उज्जैन को कालों के काल महाकाल की नगरी कहा जाता है और महाकाल की इस नगरी में बहती शिप्रा नदी मोक्षदायिनी क्षिप्रा कहा जाता है. शिप्रा के पवित्र तटों पर जन्मी आध्यात्मिक संस्कृति की बदौलत ही शास्त्रों में ये नगर उज्जैयनी के नाम से विख्यात हुआ और ये ही उज्जैयनी पुराणों में मंगल की जननी भी कहलाई. यहां अमंगल को मंगल में बदलने वाले भगवान मंगलनाथ भी हैं.
भगवान मंगलनाथ मंदिर की मान्यता
यूं तो देश में मंगल भगवान के कई मंदिर हैं, लेकिन भगवान मंगलनाथ मंदिर में की गई मंगल की पूजा का जो महत्व है वो कहीं और नहीं है. मान्यता है कि यहां पूजा अर्चना करने वाले हर जातक की कुंडली के दोषों का नाश हो जाता है. ऐसे व्यक्ति जिनकी कुंडली में मंगल भारी रहता है, वो अपने अनिष्ट ग्रहों की शांति के लिए मंगलनाथ मंदिर में पूजा-पाठ करवाने आते हैं. मंगलनाथ मंदिर में पूजा-अर्चना करने से कुंडली में उग्ररूप धारण किया हुआ मंगल शांत हो जाता है. इसी धारणा के चलते हर साल हजारों नवविवाहित जोड़े, जिनकी कुंडली में मंगलदोष होता है, यहां पूजा-पाठ करवाने आते हैं.
मंगल ग्रह के जन्म की कथा
कहा जाता है कि अंधकासुर नामक दैत्य को शिवजी ने वरदान दिया था कि उसके रक्त से सैकड़ों दैत्य जन्म लेंगे. वरदान के बाद इस दैत्य ने अवंतिका में तबाही मचा दी. तब दीन-दुखियों ने शिवजी से प्रार्थना की. भक्तों के संकट दूर करने के लिए स्वयं शंभु ने अंधकासुर से युद्ध किया. दोनों के बीच भीषण युद्ध हुआ. शिवजी का पसीना बहने लगा. रुद्र के पसीने की बूंद की गर्मी से उज्जैन की धरती फटकर दो भागों में विभक्त हो गई और मंगल ग्रह का जन्म हुआ. शिवजी ने दैत्य का संहार किया और उसकी रक्त की बूंदों को नवउत्पन्न मंगल ग्रह ने अपने अंदर समा लिया. कहते हैं इसलिए ही मंगल की धरती लाल रंग की है.
भगवान मंगलनाथ का इतिहास
कहा जाता है कि ये मंदिर सदियों पुराना है. सिंधिया राजघराने ने इसका पुनर्निर्माण करवाया था. यहां की गई मंगल की पूजा का विशेष महत्व है. भक्तों द्वारा यहां मंगलनाथ को शिव रुप में ही पूजा जाता है. मंगलवार के दिन यहां श्रद्धालु दूर-दूर से चले आते रहे हैं. यहां होने वाली भात पूजा को भी काफी महत्वपूर्ण माना जाता है. मान्यता है कि इस मंदिर में भात पूजा करवाने से कुंडली के मंगल की शांति होती है और मांगलिक दोष से ग्रस्त व्यक्ति के सारे काम निर्विघ्न पूरे होते हैं.
भगवान मंगलनाथ का महत्व
मान्यता है कि इस मंदिर में की गई नवग्रहों की पूजा से विशेष लाभ मिलता है. यहां शांत मन से की गई पूजा अर्चना से उग्र रूप धारण किया मंगल शांत हो जाता है. सामान्य दिनों में सुबह 6 बजे से मंगल आरती होती है लेकिन मंगलवार को यहां भक्तों का विशेष तांता लगता है. मंगल की शांति, वाहन और भूमि आदि के सुख की प्राप्ति के लिए भक्त यहां भात पूजा करते हैं.