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'डिजिटल अमरता' कितनी जायज, कितनी जरूरी? इंडिया टुडे कॉन्क्लेव के मंच पर दिग्गजों ने की चर्चा

आज के दौर में डिजिटल मीडिया और AI लगातार डेवलप होते हुए हर दिन नए फॉर्मेट में हमारे सामने आ रहे हैं. इसके विकास के साथ ही ये सवाल आना लाजिम है कि, क्या हम डिजिटल रूप में अमर रह सकते हैं? क्या यह सही है कि हमारी डिजिटल इमेज हमारी मृत्यु के बाद भी बनी रहे? 

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इंडिया टुडे कॉन्क्लेव में हुई डिजिटल अमरता पर चर्चा
इंडिया टुडे कॉन्क्लेव में हुई डिजिटल अमरता पर चर्चा

इंडिया टुडे कॉन्क्लेव के दूसरे दिन जहां मंच पर कई प्रमुख हस्तियों और अलग-अलग विधा के दिग्गजों ने शिरकत वहीं इसके एक खास सेशन में अध्यात्म से जुड़े बेहद दिलचस्प विषय पर चर्चा हुई. 21वीं सदी के इस वन टच, वन क्लिक युग में जब हमारी जिंदगी में वेब और नेटवर्क जैसी शब्दावलियां आम हो चुकी हैं तो तकनीकियों से भरे इस दौर में एक सवाल आता है डिजिटल अमरता का, क्या हम डि़जिटली अमर हो सकते हैं? IMMORTALITY सेशन में यही सवाल चर्चा के केंद्र में रहा, जिसके इर्द-गिर्द और भी तर्क और तथ्य सामने रखे गए.

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सवाल, क्या हम डिजिटल अमर हो सकते हैं?
चर्चा के लिए मंच पर थे, अध्यात्मिक गुरु गौरांग दास ( ISKCON GBC एवं निदेशक, गोवर्धन इको विलेज (GEV)), हेनरिक जॉर्ज (संस्थापक एवं सीईओ, ETER9) और डॉ. सजीव नायर (संस्थापक, Vieroots Wellness Solutions, Limoverse और World Biohack Summit) चर्चा शुरू हुई इस मुद्दे के साथ कि, आज के दौर में डिजिटल मीडिया और AI लगातार डेवलप होते हुए हर दिन नए फॉर्मेट में हमारे सामने आ रहे हैं. इसके विकास के साथ ही ये सवाल आना लाजिम है कि, क्या हम डिजिटल रूप में अमर रह सकते हैं? क्या यह सही है कि हमारी डिजिटल इमेज हमारी मृत्यु के बाद भी बनी रहे? 

गुरु गौरांग दास ने क्या कहा?
इस सवाल के उठने पर गुरु गौरांग दास ने जवाब दिया कि, किसी व्यक्ति को उसकी नीयत और समाज में उसका क्या योगदान रहा है, उससे ही याद किया गया है. इतिहास में उन्हीं लोगों को सम्मान मिला है, जिन्होंने निस्वार्थ सेवा की है. उन्होंने कहा जीवन में आप सिर्फ चार नीतियां अपनाते हैं, भय, लालच, कर्तव्य और निस्वार्थ प्रेम. उनका मानना है कि डिजिटल मीडिया में अमरता से ज्यादा जरूरी यह है कि हम अपने कार्यों, शब्दों और आचरण से समाज में सकारात्मक छवि बनाएं. इस तरह की इमेज बनेगी तो हम हमेशा ही याद किए जाएंगे. 

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उन्होंने यह भी कहा कि डिजिटल अमरता की एक समस्या यह भी है कि यह अच्छे और बुरे दोनों ही फॉर्मेट में हो सकती है. अगर मशीनें मानवता की सहायता के लिए हैं, तो यह फायदेमंद है, लेकिन अगर वे ही मनुष्य को नियंत्रित करने लगें, तो यह खतरनाक हो सकता है. इसलिए, डिजिटल तकनीक को अपनाने के साथ नैतिकता बेहद जरूरी है. 

"AI को खतरे के तौर पर न देखें"
इस तर्क के आने के बाद हेनरिक जॉर्ज ने अपनी बात रखते हुए कहा कि, AI को खतरे के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए, बल्कि इसे एक टूल की तरह समझना चाहिए और इसी तरह प्रयोग भी करना चाहिए. उन्होंने कहा कि AI का उपयोग शिक्षा के क्षेत्र में किया जा सकता है. कल्पना कीजिए कि अगर आइंस्टाइन या किसी अन्य महान वैज्ञानिक का डिजिटल एडिशन तैयार कर लिया जाए, तो ये आने वाली पीढ़ियों के लिए कितना फायदेमंद होगा और वे उन्हें अपने फॉर्मूले और ज्ञान से बेहतर शिक्षित कर पाएंगे.

