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धर्म

ब्रज की होली: फूलों, लड्डू, लाठियों से खेली जाती है अनूठी होली

ब्रज की होली: फूलों, लड्डू, लाठियों से खेली जाती है अनूठी होली
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22 जनवरी यानी बसंत पंचमी से ही ब्रज में होली महोत्सव शुरू हो चुका है. ब्रज के मंदिरों और गांवों में होली का रंग बरसना शुरू हो गया है. होली की शुरूआत ब्रज के बाबा बृषभानु के गांव बरसाना से शुरू होती है जो श्रीराधा जी की जन्मस्थली है.
ब्रज की होली: फूलों, लड्डू, लाठियों से खेली जाती है अनूठी होली
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देश भर में होली का उत्सव बड़े ही उत्साह के साथ मनाया जाता है. हालांकि मथुरा में होली का त्योहार कई दिनों पहले ही शुरू हो जाता है. आइए जानते हैं कब, कहां और कैसे मनाई जाएगी होली....
ब्रज की होली: फूलों, लड्डू, लाठियों से खेली जाती है अनूठी होली
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23 फरवरी 2018, शुक्रवार
होली मस्ती से भरा त्योहार है और ब्रज भूमि में इसे मनाने की बात ही अलग है. होली के त्योहार में हर शहर अपना रंग भरता है. बरसाना के श्रीजी मंदिर में लड्डू होली मनाई जाती है. श्रीजी मंदिर राधा रानी का खूबसूरत और भव्य मंदिर है.
श्रीजी मंदिर में श्रद्धालु बड़ी संख्या में इकठ्ठा होते हैं और रंग, संगीत और नृत्य के साथ लड्डुओं की होली खेली जाती है. श्रीकृष्ण और राधा जी की मूर्ति पर फूल बरसाए जाते हैं. इस होली में केवल आनंद ही नहीं है बल्कि एक महान संदेश भी छिपा हुआ है. होली के इस जश्न में प्राकृतिक रंगों का ही इस्तेमाल किया जाता है. बरसाना के श्रीजी मंदिर की होली बहुत ही प्रसिद्ध है. अगर रंग और प्रेम के त्योहार का भरपूर मजा उठाना चाहते हैं तो पहुंच जाएं बरसाना.
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ब्रज की होली: फूलों, लड्डू, लाठियों से खेली जाती है अनूठी होली
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24 फरवरी 2018 शनिवार-
यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ और ड्रीमगर्ल हेमा मालिनी बरसाना में लठ्ठमार होली खेलने जाते हैं. ब्रजवासी अपने त्योहार को मनाने में कोई कसर नहीं छोड़ते हैं. लठ्ठमार होली केवल आनंद के लिए ही नहीं बल्कि यह नारी सशक्तीकरण का भी प्रतीक है. श्रीकृष्ण महिलाओं का सम्मान करते थे और मुसीबत के समय में हमेशा उनकी मदद करते थे. लठ्ठमार होली में श्रीकृष्ण के उसी संदेश को प्रदर्शित किया जाता है. थोड़े से चुलबुले अंदाज में महिलाएं लठ्ठमार होली में अपनी ताकत का प्रदर्शन करती हैं.
ऐसा कहा जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण अपने दोस्तों के साथ राधा से होली खेलने के लिए बरसाना आया करते थे. लेकिन राधा जी अपनी सहेलियों के साथ बांस की लाठियों से उन्हें दौड़ाती थीं. अब लठ्ठमार होली बरसाना की परंपरा बन चुकी है.


