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आखिर भगवान गणेश को क्यों नहीं चढ़ाई जाती है तुलसी? जानें इसके पीछे की कथा

Ganesh Chaturthi 2024: पूरे देश में गणेश चतुर्थी का त्योहार बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता हैे. इस दिन घर में गणपति की स्थापना की जाती है और अगले 10 दिनों तक पूरी श्रद्धा से उनकी पूजा की जाती है. पुराणों में भगवान गणेश से जुड़ी कई कहानियां हैं इनमें से एक है गणपति और तुलसी की कहानी. तो चलिए जानते हैं कि आखिर क्यों गणेश जी को तुलसी नहीं चढ़ाई जाती है.

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आखिर भगवान गणेश को क्यों नहीं चढ़ाई जाती है तुलसी
आखिर भगवान गणेश को क्यों नहीं चढ़ाई जाती है तुलसी

Ganesh Chaturthi 2024: हिंदुओं के सबसे प्रमुख त्योहारों में गणेश चतुर्थी सबसे खास माना जाता है. मुख्य रूप से यह पर्व महाराष्ट्र में मनाया जाता है. गणेश चतुर्थी के दिन भगवान गणेश की उपासना की जाती है. हिंदू पंचांग के अनुसार, भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को गणेश चतुर्थी मनाई जाती है. गणेश जी की पूजा में कभी भी तुलसी नहीं चढ़ाई जाती है.

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धर्मग्रंथों के अनुसार, भगवान गणेश को श्रीकृष्ण का अवतार बताया गया है और श्रीकृष्ण स्वयं भगवान विष्णु के अवतार हैं. लेकिन, जो तुलसी भगवान विष्णु की अत्यंत प्रिय है, इतनी प्रिय की भगवान विष्णु के ही एक रूप शालिग्राम का विवाह तक तुलसी से हुआ था. वहीं, तुलसी गणेश जी को बिल्कुल प्रिय नहीं है, इतनी अप्रिय की भगवान गणेश के पूजन में इसका प्रयोग वर्जित है. पर ऐसा क्यों है चलिए जानते हैं इसके पीछे की कथा. 

एक बार श्री गणेश गंगा किनारे तप कर रहे थे. इसी कालावधि में तुलसी ने विवाह की इच्छा लेकर तीर्थ यात्रा पर प्रस्थान किया. देवी तुलसी सभी तीर्थ स्थलों का भ्रमण करते हुए गंगा के तट पर पहुंचीं. गंगा तट पर देवी तुलसी ने गणेश जी को देखा जो तपस्या में विलीन थे. शास्त्रों के अनुसार, तपस्या में विलीन गणेश जी रत्न जड़ित सिंहासन पर विराजमान थे. उनके समस्त अंगों पर चंदन लगा हुआ था. उनके गले में पारिजात पुष्पों के साथ स्वर्ण-मणि रत्नों के अनेक हार पड़े थे. उनके कमर में अत्यंत कोमल रेशम का पीतांबर लिपटा हुआ था. तुलसी श्री गणेश को देखकर इस रूप पर मोहित हो गई और उनके मन में गणेश से विवाह करने की इच्छा जाग्रत हुई.

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तुलसी ने विवाह की इच्छा से गणेश जी का ध्यान भंग किया. तब श्री गणेश ने तुलसी द्वारा तप भंग करने को अशुभ बताया और तुलसी की मंशा जानकर स्वयं को ब्रह्मचारी बताकर उसके विवाह प्रस्ताव को नकार दिया. श्री गणेश द्वारा अपने विवाह प्रस्ताव को अस्वीकार कर देने से देवी तुलसी बहुत दुखी हुई और आवेश में आकर उन्होंने श्री गणेश के दो विवाह होने का श्राप दे दिया. इस पर श्री गणेश ने भी तुलसी को श्राप दे दिया कि तुम्हारा विवाह एक असुर से होगा.

एक राक्षस की पत्नी होने का श्राप सुनकर तुलसी ने श्री गणेश से माफी मांगी. तब श्री गणेश ने तुलसी से कहा कि तुम्हारा विवाह शंखचूड़ राक्षस से होगा. किंतु फिर तुम भगवान विष्णु और श्रीकृष्ण को प्रिय होने के साथ ही कलियुग में जगत के लिए जीवन और मोक्ष देने वाली होगी. पर मेरी पूजा में तुलसी चढ़ाना शुभ नहीं माना जाएगा. तब से ही भगवान श्री गणेश जी की पूजा में तुलसी वर्जित मानी जाती है. 

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