भगवान शिव को समर्पित सावन के महीने का शुभारंभ दो शुभ योगों के साथ हुआ है. अब अगले एक महीने तक भगवान शिव अपने भक्तों पर महाकृपा बरसाएंगे. सावन में भोले बाबा आशीर्वाद देने के लिए कैलाश से साक्षात जमीं पर उतर आते हैं. शिव मंदिरों में भोलेनाथ के जयकारे गूंजने लगते हैं. हर हर महादेव और बम बम भोले की गूंज से मंदिर और शिवालयों का वातावरण शिवमय हो जाता है.
2 शुभ योगों के साथ आया सावन
इस बार सावन के महीने की शुरुआत विष्कुंभ और प्रीति योग से हुई है. इस योग में जन्म लेने वाले जातक परम भाग्यशाली होते हैं. ऐसे जातक जीवन में धन, वैभव और सुखों का लाभ उठाते हैं. सावन में इन योग में रुद्राभिषेक करने से दुख खत्म होते हैं. महादेव की कृपा से सारे बिगड़े काम बन जाते हैं.
पहले दिन ऐसे करें पूजन
भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए सावन के पहले दिन शिवलिंग पर सुबह जल और बेल पत्र अर्पित करें. शिवलिंग का दूध से अभिषेक करें. लेकिन ख्याल रखें कि तांबे का पात्र से दूध बिल्कुल न चढ़ाएं. शिव पंचाक्षर स्तोत्र जप करें. पूजा के बाद जलपान या फलाहार करें. रुद्राक्ष धारण करने के लिए सावन का महीना इसके लिए सबसे उपयुक्त है.
क्या है श्रावण मास की कहानी?
पौराणिक कथा के अनुसार, सावन में ही समुद्र मंथन हुआ था. सृष्टि की रक्षा के लिए मंथन से निकले कालकूट विष को भगवान भोलेनाथ पी गए थे और उनका कंठ नीला पड़ गया था. तभी से उनका नाम नीलकंठ पड़ गया. समस्त देवी-देवताओं ने शिवजी को राहत पहुंचाने और विष के प्रभाव को कम करने भगवान शिव पर शीतल जल अर्पित किया. तभी से शिवजी को जल बहुत प्रिय है और इसलिए उनके भक्त सावन में भोले भंडारी का जलाभिषेक करते हैं.
ऐसा कहते हैं कि भगवान भोलेनाथ की अर्धांगिनी देवी सती ने शिवजी को हर जन्म में पति के रूप में पाने के लिए तपस्या की थी. माता सती का दूसरा जन्म पार्वती के रूप में हुआ था. देवी पार्वती ने भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए सावन के माह में कठोर तप किया था. कहते हैं कि शिवजी ने इसी माह में देवी पार्वती से विवाह किया था. इसलिए भगवान भोलेनाथ को सावन का माह बहुत प्रिय हैं. सावन में सोमवार के व्रत, उपासना और कथा का परम महत्व बताया गया है.