भारत के विचारक ओशो रजनीश ने 19 जनवरी 1990 को पुणे स्थित अपने आश्रम में देह त्याग दी थी. हर विषय पर अलग और खुलकर राय देने की वजह से वह काफी विवादों में भी रहे. उन्हें 'सेक्स गुरु' तक की संज्ञा भी दी गई लेकिन वक्त बीतने के साथ-साथ उनके 'संभोग से समाधि की ओर' के विचार को स्वीकार्यता मिलती गई. उन्होंने हर उस विषय पर खुलकर राय रखी जिसे ज्यादातर धर्मगुरु वर्जित मानते हैं. आज ओशो की पुण्यतिथि पर चलिए पढ़ते हैं उनके कुछ विचार...
ओशो कहते हैं, जो व्यक्ति जितना ज्यादा कामुक (सेक्सुअल) होगा, वह उतना ज्यादा इंटेलिजेंट होगा. वह शख्स उतना ही ज्यादा क्रिएटिव होगा. कम सेक्सुअल एनर्जी का मतलब कम बुद्धि, कम इंटेलिजेंस. शारीरिक संबंध एक गहरी खोज है जो छुपा हुआ है उसे खोजने की, केवल शरीर ही नहीं, केवल विपरीत लिंग के शरीर का नहीं बल्कि हर कुछ जो छिपा हुआ है. ओशो कहते हैं, जिस दिन इस देश में इसकी (सेक्सुअलिटी) सहज स्वीकृति हो जाएगी, उस दिन इतनी बड़ी ऊर्जा मुक्त होगी भारत में कि हम कई आइंस्टीन पैदा कर सकते हैं.
प्रेम खतरनाक है, संभोग नहीं-
जो लोग प्रेम से डरे होते हैं, वे संभोग से भयभीत नहीं होते हैं. प्रेम खतरनाक होता है, संभोग नहीं, क्योंकि इसे तो मैनिपुलेट किया जा सकता है. यह एख तकनीक में बदल सकता है औऱ आजकल बहुत से मैनुअल आ गए हैं कि शारीरिक संबंध कैसे बनाएं. लेकिन प्रेम कभी तकनीकी नहीं हो सकता. संभोग में भी एक हद तक ही आफ नियंत्रण रख सकते हैं एक समय के बाद अल्टीमेट तक पहुंचने के लिए आपको नियंत्रण छोड़ना ही पड़ता है. इसीलिए ऑर्गैजम दिन पर दिन कठिन होता जा रहा है. स्खलन का मतलब ऑर्गैजम नहीं है, बच्चे को जन्म देना ऑर्गैजम नहीं है. इस प्रक्रिया में तो मन, शरीर, आत्मा सब एक साथ गतिमान हो जाते हैं. आपका
सिर से लेकर पैर के अंगूठे तक आपका रोम-रोम रोमांचित हो उठता है. यह वह
अवस्था है जब आप खुद के नियंत्रण से बाहर चले जाते हैं. जब आपके अस्तित्व
ने आप पर अधिकार कर लिया होता है औऱ आपको खुद पता नहीं रहता कि आप कहां है.
यह एक पागलपन है, यह एक नींद की तरह है, यह एक ध्यान है, यह एक मृत्य है.
दमन ना करें-
यौन इच्छा को दबाने की जो भी चेष्टा है, वह पागलपन
है. ढेर साधु पागल होते पाए जाते हैं. उसका कोई कारण नहीं है सिवाय इसके कि
वे उसे दबाने में लगे हुए हैं और उनको पता नहीं है कि इसको दबाया नहीं
जाता. प्रेम के द्वार खोलें, तो जो शक्ति सेक्स के मार्ग से बहती थी, वह
प्रेम के प्रकाश में परिणत हो जाएगी. जो संभोग की लपटें मालूम होती थीं, वे
प्रेम का प्रकाश बन जाएंगी. प्रेम को विस्तीर्ण करें. प्रेम शारीरिक
संबंध का क्रिएटिव उपयोग है, उसका सृजनात्मक उपयोग है. जीवन को प्रेम से
भरें.
