Bhalachandra Sankashti Chaturthi 2025: हिंदू पंचांग के अनुसार, चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को भालचन्द्र संकष्टी चतुर्थी का त्योहार मनाया जाता है. इस दिन विधि विधान से भगवान गणेश की पूजा करना शुभ माना जाता है. गणपति पूजा से जीवन में चल रही तमाम बाधाएं नष्ट हो जाती हैं. माना जाता है कि इस दिन कथा सुनने से भगवान गणेश काफी प्रसन्न होते हैं.
भालचंद्र संकष्टी चतुर्थी कथा (Bhalachandra Sankashti Chaturthi katha)
हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार, एक बार भगवान शिव और माता पार्वती नदी किनारे बैठे थे. तभी अचानक माता पार्वती को चौपड़ खेलने की इच्छा हुई, लेकिन वहां उन दोनों के अलावा तीसरा कोई नहीं था जो इस खेल में निर्णायक भूमिका निभा सकता. शिवजी और पार्वती ने मिलकर एक मिट्टी की मूर्ति बनाई और उसमें जान डाली और उसे खेल में सही फैसला लेने का आदेश दिया. खेल में माता पार्वती बार-बार भगवान शिव को मात दे रही थीं.
चलते खेल में एक बार गलती से बालक ने माता पार्वती को हारा हुआ घोषित कर दिया. माता लपार्वती ने गुस्से में आकर बालक को श्राप दे दिया और वह लंगड़ा हो गया. बालक ने अपनी भूल के लिए माता से बार-बार क्षमा मांग रहा था. बालक के निवेदन को देखते हुए माता ने कहा कि अब श्राप वापस नहीं हो सकती, लेकिन एक उपाय से श्राप से मुक्ति पाई जा सकती है. माता ने कहा कि संकष्टी वाले दिन पूजा करने इस जगह पर कुछ कन्याएं आती हैं, तुम उनसे व्रत की विधि पूछना और सच्चे मन से व्रत का करना. बालक ने व्रत की विधि जानकर श्रद्धापूर्वक संकष्टी का व्रत किया. उसकी सच्ची आराधना से भगवान गणेश प्रसन्न हुए और उसे वरदान मांगने को कहा. बालक ने माता पार्वती और भगवान शिव के पास जाने की इच्छा बताई.
भगवान गणेश ने उस बालक को शिवलोक पंहुचा दिया, लेकिन जब वह पहुंचा तो वहां उसे केवल भगवान शिव ही मिले. माता पार्वती भगवान शिव से नाराज होकर कैलाश छोड़कर चली गई थीं. जब शिवजी ने बच्चे से पूछा की तुम यहां कैसे आए तो उसने बताया कि गणेश की पूजा से उसे यह वरदान प्राप्त हुआ है. यह जानने के बाद भगवान शिव ने भी पार्वती को मनाने के लिए संकष्टी का व्रत को किया और इसके बाद माता पार्वती भगवान शिव से प्रसन्न होकर कैलाश वापस लौट आती हैं.
भालचंद्र संकष्टी चतुर्थी पूजन विधि
संकष्टी चतुर्थी पर आप सुबह सूर्योदय से पहले उठ जाएं. स्नान करके साफ हल्के लाल या पीले रंग के कपड़े पहनें. भगवान गणपति के चित्र को लाल रंग का कपड़ा बिछाकर रखें. भगवान गणेश की पूजा करते समय पूर्व या उत्तर दिशा की तरफ मुंह करें. भगवान गणपति के सामने दीया जलाएं और लाल गुलाब के फूलों से भगवान गणपति को सजाएं. पूजा में तिल के लड्डू गुड़ रोली, मोली, चावल, फूल तांबे के लौटे में जल, धूप, प्रसाद के तौर पर केला और मोदक रखें.