब्दाली को गुस्सा आ गया और उसने कुछ और सैनिक भेजे, लेकिन इसका कोई फायदा नहीं हुआ क्योंकि वे भी नागा-अघोरी साधुओं से हार गए. अफगानी सेना के क्षत-विक्षत शवों का ढेर लग रहा था और अफगान सेना का मनोबल गिर रहा था. अपनी जान की परवाह किए बिना सेनापति सरदार खान ने अपने सैनिकों को पीछे हटने का आदेश दिया. इस प्रकार नागा साधु शैतानी ताकतों से पवित्र शहर गोकुल को बचाने में सक्षम हुए. 

कौन था अहमद शाह अब्दाली?

डॉ. वी. डी. महाजन की पुस्तक मध्यकालीन भारत के मुताबिक, 'अहमद शाह अब्दाली अफगानी सेना का सेनापति था. सन 1748 ई. तथा सन 1767 के बीच अहमदशाह अब्दाली ने हिंदुस्तान के विरुद्ध सात चढ़ाइयां कीं थी. मुख्य रूप से ये आक्रमण उसने हिंदुस्तान पर अफगानिस्तान का वर्चस्व स्थापित करने के लिए किए थे. अहमदशाह अब्दाली को 'दुर्रे-दुर्रानी' (युग का मोती) कहा जाता था. इसका पहला आक्रमण 1747 ई. में मुगल शासक मुहम्मदशाह के काल में ही हुआ था. 

अहमद शाह अब्दाली (AI Generated)

किन स्थानों पर बनाए जाते हैं नागा साधु?

Advertisement

कुंभ का आयोजन हरिद्वार, उज्जैन, नासिक और प्रयागराज में जहां गंगा, यमुना और सरस्वती का संगम होता है, चार पवित्र स्थानों पर किया जाता है. इसलिए, नागा साधु बनने की प्रक्रिया भी इन्हीं चार जगहों पर होती है.  पुराणों के अनुसार, इन्हीं चार जगहों पर अमृत की बूंदें गिरी थीं. तब से आज तक कुंभ का आयोजन इन्हीं चार जगहों पर किया जाता है. अलग-अलग स्थानों पर नागा साधुओं की दीक्षा लेने वाले साधुओं को अलग-अलग नाम से जाता है. 

- प्रयागराज में दीक्षा लेने वालों को 'नागा' कहते हैं. 
- हरिद्वार में दीक्षा लेने वालों को 'बर्फानी नागा' कहा जाता है. 
- उज्जैन में दीक्षा लेने वालों को 'खूनी नागा' कहते हैं. 
- नासिक में दीक्षा लेने वालों को 'खिचड़िया नागा' कहते हैं. 

समय समय पर जगह बदलते हैं नागा साधु

नागा साधुओं का जीवन बहुत रहस्यमय होता है. कुंभ के बाद वह कहीं गायब हो जाते हैं. कहा जाता है कि नागा साधु जंगल के रास्ते से देर रात में यात्रा करते हैं. इसलिए ये किसी को नजर नहीं आते हैं. नागा साधु समय-समय पर अपनी जगह बदलते रहते हैं. इस कारण इनकी सही स्थिति का पता लगाना बहुत मुश्किल होता है. ये लोग गुप्त स्थान पर रहकर ही तपस्या करते हैं. 

नागा साधुओं के श्रृंगार और आभूषण

नागा साधुओं का श्रृंगार बहुत ही खास और अनोखा होता है. शरीर को सजाना नागा साधुओं के अनुष्ठान का हिस्सा है. भगवान शिव के करीब महसूस करने के लिए वे अपने शरीर पर विभिन्न प्रकार की आध्यात्मिक चीजें पहनते हैं जैसे भस्म, फूल, रुद्राक्ष की माला, माथे पर तिलक लगाते हैं, लंगोट, हाथ में हथियार, संगीत के लिए चिमटा, जटा यानी लंबे बाल और दाढ़ी.

Live TV

Advertisement
Advertisement