पीएम मोदी ने बुधवार को विज्ञान भवन में कहा कि विकास के लिए और बड़े फैसले लेंगे, चुनावी फायदे के लिए देश का भविष्य दांव पर नहीं लगा सकते. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जीएसटी और नोटबंदी के मुद्दे पर बोलते हुआ कहा कुछ लोग कर्ण के सारथी शल्य की तरह निराश करने का काम करते हैं. ऐसे लोगों को पहचानने की जरूरत है.
लेकिन क्या आप जानते हैं कि शल्य कौन था और प्रधानमंत्री ने विरोधियों की तुलना शल्य से ही क्यों की.
दरअसल, महाभारत के शल्य माद्री के भाई और नकुल और सहदेव के मामा थे.
वह मद्र राज्य के राजा थे. महारथी शल्य को एक बेहतरीन गदाधारी के रूप में
जाना जाता था.
दरअसल, महाभारत के शल्य माद्री के भाई और नकुल और सहदेव के मामा थे. वह मद्र राज्य के राजा थे. महारथी शल्य को एक बेहतरीन गदाधारी के रूप में जाना जाता था.
जब शल्य को पता चला कि महाभारत युद्ध होने वाला है तो वह पांडवों की तरफ से लड़ने के लिए चल पड़े पर रास्ते में ही दुर्योधन ने उन्हें छल से अपनी सेना में मिला लिया. दुर्योधन ने उन्हें बुला कर उनकी खूब खातिरदारी की. दुर्योधन ने घंटों तक उनका सेवा सत्कार किया, जिसके बाद उन्होंने दुर्योधन को कुछ मांगने को कह दिया.
शल्य को लग रहा था कि उनका यह सत्कार युधिष्ठिर कर रहे हैं, इसलिए उन्होंने उनसे मिलने की इच्छा जताई. तब जाकर शल्य को पता चल गया कि यह एक षड्यंत्र था. लेकिन तब तक उन्होंने दुर्योधन को उसकी इच्छा पूरी करने का वचन दे दिया था.
यह बात जान कर नकुल और सहदेव बेहद नाराज हो गए और उन्होंने कहा कि शल्य मामा ने यह साबित कर दिया कि हम पांडवों के सौतेले भाई हैं. इस पर युधिष्ठिर ने कहा कि वो दोबारा ऐसा नहीं बोलें कि वो सौतेले भाई हैं.
कर्ण के सेनापतित्व ग्रहण करने के उपरांत उसकी सलाह से दुर्योधन ने शल्य से कर्ण का सारथी बनने को कहा. शल्य को यह प्रस्ताव अपमानजनक लगा, इसलिए वो दुर्योधन की सभा से उठकर जाने लगे. दुर्योधन ने बहुत समझा-बुझाकर तथा उसे श्रीकृष्ण से भी श्रेयस्कर बताकर सारथी का कार्यभार उठाने के लिए तैयार कर लिया.
शल्य ने यथावत समाचार पांडवों को दिया तो युधिष्ठिर ने मामा शल्य से कहा 'कौरवों की ओर से कर्ण के युद्ध करने पर निश्चय ही आप सारथी होंगे. आप हमारा यही भला कर सकते हैं कि कर्ण का उत्साह भंग करते रहें.' शल्य ने यह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया. कर्ण का सारथी बनते समय शल्य ने यह शर्त दुर्योधन के सम्मुख रखी थी कि उसे स्वेच्छा से बोलने की छूट रहेगी, चाहे वह कर्ण को भला लगे या बुरा. दुर्योधन तथा कर्ण आदि ने शर्त स्वीकार कर ली.
कर्ण स्वभाव से दंभी था. वह जब भी आत्मप्रशंसा करता, शल्य उसका परिहास करने लगता तथा पांडवों की प्रशंसा कर उसे हतोत्साहित करता रहता. शल्य ने एक कथा भी सुनाई कि एक बार वैश्य परिवार की जूठन पर पलने वाला एक गर्वीला कौआ राजहंसों को अपने सम्मुख कुछ समझता ही नहीं था. एक बार एक हंस से उसने उड़ने की होड़ लगाई और बोला कि वह सौ प्रकार से उड़ना जानता है. होड़ में लंबी उड़ान लेते हुए वह थक कर महासागर में गिर गया. राजहंस ने प्राणों की भीख मांगते हुए कौए को सागर से बाहर निकाल अपनी पीठ पर लादकर उसके देश तक पहुंचा दिया. शल्य बोला 'इसी प्रकार कर्ण, तुम भी कौरवों की भीख पर पलकर घंमडी होते जा रहे हो.' कर्ण बहुत रुष्ट हुआ, पर युद्ध पूर्ववत चलता रहा.
कर्ण-वध के उपरांत कौरवों ने अश्वत्थामा के कहने से शल्य को सेनापति बनाया. श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को शल्य-वध के लिए उत्साहित करते हुए कहा कि इस समय यह बात भूल जानी चाहिए कि वह पांडवों का मामा है. कौरवों ने परस्पर विचार कर यह नियम बनाया कि कोई भी एक योद्धा अकेला पांडवों से युद्ध नहीं करेगा. शल्य का प्रत्येक पांडव से युद्ध हुआ. कभी वह पराजित हुआ, कभी पांडवगण.
अंत में युधिष्ठिर ने उस पर शक्ति से प्रहार किया. उसके वधोपरांत उसका भाई, जो कि शल्य के समान ही तेजस्वी था, युधिष्ठिर से युद्ध करने आया और उन्हीं के हाथों मारा गया. दुर्योधन ने अपने योद्धाओं को बहुत कोसा कि जब यह निश्चित हो गया था कि कोई भी अकेला योद्धा शत्रुओं से लड़ने नहीं जायेगा, शल्य पांडवों की ओर क्यों बढ़ा? इसी कारण दोनों भाई मारे गये.
महाभारत युद्ध से पहले शल्य ने युधिष्ठिर को विजयी होने का आशीर्वाद भी दिया. साथ ही यह वचन भी दिया कि कर्ण के सारथी के रूप में वह कर्ण को हतोत्साहित करेंगे, ताकि वह युद्ध में अपनी क्षमता का प्रदर्शन ना कर पाए.
पीएम मोदी ने इसी बात का जिक्र करते हुए अपने विरोधियों पर निशाना साधा.