एक गुरु और शिष्य का रिश्ता आखिरकार कैसा होना चाहिए, इस बारे में कोई स्पष्ट नियम नहीं हैं लेकिन इस सवाल का जवाब प्रख्यात आध्यात्मिक गुरु जग्गी वासुदेव, उर्फ, सद्गुरु ने देने की कोशिश की है.
सद्गुरु के मुताबिक गुरु एक GPS के जैसे होते है. हम जिसके इशारे पर अपनी दिशा और दशा बदलते हैं. उन्होंने इसे ‘गुरु पोजिशनिंग सिस्टम’ (GPS) का भी नाम दिया. उनके मुताबिक गुरु सिर्फ एक इंसान नहीं बल्कि एक भाव होता है. यह महज़ किस्मत की बात है कि वह इंसान के रूप में हमारे सामने हैं. अगर वह किसी जानवर या वस्तु के रूप में हमारे पास होता तो हम उनसे ज्ञान ले ही नहीं पाते. इसलिए उनका इंसान होना हमारे लिए काफी खुशी की बात है.
लेकिन उन्होंने ये भी कहा कि हमें उस इंसान भर में खो नहीं जाना है. बल्कि उनके आध्यात्मिक रूप को अपनाना है. गुरु कोई वस्तु नहीं है जिसे हम घर ले जाएं. अगर हमने गुरु की बताई बातों को अपना लिया तो गुरु तो अपने आप ही हमारे साथ आ जाएंगे, और उन्हें कोई हटा भी नहीं सकता. उसके बाद हम जब भी चाहें वह गुरु अपने ज्ञान के रूप में हमारे पास होंगे.
गुरु अपने ज्ञान के रूप में हमेशा लोगों की जिंदगी संवारने और जीवन से अंधकार मिटाने के लिए तैयार होता है. लेकिन ये तभी हो सकता है जब हम भी अपनी जिम्मेदारी निभाएं. हमें अपने आप को इतना खुला हुआ रखना है कि कोई भी ज्ञान हम तक आए तो हम उसे ले सकें. जब हम अपने आप को इतना खोल लेते हैं तो गुरु सिर्फ हमारे पास ही नहीं बल्कि हमारे अंदर आ जाते हैं.
सद्गुरु आखिर में यह भी कहते हैं कि उनका किसी का गुरु होने का ये मतलब नहीं है कि वह बतौर इंसान किसी के गुरु बनें. वह बस एक संभावना भर हैं जो किसी के भी जीवन को बदल सकते हैं. लेकिन बतौर शिष्य किसी व्यक्ति को बस इतना करना है कि वह खुद गुरु के ज्ञान में ढलने के लिए तैयार रहे. यही रिश्ता है एक गुरु और शिष्य का.