मंगलवार से महाकुंभ मेले का काउंटडाउन शुरू हो गया. इलाहाबाद में हजारों नागा बाबा इसमें हिस्सा लेने के लिए पहुंच गए हैं. सनातन हिंदू धर्म में महाकुंभ मेले का बहुत महत्व है. वेदज्ञों अनुसार यही एकमात्र मेला, त्योहार और उत्सव है जिसे सभी हिंदुओं को मिलकर मनाना चाहिए.
महाकुंभ की 'पेशवई' में 5000 से ज्यादा नागा बाबाओं ने हिस्सा लिया. धार्मिक सम्मेलनों की यह परंपरा भारत में वैदिक युग से ही चली आ रही है जब ऋषि और मुनि किसी नदी के किनारे जमा होकर धार्मिक, दार्शनिक और आध्यात्मिक रहस्यों पर विचार-विमर्श किया करते थे. यह परंपरा आज भी कायम है.
इस मौके पर सुरक्षा के भी कड़े इंतजाम किए गए हैं.
धार्मिक विश्वास के अनुसार कुंभ में श्रद्धापूर्वक स्नान करने वाले लोगों के सभी पाप कट जाते हैं और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है.
हिंदू धर्मग्रंथ के अनुसार इंद्र के बेटे जयंत के घड़े से अमृत की बूँदे भारत में चार जगहों पर गिरी, हरिद्वार में गंगा नदी में, उज्जैन में शिप्रा नदी में, नासिक में गोदावरी और इलाहाबाद में गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम स्थल पर.
कुंभ का अर्थ होता है घड़ा या कलश. माना जाता है कि संमुद्र मंथन से जो अमृत कलश निकला था उस कलश से देवता और राक्षसों के युद्ध के दौरान धरती पर अमृत छलक गया था. जहाँ-जहाँ अमृत की बूँद गिरी वहाँ प्रत्येक बारह वर्षों में एक बार कुंभ का आयोजन किया जाता है. बारह वर्ष में आयोजित इस कुंभ को महाकुंभ कहा जाता है.
अर्द्धकुंभ मेला प्रत्येक छह साल में हरिद्वार और प्रयाग में लगता है जबकि पूर्णकुंभ हर बारह साल बाद केवल प्रयाग में ही लगता है. बारह पूर्ण कुंभ मेलों के बाद महाकुंभ मेला भी हर 144 साल बाद केवल इलाहाबाद में ही लगता है.
कुंभ लोगों को जोड़ने का एक माध्यम है जो प्रत्येक बारह वर्ष में आयोजित होता है. कुंभ का आयोजन प्रत्येक बारह साल में चार बार किया जाता है अर्थात हर तीन साल में एक बार चार अलग-अलग स्थानों पर लगता है.
कुंभ को विश्व का सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन या मेला माना जाता है. इतनी बड़ी संख्या में सिर्फ हज के दौरान ही मक्का में मानव समुदाय इकट्ठा होता है.
कुंभ मेले के आयोजन के पीछे बहुत बड़ा विज्ञान है. जब-जब इस मेले के आयोजन की शुरुआत होती है सूर्य पर हो रहे विस्फोट बढ़ जाते हैं और इसका असर धरती पर भयानक रूप में होता है. देखा गया है प्रत्येक ग्यारह से बारह वर्ष के बीच सूर्य पर परिवर्तन होते हैं.