फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को यशोदा जयंती मनाई जाती है. हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार, इस दिन भगवान श्रीकृष्ण की पालनहार मां यशोदा का जन्म हुआ था. नंदलाल को जन्म तो देवकी ने दिया था, लेकिन उनकी परवरिशन मां यशोदा ने की थी. ज्योतिषियों के अनुसार, इस दिन मां यशोदा और बाल-गोपाल की विधि-विधान से पूजा करने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है. इस बार यशोदा जयंती मंगलवार, 22 फरवरी को मनाई जा रही है.
यशोदा जयंती पर कैसे करें पूजा
ऐसा कहते हैं कि यशोदा जयंती पर उपवास करने से पापों का नाश होता है. भगवान कृष्ण के गांव गोकुल धाम में यशोदा जयंती पूरे उत्साह के साथ मनाई जाती है. इस दिन सुबह जल्दी उठकर ब्रह्म मुहूर्त में स्नान किया जाता है. इसके बाद भक्त मां यशोदा के व्रत का संकल्प लेते हैं. भगवान कृष्ण के साथ मां यशोदा की पूजा में अगरबत्ती, फूल, तुलसी के पत्ते, हल्दी, चंदन, कुमकुम और नारियल का इस्तेमाल किया जाता है.
इसके बाद यशोदा और कन्हैया को केले, पान और सुपारी का भोग लगाया जाता है. इस दिन मां यशोदा के साथ बाल कन्हैया की पूजा का विधान है. संतान प्राप्ति या संतान से जुड़ी समस्याओं से छुटकारा पाने के लिए इस दिन व्रत करना बड़ा फलदायी माना जाता है.
यशोदा जंयती की कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, ब्रज के गोपाल सुमुख और उनकी पत्नी के घर ब्रम्हा के आशीर्वाद से यशोदा का जन्म हुआ था. उनका विवाह ब्रज के राजा नन्द से हुआ. यशोदा ने संतान प्राप्ति के लिए भगवान विष्णु की तपस्या की थी. उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर विष्णु ने उनको वचन दिया था कि वे द्वापरयुग में उनके पुत्र बनकर आएंगे.
विष्णु ने कहा था कि मैं भविष्य में वासुदेव और देवकी मां के घर में जन्म लूंगा. लेकिन मेरी पालनहार आप ही बनेंगी. समय बीतता गया और ऐसा ही हुआ. देवकी और वासुदेव की आठवीं संतान के रूप में पुत्र का जन्म लिया और इसके बाद वासुदेव उन्हें नदं और यशोदा के यहां छोड़ आए ताकि उसे कंस के क्रोध से बचाया जा सके. इसके बाद श्रीकृष्ण का लालन-पालन मां यशोदा ने ही किया. मां यशोदा के विषय में श्रीमद्भागवत में कहा गया है- 'मुक्तिदाता भगवान से जो कृपा प्रसाद नन्दरानी यशोदा को मिला, वैसा न ब्रह्माजी को, न शंकर को, न उनकी अर्धांगिनी लक्ष्मीजी को कभी प्राप्त हुआ.