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Jaya Ekadashi 2025: जब इंद्र के श्राप से मृत्युलोक पहुंच गई नृत्यांगना, पढ़ें जया एकादशी की पौराणिक कथा

Jaya Ekadashi 2025: माघ शुक्ल एकादशी तिथि 7 फरवरी रात 9 बजकर 26 मिनट से शुरू होगी और 8 फरवरी रात 8 बजकर 15 मिनट पर इसका समापन होगा. इसलिए यह व्रत 8 फरवरी को रखा जाएगा. वहीं व्रत का पारण 9 फरवरी की सुबह किया जाएगा.

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 जया एकादशी के दिन श्री हरि विष्णु की विधिवत पूजा से पिशाच योनि का भय खत्म हो जाता है.
जया एकादशी के दिन श्री हरि विष्णु की विधिवत पूजा से पिशाच योनि का भय खत्म हो जाता है.

Jaya Ekadashi 2025: माघ शुक्ल एकादशी तिथि को जया एकादशी का व्रत रखा जाता है. इस साल यह व्रत 8 फरवरी को रखा जाएगा. ऐसी मान्यताएं हैं कि जया एकादशी के दिन श्री हरि विष्णु की विधिवत पूजा से पिशाच योनि का भय खत्म हो जाता है. साथ ही, ब्रह्महत्या के पाप से भी मुक्ति मिल जाती है. जया एकादशी पर व्रत-पूजन से मोक्ष की प्राप्ति भी होती है. आइए आज आपको इस व्रत की पौराणिक कथा बताते हैं.

जया एकादशी की तिथि
माघ शुक्ल एकादशी तिथि 7 फरवरी रात 9 बजकर 26 मिनट से शुरू होगी और 8 फरवरी रात 8 बजकर 15 मिनट पर इसका समापन होगा. इसलिए यह व्रत 8 फरवरी को रखा जाएगा. वहीं व्रत का पारण 9 फरवरी की सुबह किया जाएगा.

जया एकादशी की व्रत कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, प्राचीन काल में नंदन वन में उत्सव मनाया जा रहा था. इसमें सभी देवी-देवता व ऋषि-मुनि आए थे. संगीत व नृत्य से पूरे नगर में खुशियां बिखरी थीं. वहां माल्यवान नाम का एक गंधर्व गायक और पुष्यवती नाम की एक नृत्यांगना नृत्य कर रही थी. इस दौरान दोनों एक-दूसरे पर मोहित हो गए और अपनी मर्यादा भूल गए. इस कारण उत्सव फीका पड़ने लगा. यह देख इंद्र देव क्रोधित हो गए और उन्होंने दोनों को स्वर्ग लोक से निकालकर मृत्यु लोक यानी पृथ्वी पर जाने का श्राप दे दिया.

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बाद में दोनों को अपनी भूल का एहसास हुआ. वे अपने पिशाच जीवन से मुक्ति पाना चाहते थे. संयोगवश एक बार माघ शुक्ल की एकादशी पर दोनों भूखे पेट पीपल के पेड़ के नीचे बैठे रहे. रातभर अपनी गलती का पश्चाताप करते रहे. आगे गलती न दोहराने का प्रण भी लिया. कहते हैं कि सूर्योदय होते ही उन्हें पिशाची जीवन से मुक्ति मिल गई. तब उन्हें मालूम नहीं था कि उस दिन जया एकादशी भी है. जाने-अनजाने में उन्होंने जया एकादशी का व्रत कर लिया. फलस्वरूप भगवान विष्णु की कृपा से दोनों को पिशाच योनि से मुक्त मिल गई और वो पुन: मृत्युलोक से स्वर्ग लोक पहुंच गए.

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