रामायण में कई पात्रों का वर्णन किया गया है जिनमें से एक शबरी भी है. 'शबरी के जूठे बेर' के बिना रामायण बिल्कुल अधूरी है. शबरी की भक्ति को पूरा करने के लिए भगवान राम ने उनके जूठे बेर खाए थे. फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि को शबरी जयंती मनाई जाती है. इस दिन श्रीराम भक्त शबरी की स्मृति यात्रा निकालते हैं और पूरे विधि विधान से उनकी पूजा करते हैं. शबरी जयंती इस बार बुधवार, 23 फरवरी को मनाई जाएगी. आइए आपको आज शबरी जयंती के बारे में विस्तार से बताते हैं और ये भी जानते हैं कि वो जगह आज कहां हैं जहां शबरी से प्रभु राम की मुलाकात हुई थी.
शबरी जयंती का महत्व
हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार, इस दिन श्री राम की असीम कृपा से शबरी को मोक्ष की प्राप्ति हुई थी. ऐसा कहा जाता है कि फाल्गुन के महीने में कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि पर ही शबरी को उनकी भक्ति के परिणामस्वरूप मोक्ष मिला था. तभी से शबरी जयंती मनाने की परंपरा चली आ रही है.
शबरी की राम से मुलाकात
शबरी अपना घर त्यागकर वनों में भटकने लगी थी. इस दौरान किसी ने भी उन्हें अपने आश्रम में शरण नहीं दी. आखिरकार वह मतंग ऋषि के आश्रम पहुंची, जहां मतंग ऋषि ने अपना शरीर त्यागने से पहले शबरी को वरदान दिया कि भगवान राम उनसे मिलने आएंगे. इसके बाद शबरी को मोक्ष की प्राप्ति हो जाएगी. शबरी ने पूरा जीवन राम की प्रतीक्षा की. अंतत: भगवान राम ने ना सिर्फ शबरी को दर्शन दिए, बल्कि उनके जूठे बेर भी खाए.
शबरी से कहां मिले थे प्रभु राम?
भगवान राम और शबरी की मुलाकात का वर्णन रामायण में भी मिलता है. क्या आप जानते हैं शबरी से भगवान राम जहां मिले थे, वो जगह आज कहां है? ये जगह आज शबरी धाम के नाम से प्रचलित है जो दक्षिण-पश्चिम गुजरात के डांग जिले के आहवा से 33 किलोमीटर और सापुतारा से करीब 60 किलोमीटर दूर सुबीर गांव के पास स्थित है. ये वही जगह है जहां भगवान राम ने शबरी के जूठे बेर खाए थे.