भारतीय समाज में सेक्स पर बात करना भी अपराध समझा जाता है. ये एक ऐसा विषय है जो आज भी टैबू ही है. हालांकि, ओशो ने शारीरिक संबंध और काम वासना को लेकर खुलकर अपने विचारों को दुनिया के सामने रखा. कई लोग इसी वजह से ओशो को 'सेक्स गुरु' की संज्ञा भी देते हैं. उनका 'संभोग से समाधि की ओर' विचार काफी प्रसिद्ध हुआ था. आइए जानते हैं कि ओशो भारतीयों की यौन कुंठा को लेकर क्या कहते थे?
ओशो कहते हैं कि जिस चीज को जितना वर्जित किया जाता है, लोगों की दिलचस्पी उस चीज में उतनी ही बढ़ती जाती है. इसीलिए ओशो युवकों से कहते हैं, तुम जिस दुनिया को बनाने में लगे हो, उसमें यौन संबंधों को वर्जित मत करना नहीं तो आदमी और भी कामुक से कामुक होता चला जाएगा. मेरी यह बात देखने में बड़ी उलटी लगेगी. लोग चिल्ला- चिल्ला कर घोषणा करते हैं कि मैं लोगों में काम का प्रचार कर रहा हूं लेकिन सच्चाई उलटी है. मैं लोगों को काम से मुक्त करना चाहता हूं और प्रचार वे कर रहे हैं. उनका प्रचार दिखाई नहीं पड़ता क्योंकि हजार साल की परंपरा से उनकी बातें सुन-सुन कर हम अंधे और बहरे हो गए हैं. इसलिए आज जितना कामुक आदमी भारत में है उतना कामुक आदमी पृथ्वी के किसी कोने में नहीं है.
एक शिष्य के सवाल का जवाब देते हुए ओशो ने कहा, 'अभी मैं एक गांव में था और कुछ बड़े विचारक और संत-साधु मिलकर अश्लील पोस्टर विरोधी एक सम्मेलन कर रहे थे. उनका ख्याल था कि अश्लील पोस्टर दीवार पर लगता है इसलिए लोग कामवासना से परेशान रहते हैं. जबकि लोग कामवासना से परेशान हैं, इसलिए उन्हें पोस्टर में मजा मिलता है. यह पोस्टर कौन देखेगा? पोस्टर को देखने कौन जा रहा है?' ओशो नेआगे कहा, 'पोस्टर को देखने वही जा रहा है, जो स्त्री-पुरुष के शरीर को देख ही नहीं सका. जो शरीर के सौंदर्य को नहीं देख सका, जो शरीर की सहजता को अनुभव नहीं कर सका, वो पोस्टर देख रहा है. इसी का परणाम है कि कोई गंदी किताबें पढ़ रहा है, कोई गंदी तस्वीर देख रहा है, कोई फिल्म बना रहा है. क्योंकि आखिर यह फिल्म कोई आसमान से नहीं टपकती, लोगों की जरूरत है.' इसलिए सवाल यह नहीं है कि गंदी फिल्म क्यों है, सवाल ये है कि लोगों में जरूरत क्यों है?
उन्होंने एक किस्सा बताते हुए कहा, 'मेरे एक डॉक्टर मित्र इंग्लैण्ड के एक मेडिकल कॉन्फ्रेंस में भाग लेने गए थे. वाइट पार्क में उनकी सभा होती थी. उस सभा में कोई 500 डॉक्टर्स थे. बातचीत और खाना-पीना चल रहा था लेकिन पास की बेंच पर एक युवक और युवती गले में हाथ डाले अत्यंत प्रेम में लीन आंखे बंद किए बैठे थे. उन मित्र के प्राणों में बेचैनी होने लगी. भारतीय प्राण में चारों तरफ झांकने का मन होता है. अब खाने में उनका मन न रहा. अब चर्चा में उनका रस न रहा. वे बार-बार लौटकर उस बेंच की ओर देखने लगे. पुलिस क्या कर रही है. वह बंद क्यों नहीं करती ये सब. ये कैसा अश्लील देश है. यह लड़के और लड़की आंख बंद किए हुए चुपचाप 500 लोगों की भीड़ के पास ही बेंच पर बैठे हुए प्रेम प्रकट कर रहे है. कैसे लोग हैं? यह क्या हो रहा है? यह बर्दाश्त के बाहर है. वो बार-बार वहां देखते.
