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आखिर क्यों हुआ था भगवान विष्णु और भगवान शिव का युद्ध? जानें इसके पीछे की कथा

हिरण्यकश्यप का वध करने के बाद नृसिंह अवतार को शांत करना बहुत ही मुश्किल हो रहा था. जिसको शांत करने के लिए भगवान शिव ने भी अवतार लिया था. आइए जानते हैं कि आखिर भगवान शिव ने अपने किस अवतार से विष्णु जी के नृसिंह अवतार को शांत किया था.

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भगवान विष्णु और भगवान शिव का युद्ध
भगवान विष्णु और भगवान शिव का युद्ध

होली का त्योहार आने वाला है. हिंदू धर्म में होली के त्योहार का बहुत ही खास महत्व है. होली से एक दिन पहले होलिका दहन किया जाता है और होलिका दहन बुराई पर अच्छाई के रूप में मनाया जाता है. दरअसल, पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, होलिका दहन भगवान विष्णु के भक्त प्रह्लाद और उनके पिता हिरण्यकश्यप के बीच संघर्ष पर आधारित है और आखिरी में हिरण्यकश्यप का संहार करने के लिए भगवान विष्णु ने नृसिंह अवतार लिया था. लेकिन, हिरण्यकश्यप का वध करने के बाद नृसिंह अवतार को शांत करना बहुत ही मुश्किल हो रहा था. ऐसे में नृसिंह को शांत करने के लिए भगवान शिव ने भी अवतार लिया था. आइए सत्यार्थ नायक की 'महागाथा' किताब के जरिए जानते हैं कि आखिर भगवान शिव ने विष्णु जी के नृसिंह अवतार को कैसे शांत किया था?

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हिरण्यकश्यप के अंत से सभी अत्यंत प्रसन्न थे. देवता हर्षित थे. मनुष्य आनंद से झूम रहे थे. पंचतत्व उत्सव मना रहे थे. तभी कुछ ऐसा हुआ कि सभी सन्न रह गए और उस गर्जना को सुनने लगे जिसने पूरे ब्रह्मांड को अंदर तक हिला दिया था. एक क्षण पहले, उस ध्वनि ने सब लोगों को हर्षोल्लास से भर दिया था. किंतु अब वही आवाज उन्हें भयभीत कर रही थी.

विष्णु जी ने एक संकट का तो अंत कर दिया था किंतु साथ में एक नया संकट उत्पन्न हो गया जो पहले वाले से भी अधिक भयंकर था. ऐसा प्रतीत हुआ कि भगवान विष्णु मूल रूप में लौटने के बजाय नृसिंह रूप में ही रह गए थे. वह अब भी गुस्से की अवस्था में थे जिसमें उन्होंने असुर को मौत के घाट के उतार दिया था. ऐसा लगा कि उस नृशंस वध ने नृसिंह अवतार को और भड़का दिया था. वे उग्रता से आगे बढ़ रहे थे मानो सब कुछ नष्ट कर देंगे. उनकी गर्जना से ब्रह्मांड कांप उठा था और वह भयभीत थे कि कहीं भगवान नृसिंह उन्हें चीर न डालें. ब्रह्मा जी ने तुरंत प्रह्लाद को विष्णु जी से प्रार्थना करने को कहा. प्रह्लाद ने हरसंभव प्रयास किया किंतु कोई लाभ नहीं हुआ. फिर ब्रह्मा दी ने शिव दी की ओर देखा.

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ब्रह्मा जी के शिव जी से कहा कि, 'श्री हरि ने आपके रुद्र तांडव रूप को शांत किया था. अब उन्हें नियंत्रित करने की आपकी बारी है. इस पर भगवान शिव ने ब्रह्मा जी को उत्तर दिया कि 'इस अवतार में रजस् गुण की अधिकता है क्योंकि इन्होंने हिरण्यकश्यप का रक्त चखा है. इसी कारण यह क्रोधाग्नि भड़क रही है. यदि हमने इस देह को नष्ट नहीं किया तो श्रीहरि सदा के लिए इसी हिंसक रूप में रह जाएंगे.'

