scorecardresearch
 

किन्नर अखाड़ा क्या है और इसकी शुरुआत कब हुई? पवित्रा नंदगिरी ने बताई पूरी कहानी

महाकुंभ से पहले आजतक ने प्रयागराज में धर्म संसद का आयोजन किया जिसमें श्री सिद्धमठ की महामंडलेश्वर साध्वी विश्वरूपा, किन्नर अखाड़ा की महामंडलेश्वर मां पवित्रा नंद गिरी, महानिर्वाणी अखाड़ा की महामंडलेश्वर साध्वी दिव्य गिरी जी और कामाख्यापीठ की महामंडलेश्वर साध्वी गायत्रीनंद गिरि ने शिरकत की. इस दौरान उन्होंने देश में सनातन धर्म के महत्व, साध्वी और महिला संन्यासियों पर अपनी राय रखी.

Advertisement
X
आजतक धर्म संसद
आजतक धर्म संसद

प्रयागराज में 13 जनवरी से महाकुंभ मेला शुरू होने वाला है जिसमें देश-विदेश से श्रद्धालु बड़े पैमाने पर गंगा-युमना और सरस्वती के तट पर जुट रहे हैं. इस महाकुंभ से पहले आजतक ने प्रयागराज में धर्म संसद का आयोजन किया जिसमें श्री सिद्धमठ की महामंडलेश्वर साध्वी विश्वरूपा, किन्नर अखाड़ा की महामंडलेश्वर मां पवित्रा नंद गिरी, महानिर्वाणी अखाड़ा की महामंडलेश्वर साध्वी दिव्य गिरी जी और कामाख्यापीठ की महामंडलेश्वर साध्वी गायत्रीनंद गिरि ने शिरकत की. इस दौरान उन्होंने देश में सनातन धर्म के महत्व, साध्वी और महिला संन्यासियों पर बातचीत की.

Advertisement

साध्वी क्या होती हैं?

एंकर श्वेता सिंह ने पहला सवाल करते हुए साध्वी विश्वरूपा जी से पूछा कि, 'साध्वी क्या होती हैं. ' जिसपर साध्वी विश्वरूपा ने कहा कि, 'हर किसी का निर्माण स्त्री करती हैं और साधु संतों का निर्माण भी स्त्रियां ही करती हैं. इतिहास में ऐसा समय आया था जब स्त्रियों को दबाया जाने लगा था जैसे मुगल काल का समय. उस समय महिलाओं को घूंघट प्रथा अपनानी पड़ी थी. वरना, वैदिक काल में बहुत ऐसी वीरांगना रही हैं जिन्होंने देश का नाम रोशन किया जैसे गार्गी और मैत्री.

साध्वी विश्वरूपा ने कहा, स्त्रियों के बिना तो हर चीज अधूरी है. इसलिए, सनातन धर्म में स्त्रियों का कद उच्च रहा है. स्त्री सिर्फ जननी नहीं बल्कि शिक्षिका है, डॉक्टर है और एक साध्वी भी है. साध्वी महिला का वो रूप होता है जो महिला को हर आदर्श सिखाता है. हर महिला को सनातन धर्म को संभालने की जरूरत है और यही महिला का कर्तव्य है. एक महिला मां लक्ष्मी, मां सरस्वती, मां दुर्गा, मां काली और मां चंडिका का रूप है. हर स्त्री को संस्कारों से परिपूर्ण होना चाहिए. सृष्टि की संरचना स्त्री द्वारा की गई है अगर वो संस्कारी होगी तो उसका पुत्र-परिवार भी संस्कारी होगा. 

Advertisement

साध्वी के लिए रिश्ते छोड़ना आसान है या नहीं

एक साध्वी के लिए रिश्ते छोड़ना मुश्किल होता है या नहीं, इस पर साध्वी विश्वरूपा जी बोलीं कि, 'हां एक साध्वी के लिए परिवार छोड़ना कठिन होता है. कोई भी महिला कितना भी सशक्तीकरण की बात करें लेकिन महिला और पुरुष में फर्क हमेशा ही रहता है. ईश्वर ने भी महिलाओं को भावनात्मक और कोमल रूप दिया है. साथ ही, ज्यादा विचारों का मंथन भी महिलाओं में ही होता है. दरअसल, समाज की इस सोच ने महिला और पुरुष को अलग अलग दायरे में खड़ा कर दिया है. बचपन से ही महिलाओं को दबा कर रखा जाता है और जब महिला आगे बढ़ने लगती है तो लोग उसके चरित्र पर सवाल उठाने लगते हैं. लेकिन, इस सबके बावजूद स्त्री बहुत ही ताकतवर होती है. महिलाओं को कभी भी किसी पुरुष से छोटा नहीं समझना चाहिए. लेकिन, महिलाओं को सोशल मीडिया से भी दूर रहना चाहिए क्योंकि महिलाएं आजकल जो रील्स बना रही हैं, उससे सनातन संस्कृति कमजोर हो रही है. 

साध्वी विश्वरूपा जी की इस बात से सहमत होते हुए मां पवित्रा नंद गिरि जी कहती हैं, 'अगर मां परेशान होती हैं तो उस मां का पूरा परिवार परेशान होता है क्योंकि मां से ही पूरा परिवार जुड़ा होता है. इसलिए, मां अगर संस्कारी है तो परिवार भी संस्कारी होगा. जीवन में काम ऐसा करना चाहिए जिससे लोग आपको जानें. 

