वैशाख माह की पूर्णिमा का दिन बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण होता है. इसी दिन बौद्ध धर्म के संस्थापक गौतम बुद्ध का जन्म नेपाल के लुम्बिनी में ईसा पूर्व 563 को हुआ था. इसी दिन 528 ईसा पूर्व उन्होंने बोधगया में एक वृक्ष के नीचे जाना कि सत्य क्या है और इसी दिन वे 80 वर्ष की उम्र में दुनिया को कुशीनगर में अलविदा कह गए थे.
लुम्बिनी
गौतम बुद्ध का जन्म यहीं हुआ था. यहां के प्राचीन विहार नष्ट हो चुके हैं. केवल अशोक का एक स्तम्भ है, जिस पर खुदा है- 'भगवान् बुद्ध का जन्म यहां हुआ था.' इस स्तम्भ के अतिरिक्त एक समाधि स्तूप भी है, जिसमें बुद्ध की एक मूर्ति है. नेपाल सरकार द्वारा निर्मित दो स्तूप और हैं.
बोधगया
यहां बुद्ध ने 'बोध' प्राप्त किया था. भारत के बिहार में स्थित गया स्टेशन से यह स्थान 7 मील दूर है.
सारनाथ
बनारस छावनी स्टेशन से 5 मील, बनारस-सिटी स्टेशन से 3 मील और सड़क मार्ग से सारनाथ 4 मील पड़ता है. यह बौद्ध-तीर्थ है. भगवान बुद्ध ने अपना प्रथम उपदेश यहीं दिया था. यहीं से उन्होंने धर्मचक्र प्रवर्तन प्रारंभ किया था. सारनाथ में बौद्ध-धर्मशाला है.
कुशीनगर
गोरखपुर जिले में कसिया नामक स्थान ही प्राचीन कुशीनगर है. यहां खुदाई से निकली मूर्तियों के अतिरिक्त माथाकुंवर का कोटा 'परिनिर्वाण स्तूप' तथा 'विहार स्तूप' दर्शनीय हैं. 80 वर्ष की अवस्था में बुद्ध ने दो साल वृक्षों के मध्य यहां महापरिनिर्वाण प्राप्त किया था. यह प्रसिद्ध बौद्ध तीर्थ है.
श्रावस्ती का स्तूप
श्रावस्ती बौद्ध एवं जैन दोनों का तीर्थ है. यहां बुद्ध ने चमत्कार दिखाया था और दीर्घकाल तक श्रावस्ती में रहे थे. अब यहां बौद्ध धर्मशाला है और बौद्धमठ भी है. भगवान बुद्ध का मंदिर भी है.
सांची का स्तूप
भोपाल से 28 मील दूर और भेलसा से 6 मील पूर्व सांची स्टेशन है और उदयगिरि से सांची पास ही है. यहां बौद्ध स्तूप हैं, जिनमें एक की ऊंचाई 42 फुट है. सांची से 5 मील सोनारी के पास 8 बौद्ध स्तूप हैं और सांची से 7 मील पर भोजपुर के पास 37 बौद्ध स्तूप हैं.
पेशावर
पश्चिमी पाकिस्तान में प्रसिद्ध नगर है. यह स्तूप सम्राट कनिष्क ने बनवाया था. यहां सबसे बड़े और ऊंचे स्तूप के नीचे से बुद्ध भगवान की अस्थियां खुदाई में निकलीं.
बामियान
अफगानिस्तान में बामियान क्षेत्र बौद्ध धर्म प्रचार का प्रमुख केंद्र था. बौद्ध काल में हिंदू कुश पर्वत से लेकर कंदहार तक अनेक स्तूप थे.
कौशाम्बी
इलाहाबाद जिले में भरवारी स्टेशन से 16 मील पर स्थित इस स्तूप के नीचे बुद्ध भगवान के केश तथा नख सुरक्षित हैं.
चांपानेर (पावागढ़)
पश्चिम रेलवे की मुंबई-दिल्ली लाइन में बड़ौदा से 23 मील आगे चांपानेर रोड स्टेशन है. चांपानेर रोड से 12 मील पर पावागढ़ स्टेशन है. इस स्टेशन से पावागढ़ बस्ती लगभग एक मील दूर है. बड़ौदा या गोधरा से पावागढ़ तक मोटर-बस द्वारा भी आ सकते हैं. पावागढ़ में प्रसिद्ध बौद्ध स्तूप हैं.