पड़ोस के एक ऑस्ट्रेलियन डॉक्टर ने उनको हाथ का इशारा किया और कहा, बार-बार मत देखिए, नहीं तो पुलिसवाला आपको यहां से उठा कर ले जाएगा. ये अनैतिकता का सबूत है. यह दो व्यक्तियों की निजी जिंदगी की बात है और वे दोनों व्यक्ति इसलिए 500 लोगों की भीड़ के पास भी शांति से बैठे हैं, क्योंकि वे जानते हैं कि यहां सज्जन लोग इकट्ठे हैं. कोई घूरेगा नहीं. आपका यह देखना अच्छे आदमी का सबूत नहीं है. आप उन 500 लोगों को देख रहे हैं? कोई भी फिक्र नहीं कर रहा. यह उनकी अपनी बात है और दो व्यक्ति इस उम्र में प्रेम करें तो पाप क्या है? प्रेम में वह आंखें बंद करके पास-पास बैठे हों तो हर्ज क्या है? आप परेशान हो रहे हैं. न तो कोई आपके गले में हाथ डाले हुए है, न कोई आपसे प्रेम कर रहा है.
ओशो ने बताया कि वह मित्र मुझसे लौटकर कहने लगे कि मैं इतना घबरा गया कि कैसे लोग हैं लेकिन धीरे-धीरे उनकी समझ में यह बात आ गई कि दरअसल गलत वे ही थे. ओशो कहते हैं कि हमारा पूरा मुल्क ही एक दूसरे घर में दरवाजे के होल बना कर झांकता रहता है कि कहां क्या हो रहा है? कौन क्या कर रहा है? कौन जा रहा है? कौन किसके साथ है? कौन किसके गले में हाथ डाले है? क्या बदतमीजी है, कैसी संस्कारहीनता है. यह सब क्या है? यह क्यों हो रहा है? यह हो रहा है इसलिए कि भीतर वह जिसको दबाता है, वह सब तरफ से दिखाई पड़ रहा है.
ओशो युवकों से कहते थे कि तुम्हारे मां बाप, तुम्हारे पुरखें, तुम्हारी हजारों साल की पीढ़ियां यौन संबंध से भयभीत रही हैं. तुम भयभीत मत रहना. तुम समझने की कोशिश करना उसे. तुम पहचानने की कोशिश करना. तुम बात करना. तुम इसके संबंध में आधुनिक जो नई खोज हुई है उनको पढ़ना, चर्चा करना और समझने की कोशिश करना कि सेक्स क्या है? क्या है इसका मैकेनिज्म? उसका यंत्र क्या है? क्या है उसकी आकांक्षा? क्या है उसकी प्यास? क्या है प्राणों के भीतर छिपा हुआ राज इसकी सारी वैज्ञानिकता को पहचानना. उससे भागना नहीं. आंखें बंद मत करना. तुम जितना समझोगे, उतने ही मानसिक तौर पर स्वस्थ हो जाओगे.
जैसे ही यह स्वीकृत हो जाता है, वैसे ही जो शक्ति हमारी लड़ने में नष्ट होती है, वह शक्ति मुक्त हो जाती है और उस दिन शक्ति को फिर हम रूपांतरित करते हैं- पढ़ने में, खोज में, आविष्कार में, कला में, संगीत में,साहित्य में. अगर वह शक्ति सेक्स में ही उलझी रह जाये तो यह ठीक वैसा ही होगा जैसे कि कोई आदमी कपड़े में उलझ जाए. ओशो के अनुसार, भारतीय युवकों के दिमाग में हर वक्त सेक्स घूमता रहता है और इसके कारण उनकी सारी शक्ति नष्ट हो जाती है. जब तक युवकों को इस रोग से मुक्ति नहीं मिलती, तब तक प्रतिभा का जन्म नहीं हो सकता. प्रतिभा का जन्म तो उसी दिन होगा, जिस दिन इस देश में सेक्स की सहज स्वीकृति हो जाएगी. हम उसे जीवन के एक तथ्य की तरह अंगीकार कर लेंगे. निंदा से नहीं बल्कि प्रेम और आनंद से.
ओशो के मुताबिक, तथ्य को समझते ही आदमी कहानियों से मुक्त हो जाता है और जो तथ्य से बचता है, वह कहानियों में भटक जाता है. जो आदमी यौन संबंध की बातों पर इशारा करके हंसता है, वह आदमी बहुत ही क्षुद्र है. कामुकता की तरफ इशारा करके हंसने का क्या मतलब है? उसका एक ही मतलब है कि आप समझते ही नहीं. बच्चे तो बहुत तकलीफ में है कि उन्हें कौन समझाए? वो किससे बातें करें, कौन सारे तथ्यों को सामने रखे?
ओशो कहते हैं उनके प्राणों में जिज्ञासा है, खोज है, लेकिन उसको दबाए चले जाते हैं. रोके चले जाते हैं. उसके दुष्परिणाम होते हैं. जितना रोकते हैं, उतना मन वहां दौड़ने लगता है और उस रोकने और दौड़ने में सारी शक्ति और ऊर्जा नष्ट हो जाती है. यह मैं आपसे कहना चाहता हूं कि जिस देश में भी इसकी स्वस्थ रूप से स्वीकृति नहीं होती, उस देश की प्रतिभा का जन्म नहीं होता. पश्चिम में तीस वर्षों में जो प्रतिभा पैदा हुई है, वह यौन संबंध के तथ्य की स्वीकृति से पैदा हुई है.