
यूं तो काशी के नाम से वाराणसी प्रसिद्ध है लेकिन भारत में कुल 6 काशी हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि इनमें से दो काशी देवभूमि उत्तराखंड में स्थित हैं. एक तो उत्तरकाशी और दूसरा गुप्तकाशी. हिमालय की गोद में बसे उत्तरकाशी को भगवान शिव का कलियुग का दूसरा निवास माना जाता है. और इसी कारण यहां भी काशी विश्वनाथ मंदिर मौजूद है.
ऐसा कहते हैं कि जब काशी या वाराणसी पानी के नीचे डूब जाएगी तब भगवान काशी विश्वनाथ को उत्तरकाशी के इस मंदिर में स्थानांतरित कर दिया जाएगा. उत्तरकाशी का काशी विश्वनाथ मंदिर एक और वजह से भी खास है. यहां शिवलिंग दक्षिण की ओर झुका हुआ है. यह देश का इकलौता ऐसा शिवलिंग है.
विश्वनाथ मंदिर के महंत अजय पुरी ने आजतक से बातचीत में बताया कि स्कन्दपुराण के केदारखंड में भगवान आशुतोष ने उत्तरकाशी को कलियुग की काशी के नाम से संबोधित किया है. किसी समय वाराणसी (काशी) को कलयुग में यवनों के संताप से पवित्रता भंग होने का श्राप मिला था. इस श्राप से व्याकुल होकर देवताओं और ऋषि-मुनियों द्वारा शिव उपासना का स्थान भगवान शंकर से पूछा तो उन्होंने बताया कि वे अपने परिवार, समस्त तीर्थ स्थानों, काशी सहित कलियुग में वो हिमालय के उस स्थान पर वास करेंगे. जहां द्वादश ज्योतिर्लिगों में से एक अलौकिक स्वयंभू लिंग है. इसी आधार पर वरुणावत पर्वत पर असी और भागीरथी संगम पर देवताओं द्वारा उत्तर की काशी यानि उत्तरकाशी बसाई गई.
दक्षिण की ओर झुका है शिवलिंग
उत्तरकाशी के काशी विश्वनाथ मंदिर को लेकर एक और मान्यता है. ऐसा माना जाता है कि ऋषि मार्कंडेय को जब 16वां साल आरम्भ हुआ तो उनके माता-पिता उदास रहने लगे. पुत्र ने कई बार उनसे उनकी उदासी का कारण जानने की कोशिश की. एक दिन महर्षि मार्कण्डेय ने बहुत जिद की तो महामुनि मृकण्डु (महर्षि के पिता) ने बताया कि भगवान शंकर ने तुम्हें मात्र 16 वर्ष की आयु दी है और यह पूर्ण होने वाली है. इस कारण मुझे दुख हो रहा है. इतना सुनकर मार्कण्डेय ऋषि ने अपने पिता से कहा कि आप चिंता न करें, मैं शंकर जी को मना लूंगा और अपनी मृत्यु को टाल दूंगा. इसके बाद वे घर से दूर एक जंगल में चले गए. वहां एक शिवलिंग स्थापित कर उसकी विधिवत उपासना करने लगे.
निश्चित समय आने पर मृत्यु के देवता यमराज पहुंचे. महर्षि ने उनसे यह कहते हुए कुछ समय मांगा कि अभी वह शंकर जी की स्तुति कर रहे हैं. जब तक वो पूरी नहीं हो जाती, तब तक प्रतीक्षा करें. यमराज ने ऐसा करने से मना कर दिया तो मार्कण्डेय ऋषि जी ने विरोध किया और वह शिवलिंग से लिपट गए. कहते हैं कि शिवलिंग पर जोर पड़ने के कारण ही काशी विश्वनाथ मंदिर का शिवलिंग दक्षिण की ओर झुका गया. दूसरे सभी उत्तर की दिशा में हैं. तभी भगवान शिव वहां स्वयं प्रकट हुए और यमराज को खाली हाथ लौटा दिया. उसके बाद मृत्यु देवता शिवजी की आज्ञा पाकर वहां से चले गए.

