scorecardresearch
 

Janmashtami 2024: क्रोध कैसे करता है इंसान का विनाश? गीता में श्रीकृष्ण के इस श्लोक से समझिए

Janmashtami 2024: करीब 5 हजार साल पहले श्रीकृष्ण ने कुरुक्षेत्र की युद्ध भूमि में गीता के परम पावन संदेश का जो दिव्य प्रकाश फैलाया, उसकी पवित्र रोशनी से आज भी न केवल भारत, बल्कि समूचे विश्व के लोग अपना जीवन धन्य कर रहे हैं.

Advertisement
X
गीता के द्वितीय अध्याय के 62वें और 63वें श्लोक में भगवान कृष्ण ने कुछ विशेष बातें कही हैं.
गीता के द्वितीय अध्याय के 62वें और 63वें श्लोक में भगवान कृष्ण ने कुछ विशेष बातें कही हैं.

Janmashtami 2024: आज भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव यानी जन्माष्टमी का त्योहार मनाया जा रहा है. इस दिन भगवान श्रीकृष्ण के बाल स्वरूप की पूजा का विधान बताया गया है. भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन के माध्यम से संसार को गीता का उपदेश दिया था. करीब 5 हजार साल पहले श्रीकृष्ण ने कुरुक्षेत्र की युद्ध भूमि में गीता के परम पावन संदेश का जो दिव्य प्रकाश फैलाया, उसकी पवित्र रोशनी से आज भी न केवल भारत, बल्कि समूचे विश्व के लोग अपना जीवन धन्य कर रहे हैं. गीता का महात्म्य यह है कि उसके 700 श्लोकों में से किसी एक श्लोक का भी असली मर्म मनुष्य समझ जाए तो उसकी नैय्या पार हो जाएगी. गीता के द्वितीय अध्याय के 62वें और 63वें श्लोक में भगवान कृष्ण ने कुछ विशेष बातें कही हैं. आइए इनके बारे में आपको विस्तार से बताते हैं.

Advertisement

यहां भगवान श्रीकृष्ण ने एक श्लोक कहा है- 
ध्यायतो विषयान्पुंसः सङ्गस्तेषूपजायते।
सङ्गात्संजायते कामः कामात्क्रोधोऽभिजायते॥
क्रोधाद्भवति संमोह: संमोहात्स्मृतिविभ्रम:।
स्मृतिभ्रंशाद्बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति॥

अर्थ-
गीता के इस श्लोक के जरिए भगवान कृष्ण ने मन में उठने वाले विकारों और क्लेशों की उत्पत्ति और उनके क्रमिक विकास का अनुपम वर्णन किया है. भगवान कहते हैं कि अगर हम लगातार विषयों का चिंतन करते हैं तो उसी चिंतन के मुताबिक अपनी संगत बना लेते हैं. संगत के असर में हम कामाभिमुख हो जाते हैं.

अतृत्प काम वासना से मन में क्रोध उपजता है. क्रोध से मोह पैदा होता है और मोह से हम स्मृति भ्रम के शिकार हो जाते हैं. स्मृति भ्रम होने पर बुद्धि का नाश हो जाता है और बुद्धि का नाश होते ही हमारा विनाश हो जाता है. इसका दूसरा पक्ष ये है कि अगर हमारा चिंतन पवित्र है तो फिर हमारी परम प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त हो जाता है.

Advertisement

गीता में भगवान ने इसका उपाय भी बताया है. अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जनाः पर्युपासते। तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम्।।
इस श्लोक में भगवान कृष्ण कहते हैं कि जो भक्त अनन्य भाव से मेरा ही चिंतन करते हैं मेरी ही उपासन करते हैं, नित्य मुझमें ही युक्त रहते हैं, उनके योग और क्षेम का मैं स्वयं वहन करता हूं. यहां योग का अर्थ पूर्व जन्मों के अच्छे कर्मों के योग से है. जबकि क्षेम तात्पर्य कुशलता से है.

18वें यानी आखिरी अध्याय के 66वें श्लोक में तो कृष्ण मुक्ति का अमोघ रास्ता भी बता देते हैं. यहां श्रीकृष्ण कहते हैं, 'सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज। अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः॥'

इसका तात्पर्य है कि सभी धर्मों, मतों, पंथों को छोड़कर मेरी शरण में आ जाओ, मैं तुम्हें सभी पापों से मुक्त कर मोक्ष प्रदान कर दूंगा. इसमें किंचित मात्र भी संदेह नहीं है. साफ है कि भगवान कृष्ण की तमाम लीलाओं में मनुष्य के जीवन के उत्थान के गूढ़ तत्व समाहित है. यदि इन संकेतों को समझकर हम उन्हें जीवन में उतारना शुरू कर दें तो सिर्फ हमारा ही नहीं अखिल विश्व का कल्याण हो जाएगा.

Live TV

Advertisement
Advertisement