यह कहकर शिव जी ने अपना एक बाल तोड़कर वीरभद्र को उत्पन्न किया और फिर शिव जी ने वीरभद्र से नृसिंह अवतार को शांत करने के लिए कहा. वीरभद्र ने देखा कि नृसिंह अवतार नक्षत्रों के निकट खड़े गुर्रा रहे थे. वे एक-एक करके सभी नक्षत्रों को तोड़ने का प्रयास कर रहे थे. वीरभद्र ने नृसिंह अवतार के सामने हाथ जोड़कर उनसे शांत होने का आग्रह किया. उन्होंने नृसिंह अवतार से कहा कि, ' शांत हो जाइये, प्रभु! आप परम रक्षक हैं और आपने धर्म की पुनर्स्थापना लिए अवतार लिया है. नृसिंह के रूप में आपका उद्देश्य पूर्ण हो चुका है. यह अवतार, मुखौटा मात्र है. इसे अपना चेहरा न बनने दें. इस बर्बर और हिंसक शरीर के नीचे आत्मा को न दबने दें. इसका अंत करके पुनः अपने परोपकारी स्वरूप में लौट आइए.'

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भगवान नृसिंह (AI Generated)

लेकिन नृसिंह भगवान ने अंबर को खरोंचना शुरू कर दिया. उन्होंने झपटकर वीरभद्र पर भी आक्रमण किया तो उन्होंने तुरंत समर्पण कर दिया. वीरभद्र को पता था कि उसके लिए  विष्णु जी का सामना करना असंभव है. वह पीछे हटा और फिर अचानक रुक गया. अचानक से कुछ विचित्र घटनाएं घटीं जैसे सूरज छिपने लगा, नक्षत्रों की चमक फीकी पड़ने लगी, आकाशगंगा पर ग्रहण सा लग गया. फिर, नृसिंह के समक्ष कोई प्रकट हुआ जिसके विशालकाय पंखों ने संपूर्ण आकाश को ढक लिया था. उनकी सरसराहट नृसिंह की गर्जना से भी तेज थी और उनकी चमक, सभी नक्षत्रों के प्रकाश से अधिक थी. वीरभद्र भी घुटनों के बल बैठ गए और महादेव को देखने लगा.

परंतु इस बार शिव जी उस रूप में प्रकट नहीं हुए थे जिस रूप में वीरभद्र उन्हें देखता था. इस युद्ध के कारण महादेव ने भी एक अवतार लिया था. नृसिंह जैसा एक प्रतापी शंकर रूप. उस अवतार का आधा भाग आठ पैरों वाले सिंह का था और शेष आधा भाग सहस्त्र भुजाधारी सुनहरे पक्षी का. उसकी कलगी में से अनोखा प्रकाश निकल रहा था और आंखों में चमक थी. उसके पंजे अत्यंत नुकीले और प्रचंड थे.

शिव जी ने शरभ का रूप धारण किया था. नृसिंह ने जब ऊपर एक अन्य जीव को मंडराते देखा तो उन्होंने शरभ के पंखों को नोंचने के लिए ऊपर छलांग लगाई. वह शरभ की आंखें फोड़ना और चोंच तोड़ देना चाहते थे. किंतु हिंसक नृसिंह जितनी ऊंची छलांग लगाते, शरभ उतना ही ऊपर उड़ जाते. वह नृसिंह के ठीक ऊपर थे किंतु हर बार उनकी पहुंच से दूर चले जाते. फिर शरभ ने झपट्टा मारा और नृसिंह को पंजों में जकड़ लिया और ऊपर उड़ गए. हर लोक से ऊपर. हर आयाम और हरसंभव क्षेत्र से पार.

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ब्रह्मांड के सर्वोच्च शिखर से भी ऊपर पहुंचकर शरभ ने नृसिंह को छोड़ दिया. ब्रह्मांड नृसिंह को पृथ्वी की ओर गिरता देख रहा था. वह विशाल उल्का की भांति तेजी से नीचे गिरते चले गए. नृसिंह अवतार जैसे ही धरती से टकराया वह आवेश की मुद्रा से बाहर आ गए. इस प्रकार विष्णु जी अपने अवतार से मुक्त हुए.

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