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नंदगांव लठ्ठमार होली 25 फरवरी 2018, रविवार:


होली की बात हो तो नंदगांव बरसाना से पीछे कैसे रह सकता है. अगले दिन नंदगांव की महिलाओं की बारी आती है. बरसाना के पुरुष नंदगांव की महिलाओं के साथ रंग खेलने पहुंचते हं लेकिन उनके साथ लिया जाता है मीठा सा बदला. महिलाएं उन्हें लाठियों से मारती हैं.
रंग, गुलाल, मिठाई और उल्लास में सराबोर हुई भीड़. महिलाएं मारती हैं लठ्ठ और गांव के सारे कन्हैया खुद को बचाते हुए उन्हें रंग लगाने की फिराक में रहते हैं. इस वक्त यहां की फिज़ाओं में उड़ता है रंग, गुलाल के साथ बचपना, आनंद.
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होली में बड़े दिलचस्प तरीके से श्रीकृष्ण-राधा की पूरी कहानी को जिया जाता है. नंदगांव के पुरुष बरसाना पहुंचते हैं और बरसाना की महिलाएं उन्हें लाठियों से मारती हैं. बरसाना की लठ्ठमार होली विश्व भर में प्रसिद्ध है. विदेशी भी बरसाना की होली खेलने बड़ी संख्या में पहुंचते हैं.




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वृंदावन की होली और बांके बिहारी मंदिर (रंगभरनी एकादशी)

26 फरवरी 2018, सोमवार:
रंगभरनी एकादशी खास दिन है. वृंदावन के बांके बिहारी मंदिर में काफी धूमधाम के साथ रंगभरनी एकादशी मनाई जाती है. दुनिया भर के भगवान श्रीकृष्ण के भक्त यहां इकठ्ठा होते हैं और रंगों से खेलते हैं. रंग और आनंद से सराबोर भक्तों को देखते ही बनता है.
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श्रीकृष्ण की जन्मभूमि मथुरा में होली (26 फरवरी 2018):
मथुरा स्थित श्रीकृष्ण जन्मभूमि मंदिर में होली का भव्य जश्न मनाया जाता है. मथुरा में ही भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था. दूर-दूर से श्रीकृष्ण भक्त आकर यहां होली खेलते हैं. इस मौके पर लठ्ठमार होली भी खेली जाती है. हर तरफ बस रंग औऱ रंग ही नजर आते हैं. यहां एक सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन भी किया जाता है. मथुरा के श्रीद्वारकाधीश मंदिर में एक भव्य आयोजन भी किया जाता है. तो मथुरा जाकर हो जाइए रंगों से सरोबार.
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होलिका दहन (1 मार्च 2018, गुरुवार):
होलिका दहन यानी बुराई को खत्म करने का प्रतीकात्मक त्योहार. होली में जितना महत्व रंगों का है उतना ही होलिका दहन का भी. पौराणिक कथाओं के मुताबिक, हिरण्यकश्यप नाम अपने पुत्र प्रहलाद पर अत्यधिक क्रोधित था. इसकी वजह प्रहलाद का विष्णु भक्त होना था. क्रोधित हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका से प्रहलाद को अग्नि में लेकर बैठर को कहा क्योंकि उसे अग्नि के प्रभाव से मुक्त होने का वरदान मिला था. लेकिन विष्णु भक्त प्रहलाद पर अग्नि का कोई प्रभाव नहीं पड़ा और होलिका खुद ही जल गई. मथुरा और ब्रजभूमि में होलिका दहन ज्यादा उत्साह के साथ मनाया जाता है.
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धुलंदी होली (बृज की पानी और रंगों की होली)

(2 मार्च 2018, गुरुवार)

तमाम जश्नों के बाद आ जाता है रंगों की होली का दिन. पूरे ब्रज के लोग होली खेलने के लिए इकठ्ठे हो जाते हैं. लाल, हरा, नीला, गुलाबी, बैंगनी हर तरह के रंग हवा में घुल जाते हैं और प्यार, आनंद, भाईचारा हर तरफ उमड़ पड़ता है. गलियों और सड़कों पर होली के गाने बजते रहते हैं. होली मनाने के लिए बृज से बेहतर दुनिया में कोई और जगह नहीं हो सकती है.
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