लेकिन उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि AI में आत्मा नहीं होती, इसलिए इसे मनुष्य का विकल्प नहीं माना जा सकता. यह केवल एक टेक्निकल टूल है, जिसका कंट्रोल मनुष्य के पास होना चाहिए.

क्या है डिजिटल क्लोनिंग?
बातचीत को आगे बढ़ाते हुए डॉ. संजीव नायर ने अपने तर्क में कहा कि, डिजिटल क्लोन बनाना और अपनी उम्र को जैविक रूप से बढ़ाना दो अलग-अलग अवधारणाएं हैं. बायोहैकिंग (Biohacking) एक ऐसी तकनीक है, जिसमें व्यक्ति अपने शरीर और दिमाग को स्वस्थ और सक्रिय बनाए रखने के लिए वैज्ञानिक तकनीकों का उपयोग करता है. भारत में यह अवधारणा नई नहीं है, बल्कि यह प्राचीन योग और ध्यान पद्धतियों का ही एक रूप है. बता दें कि संजीव, जीवन अवधि पर काम कर रहे हैं और उनका मानना है कि दीर्घायु का उद्देश्य केवल जीवन के वर्षों को बढ़ाना नहीं, बल्कि स्वास्थ्य और ऊर्जा को बनाए रखना होना चाहिए. उन्होंने कहा कि नई तकनीकों जैसे एपिजेनेटिक्स (Epigenetics) पर चर्चा हो रही है, जो जीवन को और अधिक स्वस्थ बना सकती हैं.

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गीता का उपदेश क्या कहता है?
गुरु गौरांग दास ने कहा कि, धार्मिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो भगवद गीता में कहा गया है कि आत्मा अमर होती है और मृत्यु के बाद एक नए शरीर में प्रवेश करती है. गीता के अनुसार, आत्मा के पांच तत्व होते हैं - ईश्वर, जीव, प्रकृति, काल और कर्म. आत्मा स्थायी होती है, जबकि शरीर बदलता रहता है. यदि कोई 60 वर्ष का व्यक्ति अपने 12 वर्ष की उम्र की तस्वीर दिखाकर कहे कि "यह मैं हूं," तो उसका शरीर पूरी तरह बदल चुका होता है, लेकिन उसमें कुछ ऐसा है जो नहीं बदला - यही आत्मा है. डिजिटल अमरता से हम केवल एक डिजिटल इमेज को संरक्षित कर सकते हैं, लेकिन यह आत्मा का स्थान नहीं ले सकती.

आज के समय में डिजिटल तकनीक के बढ़ते प्रभाव से मानसिक स्वास्थ्य पर भी गहरा असर पड़ रहा है. भारत में हर दिन लगभग 370 आत्महत्याएं हो रही हैं. लोग अपने कौशल को बढ़ाने में लगे हैं, लेकिन इच्छाशक्ति और आत्म-नियंत्रण खोते जा रहे हैं. उन्होंने यह भी बताया कि रात को नींद लेना हमारे शरीर और दिमाग के लिए जरूरी है, लेकिन 70% विश्व नेता समय पर सो नहीं पाते। ऐसे में, जब इंसान खुद को नियंत्रित नहीं कर पा रहा, तो डिजिटल क्लोन और अमरता की बात करना व्यर्थ है.

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जब श्रील प्रभुपाद लंदन गए, तो एक पत्रकार ने उनसे पूछा कि वे वहां क्यों आए हैं? उन्होंने उत्तर दिया, "पिछले 300 वर्षों में ब्रिटिशों ने भारत से सोना, हीरे, माणिक और अन्य बहुमूल्य चीजें चुरा लीं, लेकिन वे सबसे महत्वपूर्ण चीज भूल गए - भगवद गीता, मैं गीता की होम डिलीवरी करने आया हूं." आज इस्कॉन 120 देशों में फैला हुआ है और 1100 से अधिक स्थानों पर इसकी उपस्थिति है. यह दर्शाता है कि आत्म-अनुशासन और आत्म-ज्ञान की आवश्यकता वैश्विक स्तर पर बढ़ रही है.

रोचक है डिजिटल अमरता का विषय
सेशन में जो विचार सामने आया, उसका निचोड़ है कि, डिजिटल अमरता का विचार रोचक है, लेकिन हमें यह समझना होगा कि केवल डिजिटल रूप से जीवित रहने से जीवन का उद्देश्य पूरा नहीं होता. आत्म-अनुशासन, नैतिकता और मानसिक संतुलन इससे कहीं अधिक जरूरी हैं. गीता की ही मानें तो आत्मा अमर है और इसे सही दिशा में ले जाना ही मानव जीवन का लक्ष्य होना चाहिए. तकनीक का उपयोग तभी सार्थक होगा, जब हम इसे मानवता की सेवा में लगाएं और इसके नियंत्रण को अपने हाथों में रखें.

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