Dussehra 2024: धार्मिक मान्यताओं अनुसार, आश्विन शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को भगवान राम ने राक्षस रावण का वध किया था. इसलिए हर साल इस तिथि पर दशहरा पर्व मनाया जाता है. इस दिन जगह-जगह पर रावण दहन करने की परंपरा निभाई जाती है. तो वहीं दशहरा पर्व से जुड़ी एक और कथा है जिसके अनुसार, इस दिन देवी दुर्गा ने महिषासुर नामक दानव का वध किया था. इसलिए इस पर्व को विजयादशमी के नाम से भी जाना जाता है.
सभी धार्मिक ग्रंथों में से रामायण और महाभारत दो सबसे महत्वपूर्ण और दिलचस्प ग्रंथ हैं जो कई विद्वानों के लिए हमेशा से अध्ययन का विषय रहे हैं. रामायण ग्रंथ के बारे में तो हर कोई जानता है, साथ ही उस ग्रंथ के सभी किरदारों के बारे में भी हर कोई जानता है. रामायण की ऐसी कई कहानियां प्रचलित हैं, जो एक आम व्यक्ति को कुछ शिक्षा देकर जाती हैं. ऐसा ही रामायण का एक किस्सा है कि आखिरी क्यों भगवान राम ने अपने ही भाई लक्ष्मण को मृत्युदंड दिया था. आइए जानते हैं इसके पीछे की महत्वपूर्ण कहानी.
माता सीता के धरती में समा जाने के बाद भगवान राम को इस बात का एहसास हुआ कि पृथ्वी पर उनके सभी कर्तव्य समाप्त हो गए हैं और उन्हें भगवान विष्णु के निवास स्थान वैकुंठ वापस जाने की जरूरत है. लेकिन, भगवान राम को इस बारे में भी पता था कि जब तक हनुमान जी का ध्यान नहीं भटकेगा तब तक वह यम देवता से नहीं मिल पाएंगे. इसलिए, हनुमान जी का ध्यान भटकाने के लिए भगवान राम ने अपनी अंगूठी पाताल लोक में फेंक दी. फिर, भगवान राम ने हनुमान जी को आदेश दिया कि, " जाओ ओर पाताल लोक से मेरी अंगूठी ले आओ ".
हनुमान जी को पाताल लोक भेजने के बाद श्रीराम ने यम को आमंत्रित किया. लेकिन, यम ने एक शर्त रखी कि यदि कोई उनकी बातचीत में बाधा डालता है, तो उस व्यक्ति को श्री राम मृत्युदंड देंगे. इस पर सहमति जताते हुए, राम ने लक्ष्मण को द्वार पर पहरा देने का आदेश दिया ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि कोई अंदर न आए और यम के साथ उनकी बातचीत में कोई हस्तक्षेप न करें.
उसी समय, ऋषि दुर्वासा श्री राम से मिलने उनके महल पहुंचे लेकिन लक्ष्मण ने उन्हें बाहर ही रोक दिया. क्रोधित होकर, ऋषि दुर्वासा ने उन्हें चेतावनी दी कि अगर उन्हें राम से मिलने की अनुमति नहीं दी गई तो वह अयोध्या को श्राप दे देंगे. दुर्वासा की बातें सुनकर, लक्ष्मण भगवान राम की बातचीत में बाधा डालने, मृत्यु का सामना करने या अयोध्या को पीड़ित होने देने की दुविधा में पड़ गए. इसलिए, उन्होंने अपने जीवन का त्याग करने का फैसला किया. इसके बाद लक्ष्मण ने भगवान राम के कक्ष में प्रवेश किया. उन्होंने भगवान राम को ऋषि दुर्वासा के आगमन की सूचना दी. भगवान राम इस बात से दुखी थे कि लक्ष्मण को मृत्युदंड भुगतना पड़ेगा.
अयोध्या को बचाने के लिए लक्ष्मण ने त्यागे अपने प्राण
इसके बाद श्री राम दुविधा में पड़ गए क्योंकि अपने वचन के अनुसार उन्हें लक्ष्मण को मृत्युदंड देना था. तब इस दुविधा से निकलने के लिए श्री राम ने अपने गुरु वशिष्ठ का स्मरण किया. गुरुदेव ने उन्हें समझाया कि अपनी किसी प्रिय वस्तु का त्याग, उसकी मृत्यु के बराबर ही है इसीलिए तुम अपने वचन का पालन करने के लिए लक्ष्मण का त्याग कर दो. इस प्रकार तुम्हारा वचन भी पूरा होगा और लक्षण मृत्युदंड से भी मुक्त हो जाएंगे. यह सुनकर लक्ष्मण ने बड़े भाई श्री राम से कहा कि भैय्या, आप भूल कर भी मेरा त्याग न करना, आप से दूर रहने से तो अच्छा होगा कि मैं आपके दिए हुए वचन का पालन करते हुए मृत्यु को गले लगा लूं और ऐसा कहकर लक्ष्मण ने सरयू नदी में जल समाधि ले ली.