पश्चिम दिशा का स्वामी वरुण देव है. इस दिशा (West Direction) के ऋषि अगस्त्य हैं. इस दिशा पर शनि ग्रह का प्रभाव रहता है. यह सूर्यास्त की दिशा है, इसलिए पश्चिम की ओर मुंह करके बैठना या कोई कार्य करना मन में तनाव पैदा करता है. वास्तु के अनुसार पश्चिम दिशा की ओर मुंह करके भोजन किया जा सकता है.
वास्तु के मुताबिक सीढ़ियां, बगीचा आदि भी इस दिशा में बनाए जा सकते हैं, लेकिन पश्चिम की ओर सोना अनेक प्रकार की परेशानियों का कारण बनता है. इस दिशा के दूषित या पीड़ित होने का मतलब है कि इस दिशा में स्तंभ वेध, छाया वेध आदि हो सकता है. पश्चिम दिशा में दोष या जन्मपत्री में शनि के पीड़ित होने पर नौकरी में परेशानी होती है.
इस दिशा के किसी भी प्रकार से दूषित होने पर वायु विकार, लकवा, रीढ़ की हड्डी में तकलीफ, चेचक, कैंसर, कुष्ठ रोग, मिर्गी, नपुंसकता, पैरों में तकलीफ आदि होने की संभावना बनी रहती है. पश्चिम दिशा में दरवाजा होने और वास्तुदोष से घर का वास्तु भी बिगड़ा है तो घर की बरकत खत्म होती है. इससे व्यापार में लाभ तो होगा लेकिन ये अस्थायी होगा. हालांकि, जरूरी नहीं है कि पश्चिम दिशा का दरवाजा हर समय नुकसान वाला ही होगा.
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पश्चिम दिशा के भवन उन लोगों के लिए लाभदायक होते हैं जो शिक्षा, राजनीति, धार्मिक या कॉरपोरेट बिजनेस करना चाहते हैं. पश्चिममुखी भवनों में मुख्य दरवाजा उत्तर-पश्चिम दिशा में हो तो शुभ है. बरामदे का गेट भी उत्तर दिशा में बनाने की कोशिश करनी चाहिए.
पश्चिम दिशा से जुड़े दोष दूर करने के लिए करें ये उपाय
> यदि भवन की पश्चिम दिशा दोषपूर्ण है तो इसके निवारण के लिए पश्चिमी दीवार पर वरुण यंत्र स्थापित करें.
> परिवार का मुखिया लगातार 11 शनिवार व्रत रखें. गरीबों को काले चने वितरित करें.
> पश्चिम दिशा में अशोक का वृक्ष लगाएं.
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