Advertisement

किन्नर अखाड़ा क्या है?

मां पवित्रा नंद गिरी जी ने किन्नर अखाड़ों पर अपनी राय रखते हुए बताया कि, 'पहले के समय में समाज किन्नरों का तिरस्कार करता था और उन्हें अल्पसंख्यक वर्ग में रखा जाता था. लेकिन, किन्नर वर्ग समाज का सबसे ताकतवर वर्ग होता है क्योंकि ये वर्ग शिवशक्ति का रूप भी होता है. समाज ने हमेशा किन्नरों को गलत नजरों से देखा है. लेकिन, सनातन धर्म ने किन्नरों को अपनाया और समाज में एक उच्च स्थान दिया. आज सनातन धर्म की वजह से ही लोग किन्नरों का तिरस्कार न करके उनका आशीर्वाद लेते हैं. जिसके चलते 2013 में किन्नर अखाड़ा की स्थापना उज्जैन नगरी में हुई और 2016 में हुए सिंहस्थ कुंभ में हम किन्नरों को एक स्थान दिया गया. वहीं, साल 2025 के महाकुंभ में भी हम लोगों का अखाड़ा प्रस्तुति पेश करेगा, यह किन्नर वर्ग के लिए बहुत ही बड़ी बात है. धीरे-धीरे और भी लोग हमारे किन्नर अखाड़े के साथ वापिस जुड़ रहे हैं, जो कि बहुत बड़ी जीत है. 

श्रृंगार क्या है?

मां पवित्रा नंद जी ने श्रृंगार पर अपनी राय रखते हु्ए कहती हैं, 'अगर मैं श्रृंगार नहीं करूंगी तो मैं अधूरी हूं. श्रृंगार नारी के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण होता है क्योंकि हमारे देवी देवता भी श्रृंगार से परिपूर्ण हैं. हर किन्नर वर्ग के व्यक्ति की पहचान ही श्रृंगार से होती है. श्रृंगार एक गहना और एक कला है. कुंभ में भी मां गंगा का श्रृंगार हो रखा है और उन्हें हर कोई प्रणाम करता है और करता रहेगा. 

Advertisement

कुंभ में महामंडलेश्वर का क्या कार्य होता है? 

एंकर श्वेता सिंह ने साध्वी दिव्य गिरी जी से ये सवाल किया कि, 'महामंडलेश्वर का क्या कार्य होता है. तो इस पर साध्वीजी ने जवाब देते हुए कहा कि, मंडलेश्वर का संबंध अखाड़ों से होता है. कुंभ में अखाड़ों की परंपरा किसी भी पद के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण होती है. अखाड़ा शब्द अखंड से बना है. अखाड़ों की पूरी नींव शस्त्र और शास्त्र पर होती है. अखाड़ों का दायित्व बहुत ही खास होता है और अखाड़ों का महत्व साधुओं, साध्वी और सन्यासियों से ही बढ़ता है. 2019 के कुंभ में जून अखाड़े में 300000 संन्यासी थे जिनमें से 200 महिलाएं संन्यासिनी थी. और धीरे धीरे यह संख्या बढ़ रही है. अर्धकुंभ में महिलाओं सन्यासियों की संख्या थोड़ी ही बढ़ती है लेकिन पूर्णकुंभ में महिला संन्यासियों की संख्या काफी बढ़ जाती है.' 

साध्वियों के लिए शास्त्र और शस्त्र क्या महत्वपूर्ण है?

साध्वी दिव्य गिरी जी इस पर ये कहती हैं कि, 'अखाड़ा शब्द का मतलब शस्त्रों से है. अखाड़ों में पहले शस्त्रों की ट्रेनिंग दी जाती थी. धीरे धीरे इसमें बदलाव आया, शस्त्र से हटकर लोग शास्त्रों पर आ गए. ठीक उसी तरह महिला संन्यासियों के लिए भी अखाड़े होते हैं और उनकी भी ट्रेनिंग होती है. संन्यासी बनने के लिए हर उम्र की महिला आती है जिसका खास ख्याल रखना होता है जैसे शारीरिक विकास, मासिक विकास. साथ ही, महिला संन्यासी क्या सीखना चाहती हैं, वो भी ध्यान में रखा जाता है. सबसे कम उम्र की महिला संन्यासी को ज्यादा प्रशिक्षण की जरूरत होती है. और उम्र बढ़ने के साथ-साथ उन्हें भक्ति की तरफ अग्रसित किया जाता है.

Advertisement

क्या साध्वी और साधु बनने की प्रक्रिया समान है?

एंकर श्वेता सिंह साध्वी गायत्रीनंद गिरि से सवाल करती हैं कि क्या साध्वी और साधु बनने की प्रक्रिया समान होती है या कुछ अलग-अलग कठिनाइयां या नियम होती हैं. इस पर साध्वी गायत्रीनंद गिरि कहती हैं कि, ' साध्वी और साधु बनने के लिए एक जैसे ही नियम होते हैं. साधु कोई भी व्यक्ति बहुत ही कष्टों के बाद बनता है और उसके लिए समय पर पूजा पाठ करना पड़ता है. साधु किसी भी उम्र में बना जा सकता है और ना तो साधु की कोई उम्र होती है. साधु का सिर्फ पिंडदान होता है.

Live TV

Advertisement
Advertisement