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Shattila Ekadashi 2022: षटतिला एकादशी कब है? जानें विष्णु पूजा का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि व कथा

Shattila Ekadashi 2022: हिंदू धर्म में एकादशी तिथि का विशेष महत्व माना गया है. वहीं माघ माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को षटतिला एकादशी कहा जाता है. इस दिन भगवान विष्णु की पूजा और व्रत करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है. षटतिला एकादशी व्रत में भगवान विष्णु को तिल से बने पकवानों का भोग लगाने से शुभ फल की प्राप्ति होती है. इस बार षटतिला एकादशी व्रत 28 जनवरी दिन शुक्रवार को रखा जाएगा.

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भगवान विष्णु (फोटो-Getty image)
भगवान विष्णु (फोटो-Getty image)
स्टोरी हाइलाइट्स
  • 2 घंटे 9 मिनट का शुभ मुहूर्त
  • 28 जनवरी को है षटतिला एकादशी

Shattila Ekadashi 2022 Date: षटतिला एकादशी के दिन भगवान विष्णु (Lord Vishnu) की पूजा का विधान है. ज्योतिष के अनुसार षटतिला एकादशी पर तिल का  विशेष महत्व बताया गया है. ज्योतिषाचार्य डॉ. अरविंद मिश्र ने बताया कि इस दिन तिल से स्नान, तिल का उबटन लगाना, तिल से हवन, तिल से तर्पण, तिलों का दान और तिलों से बनी चीजों का सेवन करना अत्यंत शुभ माना गया है.  इस बार षटतिला एकादशी व्रत  28 जनवरी दिन शुक्रवार को रखा जाएगा. आइये जानते हैं षटतिला एकादशी पर  विष्णु पूजा का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि व कथा...

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षटतिला एकादशी 2022 पूजा मुहूर्त (Shattila Ekadashi Puja Muhurat)

षटतिला एकादशी 2022 पूजा मुहूर्त 2 घंटे 9 मिनट का रहेगा. 28 जनवरी को सुबह 07 बजकर 11 मिनट से 9 बजकर 20 मिनट तक का शुभ मुहूर्त है.


षटतिला एकादशी पूजा विधि (Shattila Ekadashi Puja vidhi)
1.  प्रात:काल स्नान के बाद भगवान विष्णु की पूजा करें और उन्हें पुष्प, धूप आदि अर्पित करें.
2.  इस दिन व्रत रखने के बाद रात को भगवान विष्णु की आराधना करें, साथ ही रात्रि में जागरण और हवन करें.
3.  इसके बाद द्वादशी के दिन प्रात:काल उठकर स्नान के बाद भगवान विष्णु को भोग लगाएं और पंडितों को भोजन कराने के बाद स्वयं अन्न ग्रहण करें.

षटतिला एकादशी की पौराणिक कथा (Shattila Ekadashi vrat katha)
धार्मिक मान्यता के अनुसार एक समय नारद मुनि भगवान विष्णु के धाम बैकुण्ठ पहुंचे. वहां उन्होंने भगवान विष्णु से षटतिला एकादशी व्रत के महत्व के बारे में पूछा. नारद जी के आग्रह पर भगवान विष्णु ने बताया कि प्राचीन काल में पृथ्वी पर एक ब्राह्मण की पत्नी रहती थी. उसके पति की मृत्यु हो चुकी थी. वह मेरी अन्नय भक्त थी और श्रद्धा भाव से मेरी पूजा करती थी. एक बार उसने एक महीने तक व्रत रखकर मेरी उपासना की. व्रत के प्रभाव से उसका शरीर तो शुद्ध हो गया परंतु वह कभी ब्राह्मण एवं देवताओं के निमित्त अन्न दान नहीं करती थी, इसलिए मैंने सोचा कि यह स्त्री बैकुण्ठ में रहकर भी अतृप्त रहेगी अत: मैं स्वयं एक दिन उसके पास भिक्षा मांगने गया. जब मैंने उससे भिक्षा की याचना की तब उसने एक मिट्टी का पिण्ड उठाकर मेरे हाथों पर रख दिया. मैं वह पिण्ड लेकर अपने धाम लौट आया. कुछ समय बाद वह देह त्याग कर मेरे लोक में आ गई. यहां उसे एक कुटिया और आम का पेड़ मिला. खाली कुटिया को देखकर वह घबराकर मेरे पास आई और बोली कि, मैं तो धर्मपरायण हूं फिर मुझे खाली कुटिया क्यों मिली? तब मैंने उसे बताया कि यह अन्नदान नहीं करने तथा मुझे मिट्टी का पिण्ड देने से हुआ है. मैंने फिर उसे बताया कि जब देव कन्याएं आपसे मिलने आएं तब आप अपना द्वार तभी खोलना जब तक वे आपको षटतिला एकादशी के व्रत का विधान न बताएं. स्त्री ने ऐसा ही किया और जिन विधियों को देवकन्या ने कहा था उस विधि से षटतिला एकादशी का व्रत किया. व्रत के प्रभाव से उसकी कुटिया अन्न धन से भर गई. इसलिए हे नारद इस बात को सत्य मानों कि, जो व्यक्ति इस एकादशी का व्रत करता है और तिल एवं अन्नदान करता है उसे मुक्ति और वैभव की प्राप्ति होती है.

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