संसार में धन पाने की इच्छा भला किसके मन में नहीं होती? कोई इतना धन पाना चाहता है कि उसकी आने वाली सात पीढ़ियां भी ऐशो-आराम से रह सकें. कोई बस इतना चाहता है, 'साईं इतना दीजिए, जामे कुटुब समाए...' कम या ज्यादा, हर किसी को जीवन-यापन के लिए धन तो चाहिए ही.
वैसे तो हमारे शास्त्रों में बताया गया है कि जहां उद्यम (लक्ष्य पाने के लिए लगातार मेहनत) होता है, वहीं लक्ष्मी का वास होता है. पर हमारी मेहनत सफल हो, यह बेकार नहीं जाए, इसके लिए प्रभु का स्मरण और मंत्र आदि भी बताए गए हैं. श्रीरामचरितमानस का मंत्र धन पाने और दरिद्रता दूर करने में मददगार साबित हो सकता है. मंत्र इस तरह है:
'जिमि सरिता सागर महुं जाही।
जद्यपि ताहि कामना नाहीं।।
तिमि सुख संपति बिनहिं बोलाएं।
धरमसील पहिं जाहिं सुभाएं।।'
मंत्र बालकांड से लिया गया है. इसका मतलब यह है कि नदियां बहती हुई सागर की ओर ही जाती हैं, चाहे उनके मन में उधर जाने की कामना हो या नहीं. ठीक उसी तरह, सुख-संपत्ति भी बिना चाहे ही धर्मशील और विचारवान लोगों के पास चली आती हैं.
लक्ष्मी 'चंचला' बताई गई हैं. ऐसी मान्यता है कि वे हमेशा के लिए एक जगह टिककर नहीं रहती हैं. लेकिन जिन घरों में लोग एक-दूसरे के साथ प्रेमपूर्वक, शांति व संतोष से रहते हैं, वहां लक्ष्मी स्थाई रूप से बस जाती हैं.
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