भगवान परशुराम ने बनाया था काशी विश्वनाथ मंदिर
काशी विश्वनाथ मंदिर की बात करें तो इसकी नींव भगवान परशुराम ने रखी थी, जिसे बाद में 1857 में राजा सुदर्शन शाह की पत्नी महारानी श्रीमती खनेटी द्वारा पुनर्निर्मित किया गया था. वर्तमान मंदिर का निर्माण पहले से मौजूद प्राचीन वेदी पर पारंपरिक हिमालयी मंदिर वास्तुकला के साथ 1857 ईस्वी में किया गया था.
भव्य रूप से मनाई जाती है महाशिवरात्रि
काशी विश्वनाथ का ये मंदिर सालभर भक्तों के लिए खुला रहता है. चार धामों में से एक गंगोत्री जाने से पहले बाबा विश्वनाथ के दर्शन जरूरी माने जाते हैं. यही नहीं, उत्तरकाशी के विश्वनाथ मंदिर में महाशिवरात्रि के अवसर पर कई धार्मिक आयोजन होते हैं. माना जाता है कि इस दिन यहां शिव उपासना करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है.
मां पार्वती त्रिशूल रूप में हैं विराजमान
उत्तरकाशी के काशी विश्वनाथ मंदिर के ठीक सामने मां पार्वती (शक्ति) का मंदिर भी है. माता यहां त्रिशूल रूप में विराजमान हैं. कहा जाता है कि राक्षस महिषासुर का वध करने के बाद मां दुर्गा ने अपना त्रिशूल धरती पर फेंका था. ये त्रिशूल यहीं आकर गिरा था. तब से इस स्थान पर मां दुर्गा की शक्ति स्तंभ के रूप में पूजा की जाती है.
गांगा का उद्गम जिला है उत्तरकाशी
केदारखंड और पुराणों में उत्तरकाशी के लिए ‘बाडाहाट’ शब्द का प्रयोग मिलता है. केदारखंड में ही बाडाहाट में विश्वनाथ मंदिर का उल्लेख मिलता है. पुराणों में इसे 'सौम्य काशी' भी कहा गया है. पौराणिक कथाओं के मुताबिक, उत्तरकाशी में ही राजा भागीरथ ने तपस्या की थी और उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने उन्हें वरदान दिया था कि भगवान शिव धरती पर आ रही गंगा के वेग को धारण कर लेंगे.
तीसरी काशी का नाम क्यों पड़ा गुप्तकाशी?
उत्तराखंड के रूद्रप्रयाग जिले में 1319 मीटर की ऊंचाई पर विख्यात काशी विश्वनाथ मंदिर, पवित्र धाम केदारनाथ मार्ग पर गुप्तकाशी कस्बे में स्थित है. यह केदारनाथ यात्रा का मुख्य पड़ाव भी है. यह तीन प्रमुख काशियों उत्तरकाशी, काशी (वाराणसी) और गुप्तकाशी में से एक है. यह पवित्र मंदिर मंदाकिनी के तट पर स्थित है, जिसकी कई ऐतिहासिक मान्यताएं हैं. गुप्तकाशी का काशी की तरह काफी महत्व है.

गुप्तकाशी को लेकर क्या है पौराणिक मान्यता?
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, कौरवों और पांडवों में जब युद्ध हुआ तो पांडवों ने कई व्यक्तियों और अपने भाइयों का भी वध कर दिया था. उसी वध के कारण उन्हें बहुत सारे दोष लग गए थे. पांडवों को उन्हीं दोषों के निवारण के लिए भगवान शिव से माफी मांगते हुए उनका आशीर्वाद लेना था, लेकिन भोलेनाथ पांडवों से नाराज हो गए थे, क्योंकि उस युद्ध के दौरान पांडवों ने भगवान शिव के भक्तों का भी वध कर दिया था. उन्हीं दोषों से मुक्ति पाने के लिए पांडवों ने पूजा-अर्चना की और भोले शंकर के दर्शन के लिए निकल पड़े.
इधर भगवान शिव पांडवों से छिपते-छिपाते हिमालय की ओर निकल गए और चलते-चलते केदार घाटी में पहुंचे और हिमालय के इस स्थान पर ध्यान करने लगे. जब भगवान को पता चला कि पांडव इसी स्थान पर आ रहे हैं तो वह यहीं नंदी का रूप धारण कर अंतर्ध्यान हो गए या यूं कहें गुप्त हो गए, इसलिए इस जगह का नाम गुप्तकाशी पड़ा.