हम संभोग से डरे हुए हैं-
जब तक मानव कामवासना का दमन करना नहीं छोड़ेगा, तब तक वह ठीक से श्वास भी नहीं ले पाएगा. यदि तुम पूर्णता से श्वास नहीं ले रहे तो तुम पूर्णता से जी भी न सकोगे. हर कोई गलत ढंग से श्वास लेता है क्योंकि संपूर्ण समाज गलत संस्कारों, धारणाओं और दृष्टिकोणों पर आधारित है. उदाहरण के रूप में एक छोटा बच्चा रोता है तो मां उसे रोकती है. अब बच्चा क्या करे?- क्योंकि रोना आ रहा है और मां कह रही है कि वह न रोये. वह सांस रोकनी शुरू कर देगा क्योंकि यही एक रास्ता है रोकने का. यदि तुम सांस रोक लो तो सब कुछ रुक जाता है- रुदन, अश्रु, सब कुछ. फिर वह एक ढर्रा बन जाता है-क्रोध मत करो, रोओ मत, यह न करो, वह न करो. बच्चा सीख जाता है कि यदि वह उथला श्वास लेता है तो सब कुछ नियंत्रण में रहता है, लेकिन अगर वह गहरी, संपूर्ण सांस लेता है तो वह निरंकुश हो जाता है. इसलिये वह स्वय को पंगु बना लेता है.
हर बच्चा, लड़का हो या लड़की, अपने गुप्तांगों से खेलने लगता है क्योंकि उसे सुखद अनुभव होता है. उसे अहसास भी नहीं कि सामाजिक मूढ़ता के चलते यह वर्जित है, और यदि मां, पिता या कोई बच्चे को ऐसा करता देख ले तो उसे उसी क्षण रोक देगा. उनकी आंखों में ऐसी भर्त्सना का भाव दिखाई देता है कि बच्चे को गहरा आघात लगता है और वह गहरी सांस लेने से ही डरने लगता है. क्योंकि यदि तुम गहरा श्वास लेते हो तो यह भीतर से तुम्हारे गुप्तांगों को सहलाता है. वह तुम्हारे लिये समस्या पैदा करता है और तुम गहरी सांस ही नहीं लेते. तुम उथली सांस लेते हो ताकि गुप्तांगों से संपर्क ही न हो.
वह सब समाज जहां यौन इच्छा का दमन किया जाता है, उथले श्वास वाले समाज हैं.
केवल आदिवासी समाज, जहां सेक्स के दमन की कोई धारणा नहीं है, पूर्णता से
श्वास लेते हैं. उनकी सांस लेने की प्रक्रिया अत्यंत सौन्दर्य पूर्ण है,
संपूर्ण है, स्वास्थ्य दायक है. वह पशुओं की भांति सांस लेते हैं, बच्चों
की भांति सांस लेते हैं. अगर हम कामवासना रहित समाज बनाना चाहते हैं,
कामवासना का दमन करना चाहते हैं तो इसके लिए पहले श्वांस लेने के पूरे
मैकिनिजम को बदलना होगा.
ओशो कहते हैं, अगर सौ आदमी पागल होते हैं, तो उसमें से अट्ठानबे आदमी यौन इच्छा को दबाने की वजह से पागल होते हैं. अगर हजारों स्त्रियां हिस्टीरिया से परेशान हैं, तो उसमें सौ में से निन्यानबे स्त्रियों के हिस्टीरिया के, मिरगी के, बेहोशी के पीछे यौन इच्छा की मौजूदगी है, यौन इच्छा का दमन मौजूद है. अगर आदमी इतना बेचैन, अशांत, इतना दुखी और पीड़ित है, तो इस पीड़ित होने के पीछे उसने जीवन की एक बड़ी शक्ति को बिना समझे उसकी तरफ पीठ खड़ी कर ली है, उसका कारण है और परिणाम उलटे आते हैं.
चौबीस घंटे उबल रही है कामवासना-
हमारे भीतर मन में कामवासना बहुत अतिशय होकर बैठी है. वह चौबीस घंटे उबल रहा है. इसलिए सब बात भूल जाती है, लेकिन यह बात नहीं भूलती. हम सतत सचेष्ट हैं. यह पृथ्वी तब तक स्वस्थ नहीं हो सकेगी, जब तक आदमी और स्त्रियों के बीच यह दीवार और यह फासला खड़ा हुआ है. यह पृथ्वी तब तक कभी भी शांत नहीं हो सकेगी, जब तक भीतर उबलती हुई आग है और उसके ऊपर हम जबरदस्ती बैठे हुए हैं. उस आग को रोज दबाना पड़ता है. उस आग को प्रतिक्षण दबाए रखना पड़ता है. वह आग हमको भी जला डालती है, सारा जीवन राख कर देती है. लेकिन फिर भी हम विचार करने को राजी नहीं होते—यह आग क्या थी?
और मैं आपसे कहता हूं, अगर हम इस आग को समझ लें तो यह आग दुश्मन नहीं है,
दोस्त है. अगर हम इस आग को समझ लें तो यह हमें जलाएगी नहीं, हमारे घर को
गरम भी कर सकती है सर्दियों में, और हमारी रोटियां भी पका सकती है, और
हमारी जिंदगी के लिए सहयोगी और मित्र भी हो सकती है. लाखों साल तक आकाश में
बिजली चमकती थी. कभी किसी के ऊपर गिरती थी और जान ले लेती थी. कभी किसी ने
सोचा भी न था कि एक दिन घर में पंखा चलाएगी यह बिजली. कभी यह रोशनी करेगी
अंधेरे में, यह किसी ने सोचा नहीं था.
आज? आज वही बिजली हमारी साथी हो गई
है. क्यों? बिजली की तरफ हम आंख मूंद कर खड़े हो जाते तो हम कभी बिजली के
राज को न समझ पाते और न कभी उसका उपयोग कर पाते. वह हमारी दुश्मन ही बनी
रहती. लेकिन नहीं, आदमी ने बिजली के प्रति दोस्ताना भाव बरता. उसने बिजली
को समझने की कोशिश की, उसने प्रयास किए जानने के. और धीरे-धीरे बिजली उसकी
साथी हो गई. आज बिना बिजली के क्षण भर जमीन पर रहना मुश्किल मालूम होगा.
मनुष्य के भीतर बिजली से भी बड़ी ताकत है सेक्सुअल एनर्जी की. मनुष्य के
भीतर अणु की शक्ति से भी बड़ी शक्ति है यौन शक्ति की.
कभी आपने सोचा लेकिन, यह शक्ति क्या है और कैसे हम इसे रूपांतरित करें? एक
छोटे से अणु में इतनी शक्ति है कि हिरोशिमा का पूरा का पूरा एक लाख का नगर
भस्म हो सकता है. लेकिन क्या आपने कभी सोचा कि मनुष्य के काम की ऊर्जा का
एक अणु एक नये व्यक्ति को जन्म देता है? उस व्यक्ति में गांधी पैदा हो सकता
है, उस व्यक्ति में महावीर पैदा हो सकता है, उस व्यक्ति में बुद्ध पैदा हो
सकते हैं, क्राइस्ट पैदा हो सकता है. उससे आइंस्टीन पैदा हो सकता है और
न्यूटन पैदा हो सकता है. एक छोटा सा अणु एक मनुष्य की काम-ऊर्जा का, एक
गांधी को छिपाए हुए है. गांधी जैसा विराट व्यक्तित्व जन्म पा सकता है.
कामवासना से बचने का सूत्र: जब भी तुम्हारे मन में कामवासना उठे तो उसमें उतरो. धीरे- धीरे तुम्हारी राह साफ हो जाएगी. जब भी तुम्हें लगे कि कामवासना तुम्हें पकड़ रही है, तब डरो मत शांत होकर बैठ जाओ. जोर से श्वास को बाहर फेंको- उच्छवास. भीतर मत लो श्वास को क्योंकि जैसे ही तुम भीतर गहरी श्वास को लोगे, भीतर जाती श्वास काम-ऊर्जा को नीचे की तरफ धकाती है.
जब तुम्हें कामवासना पकड़े, तब बाहर फेंको श्वास को. नाभि को भीतर खींचो, पेट को भीतर लो और श्वास को फेंको. जितनी फेंक सको फेंको. धीरे-धीरे अभ्यास होने पर तुम संपूर्ण रूप से श्वास को बाहर फेंकने में सफल हो जाओगे.
प्रेम की सारी यात्रा का प्राथमिक बिंदु काम है. काम शक्ति ही प्रेम बनती है. पति अपनी पत्नी के पास ऐसे जाए जैसे कोई मंदिर के पास जाता है, पत्नी अपने पति के पास ऐसे जाए जैसे कोई परमात्मा के पास जाता है क्योंकि जब दो प्रेमी संभोग करते हैं, तो वास्तव में वे परमात्मा के मंदिर से ही गुजरते हैं. संभोग का इतना आकर्षण क्षणिक समाधि के लिए है. संभोग से आप उस दिन मुक्त होंगे, जिस दिन आपको समाधि बिना संभोग के हासिल होनी शुरू हो जाएगी.